यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बन चुका है, बल्कि अब यह छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थलों में अपनी जगह बनाने की ओर आगे बढ़ रहा है। इस मंदिर की नींव वर्ष 1941 में तब रखी गई, जब निषाद समाज के एक मुखिया ने राजिम के कुलेश्वर महादेव मंदिर से प्रेरणा लेकर खारून नदी के संगम पर भी एक भव्य शिव मंदिर निर्माण का संकल्प लिया। समाज के सहयोग से वर्षों चले कठिन परिश्रम के बाद यह सपना साकार हुआ।
नदी से पत्थर निकालकर बनाया मंदिर
मंदिर निर्माण की प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण रही। नदी के बीच से पत्थरों को निकालकर, उन्हें आकार देना एक कठिन कार्य था, जिसे कुशल शिल्पकारों ने वर्षों की मेहनत से पूरा किया। लगभग 1980 तक जगती निर्माण पूर्ण हुआ और 1984 में मंदिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ। खास बात यह है कि गर्भगृह उत्तराभिमुख है, जबकि जल प्राणालिका दक्षिण दिशा में स्थित है। धमतरी के पास के एक गांव के शिल्पकार हरि राम द्वारा निर्मित शिवलिंग यहां स्थापित है।
लक्ष्मण झूला बना नया आकर्षण
मंदिर परिसर में महादेव घाट की तर्ज पर लक्ष्मण झूले का निर्माण किया है, गया जो काफी आकर्षक है। पर्यटक इस झूले को देखने दूर-दूर से आ रहे है। जिससे ठकुराइन टोला आस्था के साथ पर्यटन का केंद्र बन गया है। इस झूले का लोकार्पण नहीं किया गया है, लेकिन फिर लोग यहां पहुंचकर आनंद ले रहे है। लक्ष्मण झूले से नदी पार कर मंदिर तक पहुंचना सुविधाजनक और रोमांचक बन जाएगा।
50 हजार से अधिक कांवरिया ने किया जलाभिषेक
शिव मंदिर में सावन माह के तीसरे सोमवार को 50 हजार से अधिक कांवरिया ने जलाभिषेक किया । यहां पर भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष जितेंद्र वर्मा द्वारा पिछले 14 साल से कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। टोला घाट में खारुन नदी के मध्य प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। वहां पर अभी बारिश का पानी नदी में अधिक होने के कारण भक्तों को मंदिर तक पहुंचने में परेशानी तो जरूर होगी, लेकिन भक्तों का मनोबल देखते ही बन रहा है। नाव की व्यवस्था रखी गई है जिसके माध्यम से शिव भक्त मंदिर तक पहुंच रहे हैं।
कैसे पहुंचें ठकुराइन टोला शिव मंदिर
यह मंदिर रायपुर से लगभग 18-20 किलोमीटर की दूरी पर, भांठागांव, दतरेंगा और परसदा होते हुए खट्टी ग्राम के पास स्थित है। खट्टी से खारून नदी तक एक सीसी रोड पहुंच मार्ग है। नदी पर बने पुल को पार करते ही संगम पर स्थित यह दिव्य मंदिर दिखाई देता है। अब यह स्थान केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के पर्यटन मानचित्र पर भी उभर रहा है। प्रकृति, श्रद्धा और संस्कृति के अद्भुत संगम के रूप में विकसित हो रहा यह मंदिर स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति प्रदान कर रहा है।