CG News: बच्चों के नाम पर व्यापक स्तर पर बंदरबांट
यहां के आदिवासी बच्चों को ऐसे युवा पढ़ा रहे हैं जिन्हे 10 से 12 हजार रुपए
मानदेय दिया जाता है। पोटाकेबिन जिले में भ्रष्टाचार करने के लिए दिखावटी ढांचा बनकर रह गए हैं। पोटाकेबिन से जुड़े जिम्मेदार यहां के बच्चों के नाम पर व्यापक स्तर पर बंदरबांट कर रहे हैं। उन्हें बच्चों के भविष्य से कोई मतलब नहीं है। बच्चों को बेहतर शिक्षा कैसे मिले इसके लिए कभी कोई प्रयास नहीं किए गए।
जिम्मेदार अधिकारियों ने यहां कभी भी नियमित शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पहल नहीं की। जिले के मुख्य मार्ग से दूरस्थ जंगलों तक फैले इन आवासीय आश्रमों में न तो नियमित शिक्षक हैं, न संसाधन और न ही भविष्य की कोई ठोस योजना। पूरा सिस्टम सिर्फ और सिर्फ 491 अनुदेशकों के कंधों पर टिका है, जो खुद अस्थायी हैं और नाम मात्र के मानदेय पर काम कर रहे हैं।
रेगुलर शिक्षकों का सेटअप नहीं है
कमल दास झाड़ी, डीएमसी बीजापुर: जिले के पोटाकेबिन आश्रमों में पहले से ही इस तरह की व्यवस्था चले आ रही है। यहां पर रेगुलर शिक्षकों का कोई सेटअप नहीं है। अनुदेशक ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं। भ्रष्टाचार के लिए दिखावटी ढांचा बने पोटाकेबिन 12वीं पास युवा 10-12 हजार में कर रहे काम बीजापुर जिले में बच्चों के नाम पर बंदरबांट जोरों पर आरएमएसए छात्रावासों की भी यही कहानी
कुछ अनुदेशक तो 12वीं पास भी नहीं
शासन की समग्र शिक्षा योजना के तहत जिले में संचालित 34 प्राथमिक पोटाकेबिन आश्रमों में एक भी नियमित शिक्षक नहीं है। हर आश्रम में 12 से 15 अनुदेशक तैनात हैं, जिनके जिम्मे पढ़ाई से लेकर बच्चों की देखरेख, स्वास्थ्य, भोजन और सुरक्षा तक की जिम्मेदारियां हैं। इन अनुदेशकों को मात्र 10 से 12 हजार रुपये प्रतिमाह में 24 घंटे सेवाएं देनी पड़ती हैं। स्थिति यह है कि कुछ अनुदेशक तो खुद 12वीं पास भी नहीं हैं। कैसे लाखों का बिल बने और बंदरबांट करें इस पर ही जोर
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पोटाकेबिन में बच्चों पर खर्च के नाम पर हर महीने लाखों के वारे-न्यारे किए जा रहे हैं। बच्चों के भोजन से लेकर उनके लिए किए जाने वाले अन्य इंतजाम में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है। इस भ्रष्टाचार में आश्रम के प्रभारियों से लेकर जिला स्तर के जिम्मेदार अधिकारी तक शामिल हैं। इन्हें बच्चों के भविष्य के कोई मतलब नहीं, इन्हें मतलब सिर्फ लाखों के बिल बनाने और बंदरबांट करने से है।
जिले में 26 माध्यमिक पोटाकेबिन छात्रावास भी हैं, जो राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत संचालित होते हैं। यहां केवल 71 अनुदेशक और 26 अधीक्षक काम कर रहे हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए ‘गेस्ट टीचर’ और शिक्षा मितान के भरोसे छात्रों का भविष्य गढ़ा जा रहा है।