जनवरी में बाकी माह की तुलना में ज्यादा
मरीज चौंकाने वाले इसलिए भी है, क्योंकि इस माह में ज्यादा ठंड नहीं रहती। ठंड में हार्ट अटैक के केस सामान्यत: बढ़ जाते हैं। हो सकता है कि दिसंबर की ठंड का असर मरीजों में जनवरी में देखने को मिला हो। विशेषज्ञ भी यही मानते हैं।
सर्दी-खांसी का इंफेक्शन, हार्ट की समस्या इन्हीं कारणों से
ठंड के सीजन में सर्दी-खांसी का इंफेक्शन हो जाता है। इन्हीं कारणों से जो नसें ब्लॉक हैं, उनमें समस्या शुरू हो जाती है। इसमें हार्ट व ब्रेन की समस्या प्रमुख है। ज्यादा ठंड के कारण नसें सिकुड जाती हैं। इससे ब्लड की सप्लाई भी प्रभावित होती है। इससे हार्ट को पंप करने के लिए ज्यादा ताकत की जरूरत पड़ती है। इससे भी अटैक का रिस्क बढ़ जाता है। ज्यादा गर्मी में भी अटैक की आशंका बढ़ जाती है। अप्रैल में प्रदेश में लू चली थी। यानी भीषण गर्मी थी। इसके बाद भी अप्रैल में जनवरी की तुलना में कम केस आए हैं। अप्रैल में 132 मरीजों का इलाज अटैक के बाद किया गया। इनमें राजधानी के अलावा प्रदेश के अन्य जिले के मरीज शामिल हैं।
10 फीसदी मरीजों की मौत का औसत 6 माह में इस तरह आए हार्ट अटैक के मरीज
जनवरी 234 फरवरी 135 मार्च 144 अप्रैल 132 मई 180 जून 175 कुल 1000 अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों की मौत का औसत 10 फीसदी है। डिस्चार्ज होने के एक माह के भीतर इतने ही मरीजों की मौत हो जाती है। एक साल बाद फिर 10 फीसदी मरीज जान गंवा देते हैं। इस तरह सालभर में हार्ट अटैक के 30 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। हार्ट रोग विशेषज्ञों के अनुसार, मरीज हार्ट अटैक के कितने समय बाद अस्पताल पहुंचता है, ये भी निर्भर करता है। कई बार मेजर हार्ट अटैक के बाद मरीजों की अस्पताल पहुंचने के पहले मौत हो जाती है। कई मामलों में अस्पताल पहुंचने के बाद मौत होती है। यही नहीं, कुछ विशेष मामलों में कैथलैब में प्रोसीजर के दौरान मरीज की जान चली जाती है।
30-59 मरीज अस्पताल पहुंचने के पहले दम तोड़ देते हैं। अस्पताल में 7 प्रतिशत , इलाज के एक साल में 10 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है। 5 साल में हार्ट अटैक के 30-40त्न मरीज जान गंवा देते हैं। जीवनशैली में सुधार कर, शराब सेवन व स्मोकिंग से दूर रहकर हार्ट के मरीज होने से बचा जा सकता है। नियमित एक्सरसाइज से भी हार्ट मजबूत होता है। -डॉ. शिवकुमार शर्मा, सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट नेहरू मेडिकल कॉलेज