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82 पदों पर 157 की थी फर्जी नियुक्ति, 9 विभाग में पोस्ट नहीं होने के बाद भी बन गए थे असिस्टेंट प्रोफेसर

डॉ. हरिसिंह गौर विवि में वर्षों पहले हुई फर्जी नियुक्तियों पर हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। विश्वविद्यालय की भर्ती प्रक्रिया शुरू से ही विवादों एवं सवालों के घेरे में रही है। विवि में 82 पदों पर 157 असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति कर दी गई थी

सागरAug 14, 2025 / 11:39 am

रेशु जैन

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वर्ष 2019 में 4 के मिले थे फर्जी दस्तावेज, विवि ने किया था टर्मिनेट

– बार-बार विज्ञापन जारी होने के बावजूद नहीं थी सही जानकारी

सागर . डॉ. हरिसिंह गौर विवि में वर्षों पहले हुई फर्जी नियुक्तियों पर हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। विश्वविद्यालय की भर्ती प्रक्रिया शुरू से ही विवादों एवं सवालों के घेरे में रही है। विवि में 82 पदों पर 157 असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति कर दी गई थी। 9 विभाग में पोस्ट नहीं होने के बावजूद मनमाने तरीके से नियुक्ति हुई। दरअसल हाईकोर्ट ने वर्ष 2013 से पहले जो नियुक्तियां हुई थीं, उन्हें पहले ही अवैध करार दिया था। कमेटी से सिफारिश के बाद कुलाध्यक्ष ने सभी उम्मीदवारों का पुन: साक्षात्कार और पुनर्मूल्यांकन करने की सलाह दी थी। 2020 में, विश्वविद्यालय ऐसा करने के लिए सहमत हो गया, लेकिन 2022 में अचानक बिना किसी नए चयन के शेष 82 सहायक प्रोफेसरों को पुष्टि करने का निर्णय ले लिया।
यह लिया था ईसी में निर्णय

14 नवंबर 2022 को कार्य परिषद ने माना कि 13 वर्ष पहले आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों के साथ-साथ कठोर चयन प्रक्रिया से गुजरने के बाद सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए। अभ्यर्थियों की जांच और साक्षात्कार आयोजित करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। कार्यकारी परिषद ने कहा कि वे अपनी नियुक्ति की अनिश्चितता के कारण पहले ही काफी मानसिक पीड़ा और तनाव झेल चुके हैं, इसलिए यह निर्णय लिया गया कि विज्ञापन के विरुद्ध नियुक्त सहायक प्रोफेसरों की विज्ञापित रिक्तियों की सीमा तक अर्थात 82 को स्थायी किया जाए। ईसी के इस निर्णय के बाद योग्य कर्मचारियों को मैरिट के आधार पर नियुक्ति नहीं मिली। बगैर इंटरव्यू की प्रक्रिया के अवैध नियुक्ति की गई। जिससे योग्य उम्मीदवार नियुक्ति का इंतजार ही करते रह गए। हाईकोर्ट ने 14 नवंबर 2022 के इसी निर्णय को खारिज कर दिया है। इस निर्णय की आड़ में विवि प्रशासन ने 157 पदों पर नियुक्तियां कर दी थीं।
विज्ञापन में नहीं दी थी सही जानकारी

नियुक्ति में विज्ञापन में भी पदों की जानकारी सही नहीं दी गई। इंटरव्यू प्रक्रिया भी बेहद गोपनीय ढंग से दिल्ली से की गई। इतना ही नहीं नियुक्ति होने के बाद भी नाम चार दिन बाद सार्वजनिक किए, वह भी विरोध के स्वर उठने एवं नियुक्ति प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह लगने पर। इस बीच ज्वाइंनिंग करा दी गई। रोस्टर नियमों का उल्लंघन किया गया।
बार-बार जारी हुआ विज्ञापन

विज्ञापन में भी बाद में दी थी जानकारी विवि में रिक्त विभिन्न पदों के विरुद्ध प्रशासन ने 30 अक्टूबर 2010 को रोलिंग विज्ञापन जारी किया था। इसमें यह जानकारी नहीं थी कि विवि में कितने पद और किस वर्ग के लिए रिक्त है। इस पर हंगामा हुआ था। अक्टूबर 2012 में प्रशासन ने विवि में वर्गवार रिक्त पदों की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड कर दी। इसमें भी पूरी जानकारी नहीं दी गई।
157 में 94 असिस्टेंट प्रोफेसर कर करे कार्यजानकारी के अनुसार विवि में जो 157 नियुक्ति हुई थी, उनमें 94 असिस्टेंट प्रोफेसर कार्य कर रहे हैं। 4 को फर्जी नियुक्ति के आधार पर वर्ष 2019 में निकाला जा चुका है। इसमें तीन उर्दू विभाग और एक पत्रकारिता विभाग से शामिल थे। पत्रकारिता विभाग में एमजे की फर्जी मार्कशीट के आधार पर नियुक्ति दे दी गई थी। एमजे की मार्कशीट नकली थी। बीजे किया था और एमजे की नकली मार्कशीट लगाकर नियुक्ति पाई थी। वहीं उर्दू विभाग में आवेदन के साथ एप्लीकेशन के फार्म नहीं होने पर 3 को टर्मिनेट किया गया। वहीं 157 में से दर्जनों को लोगों को प्रमोशन भी दिया जा चुका है।
यह है ऐतिहासिक फैसला

इस फैसले का हमें वर्षों से इंतजार था। अब उन सभी लोगों को मौका मिलेगा जिसे ऑफर लेटर मिले थे। साक्षात्कार के बाद नियुक्ति की जाएगी। नवंबर में विवि को पुन: नियुक्ति करनी है। मैरिट के आधार पर नियुक्ति मिलने से सभी के साथ न्याय होगा।डॉ. दीपक गुप्ता, याचिकाकर्ता

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