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Independence Day: आजादी के जीनियस महानायक हरीश जोशी की अनसुनी और रोचक कहानी पढ़िए

Indian Freedom Fighter Harish Joshi: स्वतंत्रता संग्राम के एक अनसुने नायक और क्रांतिकारी दार्शनिक थे, जिन्होंने राजस्थान के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारतAug 14, 2025 / 04:24 pm

M I Zahir

Indian Freedom Fighter Harish Joshi

महान स्वतंत्रता सेनानी और दार्शनिक हरीश जोशी। (फाइल फोटो: पत्रिका.)

Indian Freedom Fighter Harish Joshi : हाय वो क्या लोग थे, जिन्हें देखा भी नहीं, याद आए तो रुला देते हैं। मशहूर शाइर मुहम्मद अल्वी का यह शेर इस महान और विलक्षण व्यक्तित्व पर सटीक बैठता है। इस अज़ीम शख्सियत के बारे में लिखते समय बहुत सारे विशेषण बहुत छोटे पड़े जाते हैं। हम अपने जिन-जिन लोगों को बड़ा आदमी मानते हैं, वे उनमें से अधिकतर के गुरु, मार्गदर्शक या पृष्ठभूमि मे निर्देशक, सहयोगी या सखा रहे। ये थे महान स्वतंत्रता सेनानी , शीर्ष पत्रकार, लेखक, कवि, दार्शनिक,चिंतक (Radical Political Thinker), राजनीतिज्ञ, ट्रेड यूनियनिस्ट,समाज सुधारक, वकील और राजस्थान के एकीकरण (Rajasthan Integration) के प्रमुख सूत्रधार कॉमरेड हरीश जोशी ( Indian Freedom Fighter Harish Joshi)। एक तरफ वे एम एन राय के प्रबल समर्थक व सहयोगी थे तो दूसरी तरफ शेरे राजस्थान जयनारायण व्यास उनके कार्यकर्ता थे। कामरेड हरीश जोशी (Indian Freedom Fighter Harish Joshi) के बारे में केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय के नेशनल टैक्सटाइल कॉपोरेशन इंदौर में महाप्रबंधक पद से रिटायर हरीश जोशी के पुत्र कैलाश जोशी ( Kailash Joshi) ने जोधपुर के वीर मोहल्ला नाईयों का बड़ की तंग गलियों में स्थित पुराने पुश्तैनी मकान में पत्रकार एम आई जाहिर से एक विशेष मुलाकात में ये संस्मरण सुनाए। पढ़िए जैसा उन्होंने बताया:

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Rare photo of great freedom fighter Harish Joshi. Photo: Kailash Joshi
महान स्वाधीनता सेनानी हरीश जोशी का दुर्लभ चित्र। फोटो: कैलाश जोशी

स्वतंत्रता आंदोलन के साथ दूसरे क्षेत्रों में भी क्रांति की मशाल थामे रहे

हरीश जोशी जोधपुर में 31 अक्टूबर 1920 को जन्मे। वे पूरे जीवन स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ दूसरे क्षेत्रों में भी क्रांति की मशाल थामे रहे और लंबी बीमारी के बाद 1 मई 1961 की रात मजदूर दिवस को निधन हुआ। सहज सरल स्वभाव के पिता श्रीचंद जोशी और माता नारायणीदेवी जोशी के लाल हरीश जोशी संस्कार ही नहीं, बौदिधक स्तर पर भी बहुत समृद्ध रहे। माता नारायणीदेवी त्याग की मूर्ति थीं। अपनी मां के लिए वे कहते थे-मैं अपनी मां के बारे में एक ऐसी किताब लिखूंगा कि ‘गोर्की की मां ‘ किताब को भुला दूंगा। (गोर्की ने रूस पर ‘मां’ नामक किताब लिखी थी। ) वे कहते , गोर्की की मां ईवंटस से पैदा हुई और इंडियन मदर बाय बर्थ ग्रेट है। उनका बौद्धिक स्तर बहुत आला दर्जे का रहा।

राजनीतिक जीवन की ​शिखर से शुरुआत

अपने समय और सामयिक घटनाचक्रों पर पैनी और गहरी नजर रखने वाले हरीश जोशी बचपन से ही राजनीतिक व इन्कलाबी विचारधारा के थे। उनका राजनीतिक जीवन बाल्यकाल से ही शुरू हो गया था। आजादी की यह चिंगारी मन में सुलग रही थी। वे सन 1936 में पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिले। उसके बाद वे सन 1938 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जोधपुर आ्गमन पर उनसे भी मिले। दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए। उस समय अंग्रेजों का राज था और उनके पूर्वज अंग्रेजों के यहां नौकरी करते थे। उन्हें अच्छा नहीं लगा कि उनका लड़का अंग्रेजों के ​खिलाफ राजनीति कर रहा है। उन्होंने अपने नवयुवक सा​थियों के साथ एक क्रांति दल बनाया। उनके मित्र जीबी सुखी ने यह बात उनके पुत्र को बताई।

अंग्रेजों ने ‘नागरिक’ अखबार जब्त किया

उन्होंने लखनऊ में पढ़ाई के दौरान ही वहां स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाई। लखनऊ यूनिवर्सिटी में सन 1947 में न्यू लाइफ यूनियन बनाई और उसे बड़ा स्वरूप दिया। इसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लग गए। यह चालीस के दशक की बात है, वहां उनका महान दार्शनिक चिंतक व लेखक एम एन राय से संपर्क हुआ। उसके बाद राय के साथ मिल कर अ​खिल भारतीय रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई और पार्टी को मजबूत किया। वहीं वहां ‘नागरिक’ नामक अखबार निकाला। जैसे ही अखबार की पहली प्रति निकली, अंग्रेजों ने वह प्रति जब्त कर ली। ‘नागरिक’ अखबार के मुख पत्र पर लिखा होता था-तुम बढ़ो नागरिक आंख खोल परखो पग पग पर विश्वास ज्ञान,बलिदानों से रचना होगा तुम्हें भारत का भावी विधान।

विलक्षण दार्शनिक के रूप में एक अनूठा उदाहरण

लखनऊ यूनिवर्सिटी में गेस्ट प्रोफेसर राधाकृष्णन ने उनकी दर्शनशास्त्र की कॉपी जांची तो वे दंग रह गए। दार्शनिक छात्र हरीश जोशी ने लिखा था-मैं यह फिलासफी नहीं मानता। मेरी यह खुद की फिलासफी है। राधाकृष्णन के कमेंट थे-
I have not seen on exercise book in my life

अंग्रेजों ने ‘नागरिक’ अखबार जब्त किया

उन्होंने लखनऊ में पढ़ाई के दौरान ही वहां स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाई। लखनऊ यूनिवर्सिटी में सन 1947 में न्यू लाइफ यूनियन बनाई और उसे बड़ा स्वरूप दिया। इसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लग गए। यह चालीस के दशक की बात है, वहां उनका महान दार्शनिक चिंतक व लेखक एम एन राय से संपर्क हुआ। उसके बाद राय के साथ मिल कर अ​खिल भारतीय रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई और पार्टी को मजबूत किया। वहीं वहां ‘नागरिक’ नामक अखबार निकाला। जैसे ही अखबार की पहली प्रति निकली, अंग्रेजों ने वह प्रति जब्त कर ली। ‘नागरिक’ अखबार के मुख पत्र पर लिखा होता था-तुम बढ़ो नागरिक आंख खोल परखो पग पग पर विश्वास ज्ञान,बलिदानों से रचना होगा तुम्हें भारत का भावी विधान।

जब शिवप्रसाद ‘बच्चा’ को पकड़ा

हरीश जोशी का ‘नागरिक’ अखबार लेकर जब उनके मित्र ​शिवप्रसाद ‘बच्चा’ लखनऊ से जोधपुर आ रहे थे तो अंग्रेजों ने अखबार की प्रति के साथ उन्हें पकड़ लिया।

इतिहासकार के एम पन्नीकर ने लोहा माना

जोधपुर रियासत के प्रधानमंत्री रहे इतिहासकार के एम पन्नीकर ने तकरीबन 1950 में कहा था-Mr. Joshi I am known
historian of the country, but you know better than me, what is history

श्रेष्ठ साहित्यकार राजनीति व स्वतंत्रता संग्राम के नाम

वे बहुत अच्छे साहित्यकार थे और अ​खिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में उनकी कहानी उनकी आलोचा (खुरबानी) प्रथम रही थी। वहीं सन 1936 में ‘घनराजिया’ नामक काव्य संग्रह प्रका​शित हुआ, जो अब अनुपलब्ध है। हरीश जोशी रोज डायरी लिखते थे। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है कि जब सन 1941 में उच्चतर ​शिक्षा के लिए लखनऊ गए तो
साहित्य में रुचि के कारण वहां क्रांतिकारी साम्यवादी लेखक और उपन्यासकार यशपाल के संपर्क में आए। अच्छा साहि​​त्यिक लेखन होने के कारण उनकी राय थी कि हरीश जोशी को साहित्य के क्षेत्र में जाना चाहिए। इसके उलट उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र चुना।

सरदार वल्लभ भाई पटेल के सचिव वीपी मेनन ने भी उनके महत्वपूर्ण सुझाव माने

राजस्थान के एकीकरण के समय तो सरदार वल्लभ भाई पटेल के सचिव वीपी मेनन ने भी उनके महत्वपूर्ण सुझाव माने। स्वतंत्रता दिवस की वेला पर पत्रिका ने जब जोधपुर परकोटे के नाइयों का बड़ मोहल्ले में स्थित उनके घर पर पहुंच कर उनके वयोवृद्ध बड़े बेटे कैलाश जोशी से गुफ्तगू की तो आजादी के इस दीवाने के अतीत से जुड़ीं कई बातें और यादें ताज़ा हो आईं।
Journalist M I Zahir talking to Kailash Joshi, son of freedom fighter Harish Joshi. Photo: Chinmay Joshi
स्वतंत्रता सेनानी हरीश जोशी के पुत्र कैलाश जोशी से बातचीत करते पत्रकार एम आई जाहिर। फोटो: चिन्मय जोशी

पत्रकारिता के पुरोधा और साहित्य सृजक

कामरेड हरीश जोशी खोजपूर्ण व मिशनरी पत्रकारिता के पुरोधा थे। नई दिल्ली व राजस्थान में अंग्रेजी पत्रकारिता के संस्थापक रहे। उन्होंने सन 1946 में महान दार्शनिक, चिंतक व लेखक एम एन रॉय से अंग्रेजी का अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्र Vauguard (वॉगार्ड ) खरीदा। इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में हिन्दी के प्रख्यात शीर्ष कवि अज्ञेय भी शामिल थे। वहीं गिरिराज जैन संवाददाता थे, जो कालांतर में टाइम्स ऑफ इंडिया के मुख्य संपादक बने। इसका कार्यालय नई दिल्ली के 30 फैज़ बाजार, बहादुर शाह मार्ग, चांदनी चौक में था। पड़ौस में ही जिन्ना का आफिस फेज बाजारमें ही था।

डॉन प्रेस खरीदना चाहते थे और इसके लिए कराची भी गए थे

वे डॉन प्रेस खरीदना चाहते थे और इसके लिए उनसे मिलने के लिए कराची भी गए थे। उन्होंने इसके लिए जिन्ना को एडवांस रुपए भी दे दिए थे। इसी दौरान वह प्रेस जल गई और हरीश जौशी का डॉन प्रेस को खरीदने का सपना अधूरा रहा गया। उनका एक और सपना था। वे वैगॉर का नाम बदल कर ‘ ए शियन टाइम्स ‘ करना चाहते थे। हरीश जोशी इसे ए शिया का सबसे बड़ा मुख पत्र बनाना चाहते थे, मगर ऐसा हो न सका। हरीश जोशी ने सन 1949 में जोधपुर से अंग्रेजी पा​क्षिक राजपुताना हैराल्ड व 1950 में स्पोक्स्मैन वीकली अंग्रेजी अखबार निकाले।

नेहरू से मिलने के बाद लिखा—ये स्वप्न टूटते ही जाते

जब अज्ञेय ने ‘शेखर एक जीवनी’ किताब लिखी तो जीवन पद़्धति पर उनके अज्ञेय से मतभेद हो गए। उन्होंने कहा- माय फ्रेंड अज्ञेय हू इज डैड, एज ए राइटर ऑफ शेखर एक जीवनी ( शेखर एक जीवनी लिखने के बाद मेरे मित्र अज्ञेय की मेरे लेखक के रूप में मौत हो गई)। इसी तरह उन्होंने सन 1936 में पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात करने के बाद कविता कही :
ये स्वप्न टूटते ही जाते
कितने मोह कितने अधीर
जीवन से नाते
मदमस्त हुई अभिलाष पलक
पावन सपनों की स्वर्ण झलक
आंसू बन कर बहे छलक-छलक
मैं तो पीड़ा की विकट दहा
तुम मुझे बुलाने क्यों आते हो।

महान संगी साथी व सहयोगी

सर्वश्री कर्पूरचंद्र कुलिश, डॉ छगन मोहता, अमृत नाहटा, एचके व्यास, अज्ञेय, रघुवीर सहाय, रामसिंह, परसराम मदेरणा, कुंभाराम आर्य, पुष्पराज मृदुल,हजारीलाल शर्मा, के एन वाचू,हरमलसिंह जैन व श्यामलाल शर्मा आदि।
Cover of the book Social Man and Human Society by revolutionary writer Harish Joshi. Photo: Kailash Joshi
क्रांतिकारी लेखक हरीश जोशी की पुस्तक सोशलमैन एंड इन ह्यूमन सोसाइट का कवर। फोटो: कैलाश जोशी

हरीश जोशी की किताबें

-कॉमरेड हरीश जोशी ने सात किताबें ​​लिखीं।

  1. सोशल मैन एंड इन हयूमन सोसाइटी ( अंग्रेजी )
  • अज्ञेय इस किताब का हिन्दी में अनुवाद करना चाहते थे।
  1. सुकरात, व्य​​क्ति व ​विचार
  2. घनराजिका – काव्य संग्रह (अब अनुपलब्ध)
  3. हीरोज ऑफ फ्रांस (अंग्रेजी- अ्प्रका​​शित )
  4. लेबर मूवमेंट इन इंडिया (अंग्रेजी- अ्प्रका​​शित )
  5. चैलेंजेज टु बर्टेन रसेल एंड सोशल ​थिंकिंग (अंग्रेजी- अ्प्रका​​शित )
  6. कृ​षि सेवा और सहकारिता : क्यों और कैसे?

हरीश जोशी परिवार

  • पत्नी का नाम- स्व मोहिनीदेवी पहली महिला पार्षद रहीं।
  • संतान – कैलाश जोशी, सरोज थानवी। भाई डॉ कांति जोशी, पु​त्रियों रीता पुरोहित व सुलोचना व्यास का निधन हो गया।

हरीश जोशी : शख्सियत एक, रूप अनेक

निदा फाजली ने कहा है, हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिसको भी देखना हो कई बार देखना। जोशी
ऐसी महान शख्सियत थे कि उन्हें कई बार देखना होगा। मार्क्सवादी ​विचारक रहे, लेकिन पार्टी के सदस्य नहीं बने।
-वे रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थकों में से थे।
-अभिव्यिक्त की स्वतंत्रता के पक्षधर थे।
-व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्षधर थे।
-लोकतंत्र के प्रबल समर्थक थे।
-कोई पार्टी जॉइन नहीं की।

एकमात्र जीनियस मजदूरों का साथी शून्य में विलीन हो गया

उनके निधन पर जोधपुर के अखबारों ने लिखा- आ र्थिक और सामाजिक संघर्षोंं से जूझता राजस्थान का एकमात्र जीनियस मजदूरों का साथी मई दिवस की मध्यरात्रि को शून्य में विलीन हो गया। राजस्थान में प्रगतिशील आंदोलन के प्रणेता, शीर्ष वि धिवेत्ता और साहित्यकार मरुधर मृदुल व प्रमुख साहित्यकार ओंकारश्री ने उन पर बड़े-बड़े आलेख लिखे।

कभी केस नहीं हारे : मृदुल

हरीश जोशी के निधन पर कहा व लिखा गया मशहूर प्रगतिशील कवि मरुधर मृदुल का यह कथन उनकी ​का​बिलियत की जीती जागती मिसाल है- जोशी एक अनोखे वकील थे, जो कभी कोर्ट नहीं गए, लेकिन वे कभी केस नहीं हारे।

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