कुपोषण दूर करने के नाम पर सरकार हजारों करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है पर प्रदेश को इससे मुक्ति नहीं मिली है। पोषण आहार के नाम पर अधिकारियों और ठेकेदारों के बैंक बेलेंस जरूर बढ़ रहे हैं। जबलपुर निवासी दीपांकर सिंह की ओर से इस संबंध में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई। अधिवक्ता अमित सिंह सेंगर ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश में कुपोषण की स्थिति भयावह है। शासन-प्रशासन केवल कागजी आंकड़ेबाजी कर वास्तविक तस्वीर को छिपाने की अनुचित कवायद कर रहा है। इसलिए वास्तविक हालात की रिपोर्ट तलब की जानी चाहिए।
जबलपुर हाईकोर्ट ने इसपर सुनवाई करते हुए प्रदेश के सभी जिलों के कलेक्टरों को कुपोषण की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के सख्त निर्देश दिए हैं। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया है। कोर्ट ने राज्य शासन व मुख्य सचिव सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है।
पोषण ट्रेकर व स्वास्थ्य सर्वे में मप्र दूसरे स्थान पर –
कोर्ट को अवगत कराया गया कि पोषण ट्रेकर 2.0 व स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार मप्र की स्थिति कुपोषण के मामले मेें देश में दूसरे स्थान पर है। यह स्थिति वाकई बेहद चिंताजनक है। इसकी बड़ी वजह शासकीय योजना व राष्ट्रीय खाद्य सुरखा व पर्यवेक्षण में गंभीर लापरवाही है। पोषण आहार में प्रोटीन-विटामिन की कमी के कारण बच्चे ठिगने और दुर्बल हो रहे हैं। अंडरवेट के सिलसिले में मप्र दूसरे स्थान पर आ गया है।
कैग की रिपोर्ट में रेखांकित हुआ भ्रष्टाचार –
याचिकाकर्ता के अनुसार अबोध बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं व स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण आहार के वितरण व परिवहन में गंभीर अनियमितता की शिकायतें सामने आई हैं। कैग की रिपोर्ट में पोषण आहार के परिवहन व गुणवत्ता में भ्रष्टाचार रेखांकित हुआ है। 858 करोड़ का घोटाला 2025 में ही उजागर हुआ है।
पूर्ववर्तियों की करतूतें उजागर हो सकती हैं
हाईकोर्ट ने कलेक्टरों से रिपोर्ट तलब की है। ऐसे में उनके पूर्ववर्तियों की करतूतें उजागर हो सकती हैं। दरअसल यह मामला तो महिला बाल विकास विभाग से संबंधित है लेकिन विभागीय अधिकारी को जिले के कलेक्टर को अपने हर कामकाज की रिपोर्ट देनी पड़ती है। आंगनबाड़ी केंद्रों और कुपोषण मिटाने के नाम पर अरबोें रुपए की गड़बड़ी हो चुकी है। जिलों के कलेक्टर इस बात से अनभिज्ञ हों, यह संभव नहीं है।
10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार:
कोर्ट को अवगत कराया गया कि प्रदेश में छह वर्ष तक के करीब 66 लाख बच्चे हैं, जिनमें से 10 लाख से अधिक कुपोषण से ग्रस्त हैं। इनमें से एक लाख 36 हजार बच्चे तो गंभीर कुपोषण से ग्रस्त हैं। वहीं महिलाओं में एनीमिया की दर 57 प्रतिशत है।
जबलपुर में ही एक करोड़ 80 लाख का किराया भुगतान:
इधर कुपोषण के नाम पर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। अकेले जबलपुर में एक करोड़ 80 लाख का किराया आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए भुगतान किया गया जिनमें बच्चे नाममात्र के हैं। मप्र में 40 से 50 बच्चे प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति संख्या अत्यंत न्यून है। इसके बावजूद 40-50 बच्चों के हिसाब से मध्यान्ह भोजन व अन्य सुविधाओं का भुगतान जारी है। यही भ्रष्टाचार कुपोषण का मूलाधार है।