पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सौंपी सूची
दुर्ग विश्व विरासत में शामिल होने के कारण यहां किसी भी तरह का निर्माण नहीं करवाया जा सकता है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अवैध निर्माण करने वालों की सूची तैयार कर उच्च स्तर तक भी भेज दी। लेकिन, राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण यहां अवैध निर्माण का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। दुर्ग पर अवैध रूप से बड़ी बड़ी होटलें खड़ी कर दी गई है। सब-कुछ जिम्मेदारों की आंखों के सामने हुआ और हो भी रहा है। फिर भी सब मौन है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की यह मजबूरी है कि उसको न तो पुलिस जाप्ता उपलब्ध है और न ही अवैध निर्माण ध्वस्त करने के लिए कोई संसाधन उपलब्ध है। चित्तौड़ दुर्ग का नाम विश्व के चित्र पटल पर है और यह एशिया के सबसे बड़े किलों में से एक हैं। यहां अवैध निर्माण के लिए धड़ल्ले से जेसीबी और पोकलेन मशीनों का भी उपयोग किया जाता है, जो यहां के स्मारकों के लिए नुकसानदायक है।जनप्रतिनिधि भी नहीं दे रहे ध्यान
दुर्ग पर अवैध निर्माण करने वालों के रसूखात कांग्रेस और भाजपा से हैं। दोनों ही दल के किसी भी नेता ने आज दिन तक कभी भी दुर्ग पर हो रहे अवैध निर्माण को लेकर चुप्पी नहीं तोड़ी। क्यों कि उनके अपने ही पोकलेन और जेसीबी से दुर्ग के सीने पर छेद करने में लगे हुए हैं। भारी-भरकम मशीनों से दुर्ग पर हो रहा कंपन न तो जिला प्रशासन को सुनाई देता है और न ही जनप्रतिनिधियों को। जबकि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग तीन सौ अवैध निर्माण की सूची जिम्मेदारों को सौंप चुका है।अवैध निर्माण करने वालों की सूची में यह नाम शामिल
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से जिला प्रशासन को सौंपी गई अवैध निर्माण कर्ताओं की सूची में मुरली, रमेश, राजूसिंह, रमेश, मोहनसिंह, उदयलाल, राजूनाथ, दिनेश, भगवतीलाल, विजयसिंह, पुरुषोत्तम, अम्बालाल, रमेश, गोपाल, आनंदीराम, नगेन्द्रसिंह, नवीन, युवराजादित्य सिंह, मुन्नालाल सालवी, राजेश्वर,घनश्याम, मुकेश, लोकेश, प्रभुलाल, प्रेमबाई, डालचंद, गोपीनाथ, ध्रुव, सुबोध, लक्ष्मण, दिलीप, अनिल, अंकित, बाबूलाल, नाथीबाई, राकेश, राजेश, देवीलाल, हितेश, चन्द्रेश, शंभूलाल, राजूसिंह सहित 73 नाम शामिल हैं। जिन्होंने अप्रेल 2024 से जनवरी 2025 की अवधि में दुर्ग पर अवैध निर्माण करवाए हैं। इस तरह दुर्ग पर अब तक करीब 300 अवैध निर्माण हो चुके हैं।उच्च स्तर पर सूचना भेजी
दुर्ग पर किए गए अवैध निर्माण और अतिक्रमण को लेकर उच्च अधिकारियों को अवगत कराया जाता रहा है।- प्रेमचंद शर्मा, संरक्षक सहायक, पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग चित्तौड़ दुर्ग