Mohammad Rafi: सादगी से प्रभावित हूं
सिंगर शेख अमीन ने कहा कि मैं बीते बीस वर्षों से रफी साहब के गीत गा रहा हूं। उनका गाया ‘दिन ढल जाए, रात न जाए’ मेरा सबसे पसंदीदा गाना है। रफी साहब की सादगी और उनकी बिल्कुल निर्दोष (लॉलेस) आवाज मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। उन्होंने हर तरह के गीतों को जिस सहजता से गाया, वह कमाल है।
विनम्रता ही उनकी ताकत थी
जाहिद पाशा ने कहा कि करीब 30 साल से मैं रफी साहब के गीत गा रहा हूं। उनका गीत ‘सुहानी रात ढल चुकी’ मुझे बेहद पसंद है। रफी साहब न केवल एक महान गायक थे, बल्कि एक इंसान के रूप में भी उतने ही महान थे। वे चाहते थे कि हर कलाकार को मंच मिले। उनकी यही दरियादिली और इंसानियत मुझे छू जाती है। विनम्रता ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
रेडियो पर ठहर जाता था मन
मनोहर सिंह ठाकुर ने कहा कि बचपन में जब रेडियो से रफी साहब की आवाज आती थी, तो मन ठहर जाया करता था। ‘अहसान तेरा होगा मुझ पर’, ‘खोया-खोया चांद’ जैसे गाने गुनगुनाते-गुनगुनाते रफी मेरे अंदर बस गए। उनकी आवाज में कुछ ऐसा था जो सीधे दिल में उतर जाता था। आज भी ‘तू कहां ये बता इस नशीली रात में’ गाते हुए मुझे रूहानी सुकून मिलता है।
50 रुपए फीस मिलती थी
सलीम संजारी ने कहा कि 1988 से रायपुर ऑर्केस्ट्रा और इंडियन यूजिकल ग्रुप के साथ जुड़ा हूं। उस दौर में रफी साहब के गाने गाने के लिए मुझे 50 रुपए फीस मिलती थी जो गर्व की बात थी। मेरा पसंदीदा गीत ‘सुहानी रात ढल चुकी’ है। रफी साहब हर तरह के गाने गाते थे रोमांटिक, भक्ति, देशभक्ति, गम और मस्ती। उनकी आवाज में जो ऊंचाई और गहराई थी, कमाल की थी।