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पैरेंटिंग : बच्चों को चाहिए आपका वक्त और विश्वास

— डॉ. शीतल नायर
(साइकोथैरेपिस्ट एवं टेडएक्स स्पीकर )

जयपुरJun 10, 2025 / 02:08 pm

विकास माथुर

पहले भारत में बच्चों का लालन-पालन केवल माता-पिता का ही नहीं, पूरे समुदाय का दायित्व था। बच्चे दादा-दादी, पड़ोसियों, गांव के बुजुर्गों और सामूहिक परंपराओं की छाया में पलते थे। संयुक्त परिवार की गोद, साझा मूल्य और सांझ की सामूहिक बैठकों में ही पालन-पोषण का सच्चा अर्थ निहित था। लेकिन आज यह भूमिका एक प्रदर्शन में बदल गई है, जिसमें माता-पिता की सफलता बच्चे के संस्कार नहीं, बल्कि परीक्षा में अंक, म्यूजिक, सर्टिफिकेट और स्क्रीन टाइम की सख्ती के आधार पर आंकी जाती है। इस दौड़ में हमने वो भावनात्मक जुड़ाव खो दिया, जो पालन-पोषण को सार्थक बनाता है।
अहमदाबाद की ‘अभयम 181 हेल्पलाइन’ पर पिछले वर्ष पालन-पोषण से जुड़ी शिकायतों में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मांएं बच्चों के गुस्से, स्कूल न जाने की जिद और स्क्रीन की लत से परेशान हैं। वर्ष 2023 में कोचिंग के लिए कोटा गए 26 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की। माता-पिता अपने बच्चों को महत्त्वाकांक्षा के नाम पर कोचिंग भेजते हैं, लेकिन बच्चों से कभी यह नहीं पूछा गया कि वे अकेलेपन और दबाव के लिए मानसिक रूप से तैयार भी हैं या नहीं। कई बार ऐसी त्रासदी के पीछे माता-पिता होते हैं, जो भला तो चाहते हैं, लेकिन सुनना नहीं सीख सके। बेंगलूरु जैसे महानगरों में भी भावनात्मक टकराव की जड़ें गहरी हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, तलाकशुदा माता-पिता अपने बच्चों को ‘भावनात्मक हथियार’ की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे बच्चे ऐसी लड़ाइयों में फंस रहे हैं, जो उन्होंने खुद नहीं चुनी हैं।
आज भारतीय माता-पिता विरोधाभास के दोराहे पर खड़े हैं। जब बच्चा डगमगाता है तो अमूमन हम या तो बहुत कठोर हो जाते हैं या अत्यधिक सहानुभूति में बह जाते हैं। बच्चों को ‘परफेक्ट’ माता-पिता नहीं चाहिए, उन्हें ऐसे माता-पिता चाहिए जो उपलब्ध हों। जो कह सकें, ‘मुझे नहीं पता’ जो रो सकें जो माफी मांग सकें। हम विफल इसलिए नहीं हो रहे कि हम बच्चों को ‘सही खिलौना’ नहीं दे सके। हम तब विफल होते हैं जब हम कई दिनों तक उनकी आंखों में नहीं झांकते, ये नहीं पूछते, ‘कौन सी बात तुम्हें रातों को जगाए रखती है?’ बच्चे निवेश नहीं, व्यक्ति हैं। वे अनुशासन या महत्त्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि प्रेम से पनपते हैं। हमारी सबसे बड़ी विरासत न बैंक-बैलेंस होगा, न कोई प्रमाणपत्र, बल्कि एक स्मृति होगी ‘मेरे माता-पिता ने मुझे देखा पूरे मन से बिना शर्त।’

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