scriptछह साल बाद भी अधर में जटाशंकर धाम का रोप-वे प्रोजेक्ट, हर साल आते है 1 करोड़ श्रद्धालु, नहीं मिल पा रही सुविधा | Even after six years, the ropeway project of Jatashankar Dham is still pending, 1 crore devotees visit every year but facilities are not being provided | Patrika News
छतरपुर

छह साल बाद भी अधर में जटाशंकर धाम का रोप-वे प्रोजेक्ट, हर साल आते है 1 करोड़ श्रद्धालु, नहीं मिल पा रही सुविधा

जटाशंकर की घाटी में खड़ा कोई भी व्यक्ति जब ऊपर मंदिर की ओर देखता है तो वही पुराना सवाल करता है। रोप-वे का काम आखिर कब शुरू होगा?

छतरपुरJul 27, 2025 / 10:33 am

Dharmendra Singh

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जटाशंकर धाम

मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में बसे धार्मिक स्थल जटाशंकर धाम की पहचान केवल आस्था तक सीमित नहीं रही। यहां हर सावन में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं, खड़ी चढ़ाई से गुजरते हुए भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। पूरे साल यहां श्रद्धालुओं का तातंा लगा रहता है। ट्रस्ट के आंकड़ों के मुताबिक हर साल एक करोड़ लोग आते हैं। लगभग छह वर्ष पहले जब यह घोषणा हुई कि यहां एक आधुनिक रोप-वे सुविधा तैयार की जाएगी, तब हर ओर खुशी की लहर दौड़ गई थी। लोगों ने सोचा कि अब बुज़ुर्ग, महिलाएँ और बच्चे भी आसानी से मंदिर तक पहुँच पाएंगे। लेकिन आज जटाशंकर की घाटी में खड़ा कोई भी व्यक्ति जब ऊपर मंदिर की ओर देखता है तो वही पुराना सवाल करता है। रोप-वे का काम आखिर कब शुरू होगा?
घोषणा से लेकर अधर में अटकने तक की कहानी

3 नवंबर 2019 का दिन था। बिजावर के मेला ग्राउंड में मोनिया महोत्सव चल रहा था। मंच पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ऐलान किया- जटाशंकर धाम पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रोप-वे बनाया जाएगा। यह ऐलान सुनते ही आसपास के गांवों से आए लोग खुशी से झूम उठे। उन्हें लगा अब चढ़ाई की कठिनाइयों से मुक्ति मिलेगी। लेकिन यह उत्साह ज्यादा दिन नहीं चला। मार्च 2020 में सरकार बदल गई और नई प्राथमिकताओं के बीच जटाशंकर का रोप-वे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 2021 में शिवराज सिंह चौहान की सरकार के दौरान बजट भाषण में एक बार फिर यह घोषणा दोहराई गई। उम्मीदें जगीं कि अब शायद काम शुरू हो जाएगा, मगर हालात नहीं बदले।
टेंडर निकला, ठेका मिला लेकिन काम वहीं का वहीं

मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम ने सर्वे करवाया। कागज़ों पर प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली और पीपीपी मॉडल पर कोलकाता की रोपवे इन रिसॉर्ट कंपनी को ठेका दिया गया। समझौते के मुताबिक लगभग 11 करोड़ रुपए की लागत से यह प्रोजेक्ट तैयार होना है और अगले 30 साल तक इसका संचालन वही निजी कंपनी करेगी। कागजो पर सबकुछ तैयार है, एक लोवर टर्मिनल, एक अपर टर्मिनल,बीच में दो मज़बूत सपोर्ट पिलर, 22 केबिन वाली ट्रॉलियां, जिनमें हर एक में 4 लोग सफर कर सकें और एक बार में 88 श्रद्धालु आसानी से ऊपर पहुंच सकें। रोप-वे की लंबाई 470 मीटर और ऊंचाई 56 मीटर तय की गई है। सब कुछ सुनने में जितना शानदार लगता है, धरातल पर उतना ही अधूरा है।
फाइलों के बोझ तले दबा सपना

जटाशंकर धाम ट्रस्ट के निवृतमान अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल बताते हैं 2019 में घोषणा के बाद 2020-21 में भी बजट में चर्चा हुई थी, मगर आज तक काम शुरू नहीं हो पाया। हमारी फाइल वन विभाग और पर्यावरण विभाग में अटकी हुई है। विधायक राजेश शुक्ला बबलू लगातार अधिकारियों से मिल रहे हैं और जल्द काम शुरू कराने का प्रयास कर रहे हैं। यानी सरकारी प्रक्रियाओं की धीमी चाल इस परियोजना पर भारी पड़ रही है। जो काम दो-तीन साल में पूरा हो सकता था, वह आज भी बस चर्चाओं और आश्वासनों में घूम रहा है।
श्रद्धालु कहते हैं-अब तो कोई ठोस कदम उठाइए

हर साल बारिश और सावन में यहाँ हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। बुज़ुर्ग और बीमार लोग कई बार बीच रास्ते से ही लौट जाते हैं। कई श्रद्धालु सीढयि़ों पर बैठकर आराम करते हैं और कुछ तो मंदिर तक नहीं पहुंच पाते। स्थानीय निवासी रघुवीर सिंह कहते हैंजिस दिन घोषणा हुई थी, हमने सोचा था कि अगले सावन तक रोप-वे चलने लगेगा। पर पांच साल से हम सिर्फ सुन रहे हैं। कब तक सुनते रहेंगे?

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