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रिलेशनशिप : रिश्तों को संभाले, विवाहेत्तर संबंधों से बिगड़ता मानसिक स्वास्थ्य

डॉ. प्रतिभा विजय, रिलेशनशिप और मेंटल हेल्थ काउंसलर

जयपुरJun 02, 2025 / 06:13 pm

Neeru Yadav

विवाह एक पवित्र बंधन होता है जिसमें प्रेम, विश्वास, सहयोग और समर्पण की अपेक्षा होती है। जब ये स्तंभ कमजोर पड़ते हैं, तब व्यक्ति भावनात्मक असंतुलन का शिकार हो सकता है। कई बार इसी असंतुलन का परिणाम होता है विवाहेतर संबंध। विफल या तनावपूर्ण वैवाहिक जीवन का मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
जब जीवनसाथी के बीच संवाद की कमी हो जाती है, तो वह अन्य व्यक्ति की ओर आकर्षित हो सकता है। अकेलापन धीरे-धीरे अवसाद या चिंता का रूप भी ले सकता है। व्यक्ति को यदि लगातार आलोचना, तुलना या अस्वीकार का सामना करना पड़े तो उसका आत्म-सम्मान कमजोर होने लगता है। ऐसे में कोई ऐसा व्यक्ति जो उसे स्वीकारता है, उसकी सराहना करता है, वह आकर्षण का केंद्र बन सकता है। विवाहेतर संबंधों का एक और बड़ा कारण यौन संतुष्टि की कमी है। यदि इस विषय पर खुले संवाद की जगह शर्म, डर या असहजता है, तो व्यक्ति अपनी इच्छाओं को बाहर पूरा करने की कोशिश कर सकता है। बचपन के आघात, पूर्व रिश्तों की कड़वी यादें या असुरक्षा की भावना भी व्यक्ति को अस्थिर बना देती है। वह बार-बार प्यार की तलाश में भटकता रहता है। साथ ही करियर, घर-परिवार की अपेक्षाओं से यदि व्यक्ति मानसिक रूप से टूटने लगता है तो वह दूसरे विकल्पों की ओर आकर्षित होता है।
जीवन के कुछ दौर ऐसे होते हैं जब व्यक्ति के विवाहेतर संबंधों में उलझने की आशंका रहती है। जैसे वैवाहिक जीवन के पहले 5-7 वर्षों में – जब प्रेम पर धीरे-धीरे जिम्मेदारियां हावी होने लगती हैं। बच्चों के जन्म के बाद महिला का पूरा ध्यान बच्चों पर होता है तो दूसरा साथी उपेक्षित महसूस कर सकता है। 35-45 वर्ष की उम्र में जब व्यक्ति अपने जीवन की उपलब्धियों और अधूरे सपनों पर विचार करता है और ‘कुछ नया’ या ‘खोया हुआ समय’ पाने की चाह में इस तरह की गतिविधियों में उलझ जाता है। जब रिश्तों में विवादों का समाधान नहीं होता, तब भी इस तरह का खतरा बना रहता है। इस तरह की गतिविधियेां का मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। विवाहेतर संबंध के बाद व्यक्ति मानसिक द्वंद्व में फंस जाता है। उसे खुद से घृणा, शर्म और अपराधबोध महसूस होने लगता है। दोहरे जीवन की वजह से तनाव और चिंता बढ़ जाती है। इससे स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा होती हैं।
संवाद ही हर रिश्ते की नींव है। पति-पत्नी को एक-दूसरे से खुलकर बात करने, मन की बात साझा करने और बिना जज किए सुनने की आदत डालनी चाहिए। एक-दूसरे के सपनों, इच्छाओं और भावनाओं को समझना और समर्थन देना बहुत जरूरी है। साथ देना ही असली ‘साथी’ का काम है। रोमांस, सरप्राइज, तारीफ, साथ में समय बिताना — ये सब वैवाहिक रिश्ते को जीवंत बनाए रखते हैं। यदि साथी तनाव में है, अवसाद या चिंता का शिकार है, तो उसे मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ को दिखाया जाना चाहिए। इसे कमजोरी नहीं, समझदारी मानें। इसके बावजूद यदि कोई विवाहेतर संबंधों में उलझ जाता है और इसके कारण वह मानसिक परेशानी से गुजर रहा हो, तो इससे बाहर निकलने के प्रयास किए जाने चाहिए। अपने किए की जिम्मेदारी लें और खुद से ईमानदारी बरतें। भागने से समस्या नहीं सुलझती। कपल काउंसलिंग या व्यक्तिगत थैरेपी से आप अपने अंदर के भावनात्मक उलझनों को सुलझा सकते हैं। यदि रिश्ते में सुधार की गुंजाइश हो तो माफी मांगना और देना दोनों जरूरी हैं। रिश्तों को दोबारा मौका देना भी एक साहसिक और प्रेमपूर्ण कदम हो सकता है। समाज के डर से नहीं, मन की शांति के लिए सही निर्णय लें। चाहे रिश्ता बनाए रखें या अलग हों, निर्णय मानसिक संतुलन और आत्म-सम्मान को ध्यान में रखकर लें।
स्वस्थ मानसिकता सफल वैवाहिक जीवन का आधार है, और एक सफल दांपत्य जीवन मानसिक शांति का स्रोत। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जब रिश्ते में ईमानदारी, संवाद, प्रेम और सम्मान होता है, तो न सिर्फ रिश्ता फलता-फूलता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।

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