scriptChaturmas 2025 Date: चातुर्मास में संत क्यों एक ही जगह पर करते हैं प्रवास, जानें डेट और जैन धर्म में महत्व | Chaturmas 2025 Date Why Jain saints stay one place during Chaturmas Vrat me kya hota hai know date importance in Jainism | Patrika News
पूजा

Chaturmas 2025 Date: चातुर्मास में संत क्यों एक ही जगह पर करते हैं प्रवास, जानें डेट और जैन धर्म में महत्व

Chaturmas 2025 Importance In Jainism: चातुर्मास का हिंदू धर्म में तो महत्व है ही, जैन धर्म में भी बड़ा महत्व है। चातुर्मास में जैन संत एक ही जगह पर प्रवास करते हैं। आइये जानते हैं चातुर्मास 2025 कब से शुरू हो रहा है, हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में चातुर्मास का महत्व क्या है।

भारतJul 01, 2025 / 05:51 pm

Pravin Pandey

Chaturmas 2025 Date

Chaturmas Vrat me kya hota hai: चातुर्मास क्या है, इस व्रत में क्या होता है (Photo Credit: Pixabay)

Chaturmas 2025 Start Date And End Date: धर्म ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानी देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देवउठनी एकादशी तक का 4 माह का समय चातुर्मास (Chaturmas 2025 Date) कहलाता है। यह मुख्य रूप से वर्षा ऋतु का समय और भगवान विष्णु का निद्राकाल माना जाता है।
इस साल 2025 में देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को है और देवउठनी एकादशी 1 नवंबर 2025 को है यानी चातुर्मास 6 जुलाई 2025 से 1 नवंबर 2025 तक (What is the Chaturmas period) है।

चातुर्मास का हिंदू धर्म और जैन धर्म में महत्व

मान्यता है कि भगवान विष्णु इस समय विश्राम करते हैं और उनकी जगह भोलेनाथ सृष्टि का संचालन करते हैं। इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, बस विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इस दौरान भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए। इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकते हैं पर विवाह समेत मांगलिक काम नहीं होते हैं। इस समय जैन संत एक ही जगह रूककर प्रवास करते हैं। साथ ही स्वाध्याय प्रवचन आदि करते हैं।

इसलिए सभी धर्मों के साधु संत करते हैं चातुर्मास में विश्राम

चातुर्मास क्यों मनाया जाता है ये सवाल मन में होगा तो ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा से इसका जवाब जान सकते हैं। इनके अनुसार धार्मिक दृष्टि से चातुर्मास का ये चार महीना भगवान विष्णु का निद्राकाल माना जाते है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इस दौरान सूर्य और चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है।
इस समय वातावरण में अनेक जीव-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं। इसलिए साधु-संत, तपस्वी इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं। इसके अलावा लोगों के आने-जाने से जीवों को परेशानी होती है, इस कारण भी संत एक ही जगह पर रहना पसंद करते हैं।
ये भी पढ़ेंः बुधवार व्रत से मिलता है बुद्धि और ज्ञान, जानें विधि और उद्यापन का समय

चातुर्मास में क्या होता है (Chaturmas Kya Hota Hai)

ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। चातुर्मास में भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। भगवान विष्णु के विश्राम करने से सभी तरह के मांगलिक कार्य रूक जाते हैं।
इस तरह भगवान श्री नारायण की प्रिय हरिशयनी एकादशी या फिर कहें देवशयनी एकादशी से सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत आदि पर अगले चार मास के लिए विराम लग जाएगा। देवशयनी एकादशी से संन्यासी लोगों का चातुर्मास व्रत आरंभ हो जाता है। चातुर्मास का समापन 1 नवंबर 2025 को होगा।

भगवान विष्णु, शिव पूजा और दान का विशेष फल

ज्योतिषाचार्य के अनुसार चातुर्मास में पूजा और ध्यान करने का विशेष महत्व है। देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करेंगे। इस दौरान शिवजी सृष्टि का संचालन करेंगे। इन दिनों में शिवजी और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु और शिवजी का अभिषेक करना चाहिए।
विष्णुजी को तुलसी तो शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने चाहिए। साथ ही ऊँ विष्णवे नम: और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। इन दिनों में भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है। साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करना चाहिए।
ये भी पढ़ेंः Sawan 2025 Rudrabhishek Date: सावन 2025 में इन तिथियों पर रुद्राभिषेक का है अधिक महत्व, ज्योतिषाचार्य से जानें डेट और फल

चातुर्मास में इन पर्वों की रहती है धूम

चातुर्मास में सबसे पहले सावन का महीना आता है। सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस माह में भगवान शिव की अराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसके बाद गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक भगवान गणेश की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।


चातुर्मास का जैन धर्म में महत्व (Chaturmas 2025 Importance In Jainism)

चातुर्मास यानी चौमासा का हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में बड़ा महत्व है। संत और आस्थावान लोग इसके नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं। इस समय कई बड़े त्योहार और सावन के अनुष्ठान पड़ते हैं। आइये जानते हैं जैन धर्म में चातुर्मास का महत्व क्या है
1.चातुर्मास में सभी जैन संत यात्रा रोक देते हैं और मंदिर, आश्रम या संत निवास पर ही रहकर यम और नियम का पालन करते हैं। जैध धर्म की सीखों का मानें तो ये चार माह व्रत, साधना और तप के होते हैं।
2. चातुर्मास में जैन धर्म के मानने वाले मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा आदि करते हैं और गुरु के सत्संग का लाभ लेते हैं। संत इनका मार्गदर्शन करते हैं। यह हर तरह की जिज्ञासा, इच्छा को शांत करने और भौतिक सुख सुविधा को त्याग कर संयमित जीवन जीने का समय होता है।
3. जैन धर्म में चातुर्मास के दौरान आमजन क्रोध नहीं करने का अभ्यास करते हैं। इन 4 महीनों में व्यर्थ वार्तालाप, अनर्गल बातें, गुस्सा, ईर्ष्या, अभिमान जैसे भावनात्मक विकारों से बचने की कोशिश करते हैं।
ये भी पढ़ेंः July 2025 Rashifal: इन 3 राशियों को अगले 31 दिन मिलेगा भाग्य का साथ, करियर कारोबार में मिलेगी तरक्की, घर में रहेगी खुशहाली

4. चातुर्मास में जैन समुदाय के लोग पंखा, कूलर, टीवी, मनोरंजन के साधनों और अन्य सुख-सुविधाओं से दूरी बनाने लगते हैं। इन 4 महीनों में सफाई और जीव हत्या से बचते हुए सिर्फ घर पर बना भोजन ही करते हैं।
5. चौमासे में ही जैन धर्म का प्रमुख पर्व पर्युषण मनाया जाता है। यदि वर्षभर जो विशेष परंपरा, व्रत आदि का पालन नहीं कर पाते वे 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ और साधु-संतों की सेवा में जुट जाते हैं। इस समय आमजन मंगलकामना करते हैं।
6. चातुर्मास में जैन धर्म का महापर्व सम्वत्सरी भी आता है। यह चार माह व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का भागीरथ प्रयास भी है।

    Hindi News / Astrology and Spirituality / Worship / Chaturmas 2025 Date: चातुर्मास में संत क्यों एक ही जगह पर करते हैं प्रवास, जानें डेट और जैन धर्म में महत्व

    ट्रेंडिंग वीडियो