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खिलाड़ी व खेल संस्था के बीच दूरियां नहीं होनी चाहिए

— संग्राम सिंह
(रेसलर एवं मोटिवेशनल स्पीकर)

जयपुरJun 10, 2025 / 02:14 pm

विकास माथुर

कुश्ती भारत का सबसे प्राचीन खेल है। यह खेल महाभारत काल से भी पहले से हमारी संस्कृति और इतिहास का हिस्सा रहा है। पुराने जमाने में इसे मल्लयुद्ध कहा जाता था, जो अब आधुनिक रूप में कुश्ती के नाम से जाना जाता है। जब 1896 में ओलंपिक की शुरुआत हुई, तब मल्लयुद्ध को भी इसमें शामिल किया गया था। भारत ने इस खेल में अब तक सबसे अधिक पदक जीते हैं और देश का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक मेडल भी इसी खेल में मिला था।
हालांकि, भारतीय खेलों का पारंपरिक सिस्टम थोड़ा अलग था। स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) की स्थापना 25 जनवरी 1984 को की गई थी ताकि 1982 की लेगेसी को आगे बढ़ाया जा सके। लेकिन इस अथॉरिटी का लाभ आम खिलाडिय़ों को कम ही मिल पाया है। आम खिलाडिय़ों को इसकी जानकारी और लाभ नहीं मिल पाए। अब सरकार खेलों को बढ़ावा देने में काफी सक्रिय है और पूर्व खिलाड़ी भी खेलों के विकास में योगदान दें तो यह और भी बेहतर होगा।
मेरा मानना है कि यदि सरकार इसी तरह खेलों को प्रोत्साहित करती रही, तो आने वाले 5-7 वर्षों में कुश्ती और अन्य खेलों के लिए बेहतरीन भविष्य होगा। कुश्ती की तुलना क्रिकेट से करना उचित नहीं है। क्रिकेट हमेशा से प्राइवेट गेम रहा है। अब टी-20 क्रिकेट को भी ओलंपिक में शामिल किया गया है। ब्रिटिश काल से क्रिकेट भारत में खेला जा रहा है। जब आजादी से पहले ब्रिटिश खिलाड़ी खेलते और शॉट मारते, तो हम देखते रह जाते थे। इस कारण यह खेल हमारे दिल-दिमाग में इस हद तक बैठ गया कि अनपढ़ व्यक्ति भी किसी ऑस्ट्रेलियन की कमेंट्री को सुनकर समझ सकता है कि क्या कहा जा रहा है।
वहीं, कुश्ती को अब धीरे-धीरे वह सम्मान और सुविधाएं मिल रही हैं जो इसे चाहिए। इस खेल के खिलाडिय़ों को और ग्रूम करने की आवश्यकता है। अगर भारत को वर्ष 2036 में ओलंपिक की मेजबानी का मौका मिलता है, तो कुश्ती को टॉप टेन खेलों में होना चाहिए। जो आज दस-बारह साल के बच्चे हैं, वे उस समय मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करेंगे। जब मैंने खेल की शुरुआत की तब क्रिकेट का बल्ला 30-40 रुपए का आता था तो उसे खरीदने के लिए इतने पैसे होते नहीं थे। बैडमिंटन-टेनिस का इतना चलन था नहीं। बैडमिंटन तो प्रोफेशनली कम, शौकिया तौर पर ज्यादा खेला जाता था। कुश्ती में पहलवानों को दूध-घी मिलता और पैसे मिलते थे और मैं बहुत दुबला-पतला हुआ करता था तो सभी चिढ़ाते भी थे।
इसलिए सम्मान के लिए कुश्ती खेलना शुरू किया। अब मैं खुद स्कूलों में जाकर बच्चों को कुश्ती के प्रति जागरूक करने और प्रशिक्षण देने की कोशिश करता हूं। अखाड़े तो हैं लेकिन वे अलग तरह के हैं। मेरा प्रयास रहेगा कि स्कूलों के साथ मिलकर ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिससे बच्चे कुश्ती सीख सकें और पदक जीतने का मौका पा सकें। इससे मेरा भी सपना पूरा होगा। एक और बात यह है कि कभी खेल का भला खिलाड़ी नहीं कर सकता। खिलाड़ी ऐसा तभी कर सकता है जब सोच बड़ी हो, किताबों से नहीं, वह वैल्यूज से बड़ा हो।
वर्तमान में सरकार खेलों के लिए पर्याप्त बजट दे रही है, जिससे खिलाड़ी बेहतर बन सकते हैं, लेकिन सिस्टम को ठीक होने में समय लगेगा। खेलों में जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। खिलाड़ी और खेल संस्थाओं के बीच दूरी नहीं होनी चाहिए। देश में अपार प्रतिभाएं हैं। उन्हें सकारात्मक माहौल मिलना चाहिए।
(संग्राम सिंह भारतीय कुश्ती संघ के पहले ब्रांड एम्बेसेडर रहे हैं)

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