एक बार फिर उम्मीद की रफ्तार बनती साइकिल
योगेश कुमार गोयल, वरिष्ठ पत्रकार


– विश्व साइकिल दिवस (3 जून) पर विशेष
कभी वो भी वक्त था, जब लोग कई-कई मील पैदल चला करते थे या बैलगाडिय़ों से दिन-रात का सफर तय करते थे। फिर आई एक ‘दोपहिया मशीन’ जो न तो धुएं का गुबार छोड़ती थी, न शोर मचाती थी और न ही चलाने वाले की जेब पर बोझ डालती थी। यह थी ‘साइकिल’, एक ऐसा साधारण, मितव्ययी लेकिन दूरदर्शी आविष्कार, जो न केवल गति को आम आदमी की पहुंच में ले आया, बल्कि स्वच्छ हवा और स्वास्थ्य के रास्ते भी खोले। वो समय, जब बच्चों से लेकर कामगार तक, दूध वालों से लेकर शिक्षकों तक, साइकिल हर गली-नुक्कड़ का हिस्सा थी, अब कहीं गुम होती जा रही है। लेकिन शायद यह वापसी का समय है क्योंकि जिस तेजी से हमारे शहरों की सड़कों पर गाडिय़ां बढ़ी हैं, धुएं और ट्रैफिक के बीच जिस तरह हवा और स्वास्थ्य का दम घुटा है, उस सबके बीच साइकिल एक बार फिर से उम्मीद की रफ्तार बनती जा रही है।
हाल के वर्षों में दुनियाभर में साइकिल चलाने को लेकर एक नई चेतना जागी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों ने भी साइकिल को न केवल एक सस्ता परिवहन बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य संवर्धन का सबसे प्रभावशाली तरीका माना है। वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र ने 3 जून को ‘विश्व साइकिल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी, जो केवल एक औपचारिकता नहीं बल्कि उस विचार की मान्यता थी, जो बताता है कि साइकिल आज के सबसे बड़े वैश्विक संकटों (जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों) का सरल समाधान बन सकती है। एक आंकड़ा बताता है कि यदि शहरी भारत में 50 प्रतिशत छोटी दूरी के सफर साइकिल से तय किए जाएं तो सालाना लगभग 2 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन रोका जा सकता है। यह अकेले भारत के संदर्भ में है। सोचिए, यदि पूरी दुनिया इसका अनुसरण करे तो क्या होगा?
डेनमार्क और नीदरलैंड जैसे देश तो पहले से ही उदाहरण हैं, जहां आधी से ज्यादा आबादी रोजमर्रा के कामों के लिए साइकिल पर निर्भर है। कोपेनहेगन में तो लगभग 62 प्रतिशत लोग अपने दफ्तर और स्कूल साइकिल से जाते हैं। नीदरलैंड में करीब 2.3 करोड़ साइकिलें हैं जबकि वहां की जनसंख्या केवल 1.7 करोड़ के आसपास है। यह उस सामाजिक और मानसिक स्वीकार्यता का संकेत है, जो तकनीक के बजाय तार्किकता को महत्व देती है। ऑल इंडिया साइकिल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) के अनुसार 2023-24 में संगठित क्षेत्र में साइकिलों की बिक्री 1.06 करोड़ इकाइयों तक पहुंची, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि की गई। असंगठित क्षेत्र की बिक्री 60-70 लाख इकाईयों के करीब रही। भारत साइकिल निर्माण के मामले में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है और उपभोग में तीसरे नंबर पर आता है।
खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान जब सार्वजनिक परिवहन पर पाबंदियां थी, उस समय साइकिल एक बार फिर से जीवन की गति का साधन बनी। शहरों में तो ‘साइकिल टू वर्क’ और ‘साइकिल डे’ जैसे अभियानों ने नई पीढ़ी को भी इससे जोडऩे की कोशिश की। आज भी दिल्ली, पुणे, बेंगलूरु, मुंबई जैसे महानगरों में कई कंपनियों और संस्थानों ने अपने कर्मचारियों के लिए साइकिल सेवाएं शुरू की हैं। कहीं किराये पर साइकिल उपलब्ध कराई जा रही है तो कहीं स्मार्ट कार्ड सिस्टम के तहत पूरे शहर में साइकिल ट्रैक बिछाए जा रहे हैं।
बात केवल परिवहन की नहीं है। स्वास्थ्य और फिटनेस का एक सहज और टिकाऊ उपाय भी है साइकिल। विशेषज्ञों का मानना है कि रोजाना केवल आधा घंटा साइकिल चलाने से न केवल वजन कम होता है बल्कि शरीर की मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं और फेफड़ों तथा हृदय भी बेहतर होते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो द्वारा किए गए एक अध्ययन में लगभग 2.64 लाख ब्रिटिश नागरिकों के डेटा का विश्लेषण किया गया, जिनकी औसत आयु 53 वर्ष थी। अध्ययन में पाया गया कि जो लोग नियमित रूप से साइकिल से काम पर जाते थे, उनमें हृदय रोग का जोखिम 46 प्रतिशत और कैंसर का जोखिम 45 प्रतिशत तक कम हो गया। इसके अलावा, इन लोगों में किसी भी कारण से मृत्यु का जोखिम 41 प्रतिशत कम पाया गया। यह अध्ययन ‘यूके बायोबैंक’ के डेटा पर आधारित था, जिसमें प्रतिभागियों को पांच वर्षों तक ट्रैक किया गया था।
इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साइकिल चलाना एंडॉर्फिन नामक हार्मोन को बढ़ाता है, जिससे मूड अच्छा होता है, तनाव घटता है और नींद बेहतर होती है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि साइकिल चलाना एक ‘नेट जीरो’ गतिविधि है यानी इसका उत्सर्जन शून्य है। न पेट्रोल-डीजल की जरूरत, न ही इंजन की गर्मी और न ही शोर। आज जब दुनिया ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव से जूझ रही है, तब साइकिल जैसे साधन किसी संजीवनी से कम नहीं। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यदि वैश्विक स्तर पर छोटी दूरी के 30 प्रतिशत सफर साइकिल से तय किए जाएं तो प्रतिवर्ष 0.3 गीगाटन सीओ2 उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है।
दुनिया में ऐसे कई शहर हैं, जिन्होंने साइकिल को भविष्य का ट्रांसपोर्ट माना है। पेरिस, न्यूयॉर्क, सिडनी, टोक्यो, ये सारे शहर अब ‘कार-फ्री डे’ मनाते हैं, जब सड़कों पर केवल साइकिलें चलती हैं। भारत में भी कई शहरों ने साइकिल ट्रैक और स्मार्ट साइकिल परियोजनाएं शुरू की हैं। 2025 तक भारत सरकार का लक्ष्य है कि 100 स्मार्ट शहरों में पर्यावरण-अनुकूल साइकिल नेटवर्क विकसित किए जाएं। साइकिल का उपयोग न केवल व्यायाम का तरीका है बल्कि सामाजिक समानता का भी प्रतीक बन सकता है। जब सड़कों पर अमीर और गरीब, एक समान वाहन से चलते हैं तो सामाजिक दूरी खुद-ब-खुद घट जाती है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने साइकिल को ‘सामाजिक समावेश, स्थिरता और शांति’ का प्रतीक बताया है। साइकिल चलाना बच्चों में अनुशासन और आत्मनिर्भरता भी विकसित करता है। एक समय था, जब बच्चों को स्कूल जाने के लिए साइकिल ही दी जाती थी। वो नजारा अब कम होता जा रहा है लेकिन वापसी के प्रयास जरूरी हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 5 से 17 वर्ष के बच्चों को प्रतिदिन कम से कम एक घंटे का व्यायाम जरूरी है और साइकिल इसका सबसे अच्छा जरिया है।
दूसरी ओर, यदि हम आर्थिक दृष्टि से देखें तो साइकिल सबसे किफायती साधन है। न लाइसेंस की जरूरत, न इंश्योरेंस का झंझट, न मेंटेनेंस की बड़ी लागत। पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के दौर में यह एक ‘मासिक फिक्स्ड इनकम’ वाले व्यक्ति के लिए वरदान समान है। साथ ही, भारत जैसे विशाल और विविध भौगोलिक क्षेत्र वाले देश में यह एक सस्ता और सरल यातायात साधन है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। परंतु इसके बावजूद साइकिल के रास्ते में कई चुनौतियां भी हैं। हमारे शहरों में साइकिल चालकों के लिए अलग ट्रैक का अभाव है, ट्रैफिक के बीच साइकिल चलाना जोखिम भरा होता जा रहा है। इसके अलावा, समाज में साइकिल को अब भी निम्न आर्थिक वर्ग से जोड़कर देखा जाता है, जो मानसिक बदलाव की मांग करता है।
विकसित देशों में साइकिल एक ‘कूल’ और ‘ईको-फ्रैंडली’ फैशन बन चुकी है जबकि भारत में मानसिकता धीरे-धीरे बदल रही है। इस वर्ष का विश्व साइकिल दिवस इसलिए खास है क्योंकि यह एक नए दशक के पहले पड़ाव पर है, जब दुनिया जलवायु संकट के प्रति पहले से कहीं ज्यादा सजग हो चुकी है। साइकिल अब केवल ‘फिटनेस’ या ‘शौक’ का साधन नहीं बल्कि एक वैश्विक आंदोलन का हिस्सा बन रही है। यह आंदोलन है बचत का, स्वास्थ्य का और पर्यावरण रक्षा का। अपने स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण की बेहतरी के लिए भी यह जरूरी है कि एक दिन, एक सप्ताह या महीने में कुछ बार ही सही, लेकिन जब भी संभव हो, हम साइकिल चलाएं, खुद के लिए, परिवार के लिए, समाज और आने वाली पीढिय़ों के लिए क्योंकि साइकिल केवल दो पहियों पर चलने वाली मशीन नहीं है, यह वह चेतना है, जो जीवन को सरल, सुरक्षित और स्वच्छ बना सकती है।
Hindi News / Opinion / एक बार फिर उम्मीद की रफ्तार बनती साइकिल