ईरान पर किए गए हवाई हमले के साथ एक नया और खतरनाक युद्ध शुरू
ध्यान रहे कि इज़राइल की ओर से शुक्रवार को ईरान पर किए गए हवाई हमले के साथ एक नया और खतरनाक युद्ध शुरू हो गया है, जिसने न केवल पश्चिम एशिया बल्कि वैश्विक स्तर पर चिंता की लहरें फैला दी हैं। इस युद्ध में अब तक ईरान ने 220 से अधिक नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि की है, जबकि इज़राइल ने 24 लोगों की मौत की जानकारी दी है।
परमाणु विवाद और दोनों देशों की स्थिति
ईरान ने परमाणु हथियार बनाने से इनकार किया है और कहा है कि वह NPT (परमाणु अप्रसार संधि) के तहत शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा विकसित करने का हकदार है। इज़राइल, जो NPT का हिस्सा नहीं है, के पास परमाणु हथियार होने की व्यापक धारणा है लेकिन उसने इसकी कभी पुष्टि नहीं की।0
तेल क्षेत्र में तनाव: वैश्विक ऊर्जा बाजार पर संकट
मध्य पूर्व, जो विश्व की तेल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, इस संघर्ष से बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। G7 देशों ने स्पष्ट किया है कि वे ऊर्जा बाजारों में स्थिरता बनाए रखने के लिए आपसी समन्वय करेंगे। तेल की आपूर्ति में बाधा से भारत समेत कई देश महंगाई और ईंधन संकट का सामना कर सकते हैं।
अमेरिका की भूमिका और ट्रंप का रुख
डोनाल्ड ट्रंप ने इस संघर्ष में अमेरिका की भागीदारी से इनकार किया है लेकिन उन्होंने यह माना कि उन्हें इज़राइली हमले की पहले से जानकारी थी और उन्होंने इसे “उत्कृष्ट” करार दिया। ट्रंप ने यह भी कहा कि सभी लोगों को “तुरंत तेहरान खाली कर देना चाहिए।”
भारत की प्रतिक्रिया: संतुलित और सतर्क नीति
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैस्वाल ने कहा कि भारत स्थिति पर करीब से नजर रख रहा है, खासकर परमाणु स्थलों पर हुए हमलों की खबरों को लेकर। भारत ने सभी पक्षों से संयम बरतने और बातचीत से समाधान की अपील की है। भारत ने किसी भी पक्ष का सीधा समर्थन नहीं किया है। यह रुख उसकी विदेश नीति की उस परंपरा को दर्शाता है जिसमें भारत रणनीतिक तटस्थता और संतुलन बनाए रखता है।
भारत के लिए क्या हैं मुख्य चुनौतियाँ ?
भारत की बड़ी तेल आपूर्ति ईरान और मध्य पूर्व क्षेत्र से होती है। युद्ध बढ़ने पर तेल कीमतों में उछाल और आपूर्ति बाधित होने की आशंका है। भारत के इज़राइल के साथ रक्षा और तकनीकी साझेदारी मजबूत है, जबकि ईरान के साथ उसका ऊर्जा और सांस्कृतिक सहयोग भी गहरा है। ऐसे में किसी एक पक्ष का समर्थन करना मुश्किल और जोखिमपूर्ण हो सकता है।
इस मामले पर सुलगते हुए सवाल
क्या भारत UNSC में कोई भूमिका निभा सकता है? भारत की रणनीतिक तेल भंडारण नीति क्या कहती है? इस टकराव का असर भारत-खाड़ी देशों के व्यापार पर कितना होगा?
भारत के लिए इस संघर्ष के दो प्रमुख प्रभाव
ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान: मध्य पूर्व क्षेत्र से भारत को ऊर्जा आपूर्ति होती है, और इस संघर्ष के कारण आपूर्ति में व्यवधान आ सकता है, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। कूटनीतिक चुनौती: भारत दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है, और इस संघर्ष के कारण उसे कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने में चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
इस मुददे पर भारत की नीति
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस संघर्ष में संयम और शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में है। लेकिन अगर यह युद्ध लंबा खिंचता है या अंतरराष्ट्रीय पक्षधरता गहराती है, तो भारत को अपनी रणनीति में लचीलापन और विवेक दोनों का परिचय देना होगा। भारत की नीति इस संघर्ष में संयम, संतुलन और शांतिपूर्ण समाधान की ओर अग्रसर है। वह इस संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।