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छतरपुर

एक लाख वर्गफीट के सरकारी बड़े भवनों से हर साल लगभग 30 लाख लीटर बारिश का पानी नालियों में बहकर हो रहा बर्बाद

मानसून की जोरदार बारिश इन दिनों पूरे जिले में हो रही है। आसमान से बरसती हर बूंद जिंदगी की निशानी है, लेकिन अफसोस यह है कि यही पानी नालियों में बहकर बर्बाद हो रहा है।

छतरपुरJul 24, 2025 / 10:34 am

Dharmendra Singh

district hospital building

जिला अस्पताल का पांच मंजिला भवन

मानसून की जोरदार बारिश इन दिनों पूरे जिले में हो रही है। आसमान से बरसती हर बूंद जिंदगी की निशानी है, लेकिन अफसोस यह है कि यही पानी नालियों में बहकर बर्बाद हो रहा है। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में जलस्तर लगातार गिर रहा है, बावजूद इसके जिम्मेदार विभाग वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की व्यवस्था तक नहीं कर पा रहे।

नए सरकारी भवनों में भी नहीं सिस्टम

छतरपुर जिला मुख्यालय पर पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े सरकारी भवन बने जिला अस्पताल, नया तहसील कार्यालय, यातायात भवन, रजिस्ट्रार कार्यालय, पीडब्ल्यूडी के कार्यालय, नगर पालिका परिसर, बस स्टैंड कॉम्प्लेक्स और अन्य सार्वजनिक भवन। इन भवनों की छतें मिलाकर लगभग 109000 वर्गफीट से अधिक क्षेत्रफल कवर करती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, 1 वर्गफीट छत पर एक साल में औसतन 26–28 लीटर वर्षा जल गिरता है। इस हिसाब से यदि इन भवनों पर प्रभावी वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाए तो केवल इन सरकारी परिसरों से लगभग 30 लाख लीटर पानी हर मानसून संरक्षित किया जा सकता है।

ये है स्थिति

लेकिन वास्तविकता यह है कि जिला अस्पताल (लगभग 14000 वर्गफीट में फैला) से ही करीब 3.6 से 4 लाख लीटर पानी हर बारिश के मौसम में बह जाता है। नया तहसील कार्यालय और यातायात भवन (कुल 8000 वर्गफीट) से लगभग 2 लाख लीटर पानी नालियों में जाता है। नगर पालिका के 25 कमर्शियल कॉम्प्लेक्स जिनकी संयुक्त छत लगभग 75000 वर्गफीट है, उनसे करीब 20 लाख लीटर पानी नालियों में चला जाता है।

ये है बचत का हिसाब

छतरपुर में औसतन सालाना वर्षा 900 मिमी के आस‑पास होती है। यदि किसी भवन की छत 1 वर्गफीट की हो, तो एक साल में लगभग 26 लीटर पानी उस पर गिरता है। अब अगर हम कुल छत का औसत जोड़ें तो जिला अस्पताल 14000 वर्गफीट, नया तहसील कार्यालय व अन्य भवन मिलाकर 20000 वर्गफीट और 25 कॉम्प्लेक्स 75000 वर्गफीट मिलकार कुल 109000 वर्गफीट एरिया होता है। प्रतिवर्ग फीटी 26 लीटर के हिसाब से 2834000 लीटर यानी लगभग 30 लाख लीटर पानी हर साल संरक्षित हो सकता है। अगर इसका केवल 50 प्रतिशत भी भूजल में संरक्षित हो तो करीब 15 लाख लीटर पानी बचाया जा सकता है।

बीते वर्षों में भूजल स्तर में गिरावट

जल संसाधन विभाग के पुराने आंकड़ों के मुताबिक, जिले में पिछले 10 वर्षों में भूजल स्तर औसतन 40 फीट तक गिर चुका है। हर साल औसतन 4 फीट की गिरावट हो रही है। यह सीधा संकेत है कि अगर वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सक्रिय नहीं किए गए तो आने वाले वर्षों में शहर में पेयजल संकट भयावह रूप ले सकता है।

निकायों की स्थिति भी चिंताजनक

छतरपुर जिले में 558 ग्राम पंचायतें और 15 नगरीय निकाय हैं, लेकिन इनमें से किसी के पास कोई स्थायी और कार्यशील वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है। केवल छतरपुर नगर पालिका में पूर्व कलेक्टर संदीप जीआर के निर्देश पर एक सिस्टम चालू किया गया था, लेकिन उसके अलावा अन्य निकायों में कोई कार्रवाई नहीं की गई।

इनका कहना है

सभी निकायों को वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम एक्टिवेट करने के निर्देश दिए गए हैं और बार‑बार रिमाइंडर भेजे जा रहे हैं।

साजिदा कुरैशी, परियोजना अधिकारी, डूडा

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