250 एकड़ फसल जलमग्न, 50 से अधिक घर डूबे
इस प्राकृतिक आपदा से गोधना और आसपास के इलाकों में करीब ढाई सौ एकड़ में लगी धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। यही नहीं, 50 से ज्यादा घरों में पानी भर जाने से घरेलू सामान, अनाज, फर्नीचर और पशु चारे को भारी नुकसान पहुंचा है। कई किसानों ने बताया कि उन्होंने कर्ज लेकर धान की बुवाई की थी, लेकिन अब सारी मेहनत पानी में बह गई है।
पहले ही दी गई थी चेतावनी, फिर भी चुप रहा विभाग
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि नारायनपुर गंगा नहर का तटबंध पिछले कई महीनों से क्षतिग्रस्त था। करीब दो महीने पहले ग्रामीणों ने सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता (XEN) को लिखित शिकायत देकर इसकी मरम्मत की मांग की थी, लेकिन विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। ग्रामीणों का आरोप है कि जब तटबंध टूटा, तब उन्होंने तुरंत अधिकारियों को फोन कर सूचना दी, लेकिन एसडीएम समेत कोई अधिकारी समय पर मौके पर नहीं पहुंचा। यहां तक कि फोन कॉल तक रिसीव नहीं किए गए। प्रशासन की यह निष्क्रियता और लापरवाही अब पूरे गांव के लिए भारी संकट बन गई है।
गांव में नावें चलीं, सड़कें बंद, लोगों में आक्रोश
बाढ़ जैसे हालात पैदा होते ही गांव में नाव चलाने की जरूरत पड़ गई। कई घरों तक पहुंचने का रास्ता बंद हो गया और लोग ऊंचे स्थानों की ओर भागे। गुस्साए ग्रामीणों ने मुगलसराय-गोधना मुख्य मार्ग को जाम कर दिया और जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। उनका कहना था कि यदि विभाग समय रहते सक्रिय होता तो इस आपदा को टाला जा सकता था।
प्रशासन की देरी से पहुंच, राहत कार्य धीमी गति से शुरू
घटना के करीब 5-6 घंटे बाद प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा और तटबंध की मरम्मत का अस्थायी कार्य शुरू कराया। लेकिन तब तक एक से दो किलोमीटर क्षेत्र जलमग्न हो चुका था। ग्रामीणों का कहना है कि यदि तुरंत एक्शन लिया गया होता तो नुकसान की यह भयावह तस्वीर नहीं बनती।
राहत शिविर तो बने, लेकिन किसानों का दर्द बाकी
प्रशासन ने प्रभावितों के लिए अस्थायी राहत शिविर जरूर बनाए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ है। खेतों में खड़ी धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। कई किसान कर्ज लेकर बुवाई कर चुके थे, अब वे भरण-पोषण और कर्ज चुकाने के संकट में हैं। ग्रामीणों ने सरकार से तत्काल आर्थिक मुआवज़े की मांग की है।
पशु भी संकट में, जल निकासी धीमी
गांव में अभी भी कई घरों और खेतों में पानी भरा है। राहत व बचाव कार्य धीमी गति से हो रहा है। पशुओं को ऊंचे स्थानों पर पहुंचाया गया है। ग्रामीण खुद बाल्टी और पाइप से पानी निकालने में जुटे हैं। कोई प्रशासनिक मशीनरी इस कार्य में सहयोग नहीं कर रही है।
ग्रामीणों की चेतावनी
ग्रामीणों ने प्रशासन को चेताया है कि यदि नारायनपुर गंगा नहर के तटबंध की स्थायी मरम्मत नहीं की गई तो भविष्य में इससे भी बड़ी आपदा हो सकती है। उन्होंने इस घटना को केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की दुर्घटना बताया है।