आज भारतीय माता-पिता विरोधाभास के दोराहे पर खड़े हैं। जब बच्चा डगमगाता है तो अमूमन हम या तो बहुत कठोर हो जाते हैं या अत्यधिक सहानुभूति में बह जाते हैं। बच्चों को ‘परफेक्ट’ माता-पिता नहीं चाहिए, उन्हें ऐसे माता-पिता चाहिए जो उपलब्ध हों। जो कह सकें, ‘मुझे नहीं पता’ जो रो सकें जो माफी मांग सकें। हम विफल इसलिए नहीं हो रहे कि हम बच्चों को ‘सही खिलौना’ नहीं दे सके। हम तब विफल होते हैं जब हम कई दिनों तक उनकी आंखों में नहीं झांकते, ये नहीं पूछते, ‘कौन सी बात तुम्हें रातों को जगाए रखती है?’ बच्चे निवेश नहीं, व्यक्ति हैं। वे अनुशासन या महत्त्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि प्रेम से पनपते हैं। हमारी सबसे बड़ी विरासत न बैंक-बैलेंस होगा, न कोई प्रमाणपत्र, बल्कि एक स्मृति होगी ‘मेरे माता-पिता ने मुझे देखा पूरे मन से बिना शर्त।’