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जनकल्याण व विकास में विचारधारा की मजबूती

—घनश्याम तिवाड़ी
(राज्यसभा सांसद )

जयपुरJun 12, 2025 / 03:48 pm

विकास माथुर

आजादी के बाद का भारत कैसा हो इस पर देश में कई विचारकों ने अपनी दृष्टि दी है। यह दृष्टि भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पुनर्निमाण की दृष्टि रही है। इन विचारकों में चार प्रमुख नाम उभर कर आते हैं जिनमें एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय, समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया, समग्र क्रांति के प्रेरक जयप्रकाश नारायण और किसान कल्याण के चिंतक चौधरी चरण सिंह का नाम लिया जा सकता है। इन सभी विचारकों व नेताओं ने मजबूत राष्ट्र की नींव रखने के इरादे से समाज में ‘अंतिम व्यक्ति’ को केंद्र में रखकर अपना मत रखा।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय का सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसका उद्देश्य था विकास योजनाओं की अंतिम कड़ी तक पहुंच। जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति की कल्पना की जिसमेंं सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और नैतिक स्तर पर व्यापक बदलाव का आह्वान था। डॉ. लोहिया ने समता मूलक समाज की अवधारणा रखी, जिसमें यह अपेक्षा की गई कि जाति, वर्ग, लिंग और क्षेत्र आधारित असमानताओं का अंत हो। वहीं देश के प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह ने किसानों और ग्रामीण भारत को नीति-निर्माण के केंद्र में लाने के संकल्प से काम किया। देखा जाए तो इन विचारों को व्यवहार में उतार उन्हें योजनाओं के रूप में धरातल पर लाना आसान काम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले ग्यारह वर्ष के कार्यकाल का आकलन करें तो ये सभी विचार विभिन्न योजनाओं को लागू करने के दौरान परिलक्षित हुए हैं।
इसे भारतीय लोकतंत्र में विचार आधारित शासन का ऐसा दौर कहा जा सकता है जिनमें कई क्षेत्रों में अहम फैसले किए गए। सबसे पहले बात आर्थिक मोर्चे की की जा सकती है। वर्ष 2014 में भारत जीडीपी के आधार पर विश्व की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। आइएमएफ के अनुसार बीते वर्ष 2024 तक भारत चौथे स्थान पर पहुंच चुका है। तरक्की की रफ्तार को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि अगले दशक में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
मुद्रा स्थिरता, कम महंगाई दर और राजकोषीय अनुशासन ऐसे विषय हैं जो निवेशकों का भरोसा जीतने वाले होते हैं। सब जानते हैं कि डिजिटल इंडिया और यूपीआइ ने भारत को दुनिया का डिजिटल पेमेंट लीडर बना दिया। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर माह औसतन 14 लाख करोड़ से अधिक का डिजिटल लेन-देन हो रहा है। भारत कृषि प्रधान देश है ऐसे में किसानों की चिंता सबसे ज्यादा जरूरी है। कृषक को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प इससे ही जुड़ा है। यही वजह है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करते हुए किसानों के लिए लागत का डेढ़ गुणा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित किया गया है।
कई नवाचारों की बदौलत भारत ने वर्ष 2022-23 में कृषि निर्यात 4 लाख करोड़ के पार करने की उपलब्धि हासिल की है। पिछले एक दशक की उपलब्धियों में न्याय व्यवस्था से जुड़े बदलाव को भी लिया जा सकता है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के माध्यम से औपनिवेशिक कानूनों को समाप्त करना बड़ा कदम था। अनुच्छेद 370 को हटाना तो महज राजनीतिक ही नहीं बल्कि संवैधानिक एकीकरण की क्रांति कही जा सकती है। तीन तलाक कानून व नागरिकता संशोधन अधिनियम भी ठोस कदम रहे हैं।
आत्मनिर्भर शिक्षा व्यवस्था की ओर नई शिक्षा नीति-2020 कारगर साबित हो रही है। संतोष इस बात का भी है कि ग्लोबल रैंकिंग में भारतीय संस्थानों की स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है। काशी विश्वनाथ, अयोध्या में राम मंदिर, महालोक उज्जैन आदि सांस्कृतिक परियोजनाएं भारत की धार्मिक चेतना को पुनर्जीवित कर रही हैं। इतना ही नहीं, एक भारत श्रेष्ठ भारत, वोकल फॉर लोकल, पीएम गति शक्ति, भौगोलिक कनेक्टिविटी की क्रांति के माध्यम से देश की एकता और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता के समन्वय के प्रयास भी खूब हुए हैं। ये सभी ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ का जीवंत प्रमाण हैं। ऐसी क्रांति है जो अंत्योदय से आरंभ होकर आत्मनिर्भर भारत, आत्मसंपन्न भारत और आत्मगौरवशाली भारत तक पहुंचती है।

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