बिना साइबर जागरूकता के बैंकिंग सुरक्षा पूरी नहीं हो सकती
हाल में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के कुछ ऐसे आंकड़े आए हैं, जो आरबीआइ सहित आम लोगों के लिए चिंता का विषय है।


किसी भी अर्थव्यवस्था का उत्थान और पतन काफी हद तक उसके वित्तीय क्षेत्र के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। बैंक जनता के पैसे के ट्रस्टी होते हैं और इसी वजह से बैंकों को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। पिछले कुछ वर्षों में, बैंकिंग क्षेत्र संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। बैंकिंग धोखाधड़ी का प्रभाव वित्तीय नुकसान से परे है क्योंकि वे बैंकों में जनता के विश्वास को भी खत्म कर रहे हैं।
हाल में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के कुछ ऐसे आंकड़े आए हैं, जो आरबीआइ सहित आम लोगों के लिए चिंता का विषय है। आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान बैंक धोखाधड़ी की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन इनकी रकम में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। मार्च 2025 को समाप्त वर्ष में 194 फीसदी या लगभग तीन गुना बढक़र 36,014 करोड़ रुपए हो गई, जबकि पिछले वर्ष यह 12,230 करोड़ रुपए थी। वित्त वर्ष 2023-24 में जहां धोखाधड़ी के कुल मामलों की संख्या 36,060 थी वहीं 2024-25 में धोखाधड़ी के मामलों में कमी आई और यह संख्या घटकर 23,953 हो गई लेकिन धोखाधड़ी में नुकसान रकम तीन गुना बढ़ चुकी है, इसका मतलब है कि धोखाधड़ी का आकार बड़ा होता जा रहा है।
वित्त वर्ष 2025 में निजी क्षेत्रों के बैंकों ने धोखाधड़ी के सबसे ज्यादा 14,233 मामले दर्ज किए हैं। यह बैंकिंग सेक्टर के सभी मामलों का 59.4 फीसदी है। सरकारी बैंकों ने 6,935 मामले (29 प्रतिशत) दर्ज किए, लेकिन इसमें शामिल राशि 25,667 करोड़ (कुल का 71.3 प्रतिशत) ज्यादा थी, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों ने 10,088 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं। आरबीआइ ने कहा है कि इस वृद्धि का बड़ा कारण 2023 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए 122 पुराने मामलों को जोडऩे के चलते हुआ है। हालांकि, इससे बैंकों से गायब हुए 36,014 करोड़ रुपए कम नहीं हो जाते।
2016 में नए नोटों के प्रिंट के साथ आरबीआइ ने दावा किया था कि इसमें जो सुरक्षा के फीचर रखे गए हैं उसकी नकल करना काफी मुश्किल है फिर भी ऐसा नहीं हुआ है। 2024-25 में बैंकिंग सेक्टर में पकड़े गए नकली नोटों 200 और 500 रुपए की श्रेणी में नकली नोटों की संख्या में 14 फीसदी और 37 फीसदी का उछाल देखने को मिला। ऐसा नहीं है कि सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा इसे रोकने के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। जैसे-जैसे सुरक्षा बढ़ाने के लिए नोटों में नए फीचर्स शामिल किए जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी नकल करने की तकनीक भी विकसित होती जाती है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने पाया है कि इन उच्च गुणवत्ता वाले नकली नोटों को भारत भेजने के लिए नेपाल और पाकिस्तान के मार्ग का उपयोग किया जा रहा है। ये नोट कथित तौर पर पाकिस्तान में छापे जाते हैं और भारतीय मुद्रा की अधिकांश विशेषताएं अनुकूलित की जाती हैं, जिसके कारण आम आदमी को नकली और असली नोटों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है। बाजार में नकली नकदी आने से मौजूद धन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है जो बाजार में मुद्रास्फीति को बढ़ाती है जिससे माल और सेवाओं की भारी मांग होने लगती है। इसके अतिरिक्त, ऐसे नकली नोटों का उपयोग आतंकवादियों द्वारा भारत के खिलाफ किया जा रहा। जाली नोट किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए घातक होती है। इस पर पार पाना आरबीआइ व सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
आरबीआई ने रिपोर्ट में कहा कि प्राइवेट सेक्टर के बैंकों में दर्ज फ्रॉड की संख्या में कार्ड/इंटरनेट धोखाधड़ी का सबसे ज्यादा हिस्सा था। वहीं सरकारी बैंकों में धोखाधड़ी मुख्य रूप से लोन सेगमेंट में था। जिनमें कुछ में कई स्तरों पर मिलीभगत शामिल होती है। इसमें कहा गया है कि लोन से संबंधित धोखाधड़ी संख्या के हिसाब से 33 फीसदी से ज्यादा मामलों और वैल्यू के हिसाब से 92 फीसदी से ज्यादा मामलों के लिए जिम्मेदार है।
बड़ी बात यह है कि रिपोर्ट किए गए डेटा एक लाख रुपए और उससे ज्यादा की धोखाधड़ी के लिए हैं। यानी इससे कम राशि के बैंक फ्रॉड को इसमें नहीं लिया गया है लेकिन भारत में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) की लोकप्रियता की वजह से छोटे-छोटे ऑनलाइन ट्रांजेक्शंस बहुत होते हैं, जो अब ठगों के लिए बड़ा मौका बन रहे हैं। यूपीआइ आज देश में ३ ट्रिलियन से ज्यादा का सालाना कारोबार संभाल रहा है।
बैंकों से चोरी का सबसे पुराना और आम तरीका है फर्जी दस्तावेजों या रिश्वत के जरिए लोन लेना, जो तरीका आज भी बदस्तूर जारी है। लेकिन अब आम ग्राहकों के लिए खतरा बढ़ रहा है क्योंकि 50त्न से ज्यादा फ्रॉड डिजिटल या कार्ड-बेस्ड ट्रांजेक्शन में हो रहे हैं लेकिन उनकी रकम कम होने के नाते एक तो कम रिपोर्ट किए जाते हैं दूसरे कम रकम के होने के नाते इन्हें नजरअंदाज किया जाता है। आज के समय में फिशिंग अटैक्स से लेकर सिम कार्ड क्लोनिंग जैसे हाई-टेक तरीकों तक, ठग हर तरह की चाल चल रहे हैं।
इन सबसे निपटने के लिए हाल में आरबीआइ मुलेहनतर एआइ नाम का एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल लेकर आया है जो संदिग्ध ट्रांजेक्शंस को पकडऩे की कोशिश करता है। इसके अलावा, डिजिटल पेमेंट्स के लिए एक इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म का प्रोटोटाइप भी बनाया जा रहा है हालांकि भारत के मनी लॉन्ड्रिंग कानून बैंकों को तुरंत एक्शन लेने में कामगार नहीं हैं। इन पर कार्य करने की जरूरत है। बहरहाल अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बने बैंकिंग फ्रॉड और नकली नोट खतरनाक समस्या का इलाज मुश्किल तो है, पर नामुमकिन नहीं। डेलॉयट रिसर्च एजेंसी के एक अध्ययन के अनुसार देश में 2026 तक 100 करोड़ लोग स्मार्टफोन का उपयोग करेंगे। निकट भविष्य में डिजिटल बैंकिंग व अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करेगी और फिनटेक भारतीय बैंकिंग और भुगतान प्रणाली के लिए आगे का रास्ता है। बस आवश्कयता है इसे सुगम और सुरक्षित बनाने की। बैंकों का सिर्फ ‘सावधान रहें’ कहने से जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना काफी नहीं है। समय के साथ अब सिस्टम में मजबूत सुरक्षा की जरूरत है। इसलिए पेमेंट इंडस्ट्री को मजबूत और टिकाऊ बनाना होगा। कर्मचारियों के साथ-साथ ग्राहकों का साइबर जागरूक होना आवश्यक है । इजरायल जैसे कुछ देशों ने साइबर जागरूकता को उनके स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया है। अब हमें भी इस दिशा में सोचने की जरूरत है।
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