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Iran-Israel War: ईरान और इजरायल में था पहले दोस्ताना ! इस घटना के बाद से बने एक दूसरे के जानी दुश्मन

Israel-Iran Conflict 2025: इज़रायल और ईरान के बीच खुला युद्ध शुरू हो गया है, जिसमें दोनों देशों ने एक-दूसरे के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर मिसाइलें दागी हैं।

भारतJun 17, 2025 / 05:32 pm

M I Zahir

Iran- Israel Conflict

Iran- Israel Conflict

Israel-Iran Conflict 2025 : एक दौर था जब ईरान और इज़रायल पश्चिम एशिया के वो ‘अविश्वसनीय साझेदार’ थे, जिन्हें अमेरिकी नीतियों ने एक-दूसरे से जोड़ा था (Israel Iran conflict 2025), लेकिन अब-दशकों की छाया लड़ाइयों के बाद-दोनों देश खुले युद्ध में आमने-सामने खड़े हैं। इज़रायल ने 13 जून की सुबह ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों और सैन्य ठिकानों पर एक सटीक और घातक हमला (Iran nuclear strike) किया। इस हमले में न केवल वरिष्ठ IRGC अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए, बल्कि तेहरान ने नागरिकों के मारे जाने का भी दावा किया। यह हमला (Tel Aviv missile attack)उस वक्त हुआ जब ईरान और अमेरिका के बीच यूरेनियम संवर्धन को लेकर कूटनीतिक वार्ता शुरू होने वाली थी-जिसे ईरान शांतिपूर्ण, लेकिन इज़रायल अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। इसी दिन शाम को ईरान ने जवाब दिया-बैलिस्टिक मिसाइलों की बारिश कर दी। इनमें से कुछ इज़रायल की कुख्यात ‘आयरन डोम’ रक्षा प्रणाली को चीरती हुई तेल अवीव के मध्य सैन्य क्षेत्रों तक जा पहुँचीं।

जब तक अयातुल्ला खामेनेई जिंदा हैं, युद्ध रुकेगा नहीं : नेतन्याहू

अब युद्ध पाँचवें दिन में प्रवेश कर चुका है, और इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि “जब तक अयातुल्ला खामेनेई जिंदा हैं, युद्ध रुकेगा नहीं।” पश्चिम एशिया में गाजा संघर्ष के बाद यह सबसे बड़ा सैन्य टकराव बन चुका है।

अतीत से वर्तमान तक: ‘जब तेहरान और यरुशलम साथ थे’

1948 में जब अधिकतर मुस्लिम देश इज़रायल को नकार रहे थे, ईरान और तुर्की वो अपवाद थे, जिन्होंने इस्राइली राष्ट्र को मान्यता दी। अमेरिकी प्रभाव और शाह पहलवी की पश्चिमोन्मुख नीति ने इस साझेदारी को गहराया।

इस्लामी क्रांति ने शाह को उखाड़ फेंका

मोसाद और SAVAK, इज़रायल और ईरान की खुफिया एजेंसियों ने मिलकर काम किया। इज़रायल ने ईरान को कच्चा तेल खरीदने, बुनियादी ढांचा विकसित करने, और सैन्य तकनीक साझा करने में मदद दी, लेकिन फिर आया 1979 का तूफ़ान—इस्लामी क्रांति ने शाह को उखाड़ फेंका और अयातुल्ला खुमैनी की अगुआई में ईरान एक कट्टर इस्लामी गणराज्य में बदल गया। इसके साथ ही इज़रायल के साथ सभी रिश्ते टूट गए।

प्रॉक्सी वॉर से लेकर डायरेक्ट स्ट्राइक तक

ईरान ने फिलिस्तीनी संगठनों—हिजबुल्लाह, हमास और हूथियों को समर्थन देना शुरू किया, जबकि इज़रायल ने उन्हें आतंकवादी समूह करार दिया। वर्षों तक छाया युद्ध चला, जिसमें हत्याएं, साइबर हमले, और गुप्त मिशन शामिल रहे। लेकिन अब यह लड़ाई आधिकारिक जंगी मोर्चे में बदल चुकी है।

फिर हुए मिसाइल हमले और जवाबी कार्रवाई

ईरान ने 2023 में गाजा पर इज़रायली हमले के बाद हिजबुल्लाह को सक्रिय किया। फिर हुए मिसाइल हमले और जवाबी कार्रवाई ने इस संघर्ष और तेज़ कर दिया।

नेतन्याहू का निर्णायक हमला

सन 2024 में जब इज़रायल ने प्रॉक्सी नेटवर्क को कमजोर कर दिया, तब नेतन्याहू ने सीधा हमला करने का फ़ैसला किया। अब ईरान की परमाणु साइटों को निशाना बनाकर इज़रायल ने “लाल रेखा पार कर दी”, जैसा कि ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने कहा। तेहरान इसे कूटनीति को खत्म करने की साजिश बता रहा है, वहीं इज़रायल इसे “रक्षा के नाम पर एक निर्णायक प्रहार” कह रहा है।

युद्ध की लपटों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं

इज़रायल और ईरान के इस उग्र टकराव ने वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक हलचल बढ़ा दी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दोनों देशों से संयम बरतने और बातचीत की ओर लौटने की अपील की है, साथ ही चेताया कि “अगर यह संघर्ष फैला, तो पूरा क्षेत्र तबाही की आग में झुलस सकता है।”

अमेरिका खुद एक अजीब कूटनीतिक संकट में

अमेरिका, जो खुद ईरान से परमाणु समझौते को लेकर वार्ता की तैयारी कर रहा था, अब एक अजीब कूटनीतिक संकट में है। सऊदी अरब और कतर जैसे क्षेत्रीय देश जो हाल तक मध्यस्थता के प्रयास कर रहे थे, अब स्थिति को “नियंत्रण से बाहर” मान रहे हैं।

आगे क्या? बातचीत या निर्णायक युद्ध ?

विश्लेषक मानते हैं कि अब मामला सीधा परमाणु डिप्लोमेसी बनाम सैन्य रणनीति में बदल चुका है। जी-20 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई जा सकती है, जहाँ युद्धविराम का मसौदा पेश किया जाएगा। तेहरान के सूत्रों के अनुसार, ईरान अपने परमाणु संयंत्रों को भूमिगत करने और सैन्य रूप से घेराबंदी बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। वहीं इज़रायल ने अपनी रिज़र्व मिलिट्री यूनिट्स को एक्टिवेट किया है और लेबनान सीमा पर भी सेना बढ़ाई है।

साइबर मोर्चा भी खुल गया है

इस जंग का एक कम चर्चित, लेकिन बेहद खतरनाक पहलू है -साइबर युद्ध। इज़रायली मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हमले से ठीक पहले तेहरान स्थित राष्ट्रीय डेटा नेटवर्क पर साइबर हमला किया गया, जिससे परमाणु निगरानी कैमरे और ऊर्जा संयंत्रों के कंट्रोल सिस्टम प्रभावित हुए। वहीं ईरान ने दावा किया है कि उसने तेल अवीव के कुछ फाइनेंशियल नेटवर्क्स में घुसपैठ की है। यह एक ऐसा फ्रंट है, जो बिना धमाके के भी देशों को हिला सकता है।

परमाणु मुद्दा अब अस्तित्व का सवाल बन गया

बहरहाल दोनों देश अब ऐसे मोड़ पर हैं, जहां से लौटना बेहद कठिन लगता है। बातचीत की मेज़ ठंडी पड़ चुकी है और परमाणु मुद्दा अब अस्तित्व का सवाल बन गया है। इज़रायल का कहना है—”या तो अब, या फिर कभी नहीं।” और ईरान कहता है -“हम चुप नहीं बैठेंगे।” अब दुनिया की नज़रें इस पर टिकी हैं कि ये आग पश्चिम एशिया तक सीमित रहती है या वैश्विक स्तर पर फैलती है।

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