टीनएज : सही दिशा देने के लिए सार्थक विमर्श की दरकार
डॉ. मोनिका शर्मा, स्वतंत्र लेखिका एवं स्तंभकार


सहज-सी बातों और हालातों को लेकर किशोरमन में पैठ बनाती रंजिश समग्र समाज के लिए चिंतनीय हो चली है। नासमझी के इस पड़ाव पर छोटी-छोटी बातों पर उपजते आक्रोश से परिस्थितियां जानलेवा बन रही हैं। स्कूल परिसर से लेकर सामाजिक परिवेश तक, किशोरों की दिशाहीनता के वाकये आए दिन सामने आ रहे हैं। हाल में हिसार में एक 14 वर्षीय किशोर ने अपने सहपाठी की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या की वजह स्कूल में बेंच पर बैठने से जुड़ा विवाद था। किशोर को गिरफ्तार करने पर सामने आया है कि उसने अपने दादा की लाइसेंसी बंदूक से हत्या की है। नई पीढ़ी के मन में पलते द्वेष और बदला लेने की प्रवृत्ति के हाल देखिए कि एक साल पहले स्कूल में डेस्क पर बैठने को लेकर दोनों में हुआ विवाद इस बर्बरता का कारण बना।
नई पीढ़ी का मन-जीवन एक अर्थहीन आक्रोश की भेंट चढ़ रहा है। नतीजा किसी का जीवन छीन लेना तो कहीं किसी वजह से अपना जीवन गंवा देना। यह आज का दुर्भाग्यपूर्ण सच है कि किशोरों में संयम और समझ का भाव नदारद है। ध्यातव्य है कि बीते दिनों हरियाणा के ही कैथल में दो लड़कों की गला काटकर हत्या कर दी गई थी। 15 और 16 वर्षीय लड़कों की ह्त्याकांड में सामने आया था कि बहनों से छेड़छाड़ पर गांव के 2 लड़कों ने ही अपने सात साथियों के साथ इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया।
ऐसी हृदयविदारक घटनाएं देश के हर हिस्से में हो रही हैं। बीते दिनों महाराष्ट्र के पुणे में हुई घटना में एक नाबालिग छात्रा की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। उसी स्कूल में पढ़ने वाले कक्षा 9वीं के छात्र ने यह बर्बरता की। इस वाकये का हैरान करने वाला पक्ष यह है कि उसी स्कूल में पढ़ने वाले एक छात्र ने 100 रुपए की सुपारी देकर इस लड़के से यह कुत्सित कर्म करने को कहा। इस घटना का कारण भी एक मामूली-सी शिकायत थी। मृतक छात्रा ने कक्षा अध्यापक से शिकायत की थी कि एक छात्र ने अपने माता-पिता के जाली हस्ताक्षर किए है। इसी बात से क्रोधित होकर इस लड़के ने कक्षा 9वीं में पढ़ने वाले एक छात्र को छात्रा की दुष्कर्म करने के बाद हत्या करने की सुपारी दे डाली।
आखिर क्यों किशोरवय बच्चे नकारात्मकता और दुर्भाव की सोच के जाल में फंस रहे हैं? यह सवाल समाज के साथ ही हर परिवार को भी फिक्र में डालने वाला है। किसी सभ्य समाज के लिए यह सदमे से कम नहीं कि संगीन अपराधों में नई पीढ़ी यूं धंसती चली जाए। हालिया बरसों में हमारे यहां भी दिग्भ्रमित किशोर बच्चों की संख्या बढ़ी है। कई मामलों में तो बाकायदा पेशेवर अपराधियों की तरह किशोरों की भागीदारी देखने को मिली है। भविष्य बनाने की आयु में आपराधिक गतिविधियों में संलग्न होते नाबालिगों के आंकड़े समाज, परिवार ही नहीं देश के लिए भी चिंता का विषय है। असल में दुनियाभर में ही किशोर बच्चों में आक्रोश और आपराधिक सोच का मेल देखने को मिल रहा है। कुछ समय से वैश्विक स्तर पर चर्चा पा रही वेब सीरीज ‘एडोलेसेंस’ ने भी किशोर मन की दिशाहीनता को लेकर लोगों को चेताया है। वर्चुअल दुनिया की सामग्री से गुमराह होते नाबालिग बच्चों की मनःस्थिति समझाती यह सीरीज पूरे परिवेश को कटघरे में खड़ा करती है। अभिभावकों संग संवाद की कमी हो या अनजान चेहरों के वर्चुअल कमेंट्स, किशोर बच्चों की मनोदशा को आपराधिक गतिविधियों की ओर मोड़ने वाली कड़वी सच्चाई को सामने रखती है।
मौजूदा समय में नाबालिगों की भ्रमित सोच न तो अभिभावकों की समझाइश को असर करने देती है और न ही शिक्षकों की सीख मानने की मनःस्थिति बची है, जिसके चलते किशोर बच्चों के मन का भटकाव विकृत स्थितियां पैदा कर रहा है। अपराध करने का दुस्साहस तो प्रशासन और कानून के लिए भी चिंता का सबब बन गया है। एक ओर आभासी दुनिया बच्चों का मन भरमा रही है तो दूसरी ओर पारिवारिक ढांचा भी कमजोर हुआ है। सधी जीवनशैली और संस्कारी सोच का परिवेश महानगरों में ही नहीं गांवों-कस्बों में भी नहीं दिखता। हर समय स्क्रीन स्क्रॉल करते बच्चों का बदलता मनोविज्ञान वीभत्स आपराधिक घटना को भी मानो कोई रील ही समझ रहा है। चिंतनीय यह भी उनके दिशाहीन विचारों को धरातल पर उतारने के लिए हमउम्र साथियों का साथ भी मिल रहा है।
निस्संदेह, मामूली बातों से आहत होकर योजनागत रूप से अंजाम दी जा रहीं हृदयविदारक घटनाएं समग्र समाज को भयभीत करने वाली हैं। चर्चित मामलों से लेकर दूरदराज़ के गांवों में मामूली रंजिशों के चलते हो रही आपराधिक घटनाओं तक, किशोर बच्चों की भागीदारी आम हो चली है। अफसोस कि दुर्दांत घटनाओं को सोच-समझकर अंजाम देने वाले नाबालिग भी कानूनों का दुरुपयोग कर बच निकलते हैं । भारतीय कानून के तहत सोलह वर्ष तक के बच्चे अगर कोई आपराधिक कृत्य करते हैं तो उन्हें बाल अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है। जबकि वर्तमान में ऐसा कोई अपराध नहीं है, जिसमें नाबालिग शामिल न हो। बालमन की दुस्साहस भरी प्रवृत्तियों और आपराधिक मामलों में बढ़ती भागीदारी को देखते हुए यह लगता है कि संवेदनशील नागरिक बनना तो दूर ठीक से मानवीय व्यवहार भी नहीं सीख पा रहे हैं। किशोरों को सही दिशा देने के लिए आज अनगिनत मोर्चों पर सार्थक विमर्श की दरकार है।
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