टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने जिले में गिद्धों के संरक्षण की योजना पर गत वर्ष काम शुरू कर दिया था और इसके लिए तैयारियां भी पूरी थी, लेकिन अभी तक योजना पर कोई प्रभावी काम नहीं हो सका है। टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने भोपतपुरा रेंज में भीमलत क्षेत्र के जंगलों में भेडिय़ों के साथ गिद्धों के संरक्षण पर काम शुरू किया था। योजना पर कुछ काम हुआ भी, लेकिन वैज्ञानिक ²ष्टिकोण से गिद्धों का सर्वे और मॉनिटरिंग शुरू नहीं हो पाई है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में जिले में इस लुप्तप्राय प्रजाति के अस्तित्व को बचाने के लिए फिर से काम शुरू होगा तथा गिद्धों का कुनबा बढ़ेगा।
करीब तीन दशक पहले तक आबादी के आसपास किसी मुर्दा मवेशी के आसपास सैंकड़ों की तादात में नजर आने वाले गिद्ध देखते देखते ही रहस्यमयी तरीके से लुप्त प्राय हो गए। बूंदी जिले में भीमलत महादेव, गरड़दा, झरबंधा, भोपतपुरा, खजूरी का नाला कालदां, चंबल नदी व बरड़ क्षेत्र में गिद्ध बहुत कम संख्या में दिखाई देते हैं। यहां गिद्धों की चार प्रजातियां दिखाई देती है जिनमें भारतीय गिद्ध या लोंग बिल्ड वल्चर, रेड हेडेड ङ्क्षकग वल्चर या राजगिद्ध, इजिप्शियन वल्चर व सफेद पीठ वाले गिद्ध प्रमुख है। जिले में भारतीय गिद्धों की संख्या अधिक है लेकिन वास्तविक आंकड़े उपलब्ध नहीं है।
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के भीमलत क्षेत्र में डब्लूआईआई ने भेडिय़ों की संख्या का पता लगाने के लिए कैमरा ट्रेप लगाए थे, जिनकी रिपोर्ट अभी नहीं आई है। गिद्धों की गणना करने का प्रयास कर रहे हैं। जंगल में सोलर पंप लगाकर पेयजल की व्यवस्था व घास के मैदान बनाने का कार्य होने से भेडि़ए व गिद्ध बढऩे लगे है, जिनकी मॉनिटङ्क्षरग की जा रही है।
अरविन्द कुमार झा, उपवन संरक्षक एवं उपक्षेत्र निदेशक रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व, बूंदी