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अफ़ग़ानिस्तान के एयरबेस पर अमेरिका का कब्ज़ा कायम रहेगा, Donald Trump ने कतर में क्यों कही ये बात,जानें

Trump on Bagram Airbase: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कतर एयरबेस से अमेरिकी सैनिकों को संबोधित करते हुए दुनिया को एक नया संदेश दिया है।

भारतMay 15, 2025 / 10:13 pm

M I Zahir

Trump Babgram Airbase

Trump Babgram Airbase

Trump on Bagram Airbase: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने ​कहा है कि अफगानिस्तान के एयरबेस पर अमेरिका का कब्ज़ा कायम रहेगा (Bagram Airbase US control) और इसे किसी अन्य देश को नहीं सौंपा जाएगा। उन्होंने कतर एयरबेस से अमेरिकी सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा, “यह रणनीतिक रूप से अहम जगह है और हम इसे छोड़ नहीं सकते।” अब वह इस एयरबेस से भी नहीं हट रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने कतर के अल-उदीद एयरबेस पर अमेरिकी सैनिकों को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान में शां​ति (Trump statement on war and peace) के साथ ही कहा कि दुनिया भर में विवादों का समाधान करना उनकी प्राथमिकताओं में है, लेकिन अमेरिका अपने साझेदारों की रक्षा के लिए ताकत के इस्तेमाल से पीछे नहीं हटेगा। ध्यान रहे कि अमेरिका ने 2001 में अफ़ग़ानिस्तान ( Afghanistan) में आतंक के खिलाफ जंग छेड़ी थी, लेकिन 20 साल बाद भी अफ़ग़ान जनता को स्थायी शांति नहीं मिल सकी है।

कतर-अमेरिका डील: 42 अरब डॉलर का रक्षा समझौता

ट्रंप ने अपने भाषण में कतर और अमेरिका के बीच 42 अरब डॉलर के रक्षा सौदे का जिक्र करते हुए कहा कि कतर आने वाले वर्षों में अल-उदीद एयरबेस में 10 अरब डॉलर का निवेश करेगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका अपनी सैन्य ताकत को और उन्नत बनाने के लिए तैयार है, और जल्द ही F-47 और F-55 जैसे अत्याधुनिक फाइटर जेट्स अमेरिकी वायुसेना को सौंपे जाएंगे।

ट्रंप य​ह एयरबेस छोड़ने से इनकार क्यों कर रहे हैं ?

बगराम एयरबेस रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। यह चीन, रूस और ईरान के क़रीब है। ट्रंप इसे छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि यहां से चीन की गतिविधियों पर सीधी निगरानी रखी जा सकती है। रूस और मध्य एशिया में उठापटक पर कड़ा नियंत्रण संभव है। यहां से ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी भी आसान होती है। वहीं अफगानिस्तान में अब भी अलकायदा और ISIS जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं।

साउथ एशिया में अपनी आंखें और ताकत नहीं गंवाना चाहते

ट्रंप मानते हैं कि बगराम को छोड़ने का मतलब होगा .”साउथ एशिया में अपनी आंखें और ताकत गंवा देना”। तालिबान दोबारा सत्ता में है। महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर फिर अत्याचार बढ़ रहे हैं। अमेरिका की वापसी को कमजोरी माना गया है। ट्रंप इससे बचना चाहते हैं और बगराम को स्थायी सैन्य मौजूदगी के रूप में देख रहे हैं। ट्रंप मानते हैं कि अगर भविष्य में अफगानिस्तान में हालात बिगड़ते हैं, तो अमेरिका को वहां फिर से बड़ी सैन्य कार्रवाई करनी पड़ सकती है। ऐसे में बगराम एक रेडी-बेस बना रहेगा।

बगराम एयरबेस और अमेरिकी सेना कनेक्शन

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार बगराम एयरबेस, अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से लगभग 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह परवान प्रांत में स्थित है और हिंदूकुश पर्वतमाला के करीब बना हुआ है। बगराम एयरबेस का निर्माण 1950 के दशक में अफगान एयरफोर्स के लिए किया गया था। सन 1979 में सोवियत संघ की ओर से अफगानिस्तान पर हमले के बाद, इस एयरबेस का उपयोग सोवियत सेना ने मुख्य संचालन केंद्र के रूप में किया था। अमेरिका और नाटो बलों ने सन 2001 में अफगानिस्तान में युद्ध शुरू करने के बाद, बगराम एयरबेस को अपने सबसे बड़े और महत्वपूर्ण बेस में बदल दिया था।

अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य अभियानों का नर्व सेंटर

रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक बगराम एयरबेस को अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य अभियानों का नर्व सेंटर माना जाता था। यह एक हाई-सिक्योरिटी मिलिट्री ज़ोन है, जिसमें दो रनवे, कई हैंगर, बंकर, कंट्रोल टावर, और अमेरिकी इंटेलिजेंस इकाइयां शामिल थीं। अमेरिका की CIA इकाई का भी यहां गुप्त ऑपरेशन सेंटर था।यह बेस ड्रोन ऑपरेशन, एयर स्ट्राइक, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट और खुफिया गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होता रहा है। यहां से अमेरिका ने तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ कई ऑपरेशन चलाए। बगराम एयरबेस पर एक समय पर 10,000 से अधिक अमेरिकी और नाटो सैनिक तैनात थे। इसके अलावा यहां हजारों अफगान सुरक्षा कर्मी, कॉन्ट्रैक्टर्स और सपोर्ट स्टाफ भी कार्यरत थे। हालांकि, 2021 में अमेरिका की वापसी के बाद यह बेस तालिबान के नियंत्रण में चला गया था। ध्यान रहे कि अमेरिका ने 2020 के अंत तक बगराम से आधे से अधिक सैन्य बलों को हटा लिया था और जुलाई 2021 में इसे पूरी तरह से खाली कर दिया था।

अमेरिका कब पहुंचा अफ़ग़ानिस्तान ?

तारीख: 7 अक्टूबर 2001
ऑपरेशन: एंड्योरिंग फ़्रीडम (Operation Enduring Freedom)
कारण: 9/11 आतंकी हमलों के बाद अल-कायदा और तालिबान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई
अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 को हुए सबसे बड़े आतंकी हमलों के बाद, तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अफ़ग़ानिस्तान में सैन्य अभियान शुरू करने की घोषणा की थी। ओसामा बिन लादेन और उसकी आतंकी संगठन अल-कायदा को पनाह देने वाले तालिबान शासन को निशाना बनाया गया। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया, और कुछ ही हफ्तों में काबुल से तालिबान को हटा दिया गया।

अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई

उल्लेखनीय है कि यह युद्ध लगभग 20 साल तक चला -2001 से 2021 तक। अमेरिका ने इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना, आतंकवाद विरोधी अभियान और पुनर्निर्माण के प्रयास किए। तब 2,400 से अधिक अमेरिकी सैनिकों ने इस युद्ध में जान गंवाई, और अरबों डॉलर खर्च हुए।

अपनी वापसी का रास्ता और तालिबान की वापसी

गौरतलब है कि अमेरिका ने अगस्त 2021 में अचानक अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लिया, और उसी महीने तालिबान ने फिर से सत्ता पर कब्जा कर लिया। इस वापसी को कई जानकार “जल्दबाज़ी और असंगत” निर्णय मानते हैं, जिससे अफ़ग़ानिस्तान फिर से अस्थिरता की ओर लौट गया। बहरहाल भारत और पाकिस्तान को जंग न करने की सलाह देने वाला अमेरिका अपने लिए अपनी नीति अलग रखता है। लादेन के मरने और अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता बदलने के बावजूद दो दशक बाद भी वह बगराम एयरबेस से हटना नहीं चाहता और चीन और ईरान पर नजर रखने के लिए वहीं जमे रहना चाहता है।

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