किसी भी भौतिक ऊर्जा से ज्यादा प्रभावशाली है मां की ऊर्जा
रिद्धि देवरा, इन्फ्लूएंसर और पेरेंटिंग कोच


जब कोई स्त्री मां बनती है तो वह केवल एक नई भूमिका नहीं अपनाती, बल्कि उसके भीतर एक ऐसी ऊर्जा जागृत होती है, जो पूरे घर, परिवार और अंतत: समाज को प्रभावित करती है। यह ऊर्जा दिखती नहीं, पर उसका असर हर कोने में महसूस होता है।
मातृत्व के शुरुआती दिनों में अक्सर यह समझा जाता है कि बच्चे की परवरिश में सबसे अधिक महत्त्व अच्छे खिलौनों, पौष्टिक भोजन, श्रेष्ठ विद्यालयों और डिजिटल उपकरणों से दूरी का होता है। लेकिन समय के साथ पता चलता है कि इन सबसे अधिक मायने माँ की अपनी स्थिति, उसकी ऊर्जा और उसका मानसिक संतुलन रखता है। एक मां का मन जैसे होता है, वैसे ही घर का वातावरण बनता है। यदि वह व्यथित है तो घर में तनाव पसरता है; यदि वह शांति में है तो घर में भी सुकून रहता है। मां की मुस्कान, उसकी सांसों की लय, उसका व्यवहार घर के हर सदस्य पर असर डालता है। यह ऊर्जा, यह प्रभाव, किसी भी भौतिक ऊर्जा स्रोत से अधिक प्रभावशाली है।
मां की ऊर्जा केवल बच्चों को नहीं, पूरे परिवार को आकार देती है। यदि इस ऊर्जा को ठीक से संवारा जाए तो इसका प्रभाव आने वाली पीढय़िों तक जाता है। कहते हैं, जब आप एक बच्चे को संवारते हैं तो एक राष्ट्र को संवारते हैं, लेकिन वास्तव में, जब आप एक माँ को संवारते हैं तो पूरे समाज और विश्व को संवारने की प्रक्रिया शुरू होती है।
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कई माताएं अपने को भूल जाती हैं। वे सब कुछ बच्चों और परिवार के लिए करती हैं, लेकिन स्वयं को समय नहीं दे पातीं। हाल ही में मुझसे मिली एक मां प्रिया की कहानी इसका उदाहरण है। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर रही प्रिया ने अपने बच्चों की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी। सब कुछ नियमबद्ध किया, पर एक दिन उसके पांच साल के बेटे ने पूछ लिया — “मम्मा, आप हमेशा थकी हुई लगती हो। क्या आप मुझसे नाराज़ हो?” यह बात उसे भीतर तक चुभी । वह नाराज़ नहीं थी. बस थकी हुई थी। यह एहसास इतना गहरा था कि उसने उसी दिन निर्णय लिया कि वह प्रतिदिन किसी न किसी रूप में कुछ समय स्वयं के लिए निकालेगी। धीरे-धीरे न केवल उसकी ऊर्जा लौटी, बल्कि उसका धैर्य, उसकी मुस्कान और घर की रौनक भी लौट आई। इसका सीधा अर्थ है — जब एक मां खुद को संवारती है, आराम देती है, गहराई से सांस लेती है, तो वह सिर्फ खुद की नहीं, अपने परिवार की सेवा कर रही होती है। अपनी ऊर्जा को पोषित करना कोई स्वार्थ नहीं, बल्कि सबसे उदार कार्य है।
अब समय आ गया है कि हम मातृत्व को केवल एक भूमिका नहीं, एक ऊर्जा के रूप में समझें। एक ऐसी ऊर्जा जिसे पोषण, समझ और विश्राम की आवश्यकता है। मां का अधिकार है कि वह सुनी जाए, उसका ख्याल रखा जाए, और उसे ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ विश्राम और आनंद भी मिले। उसकी पूर्णता ही परिवार की संपूर्णता है।
कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया, जहां हर मां को यह अहसास हो कि उसकी उपस्थिति कितनी मूल्यवान है। जहां वह आत्मविश्वास से कह सके — “मैं अपने घर की धडक़न हूं।” और जहां वह बिना अपराधबोध के अपनी देखभाल कर सके, क्योंकि जब एक मां की ऊर्जा संतुलित होती है तो परिवार खिल उठता है, और जब परिवार स्वस्थ होता है तो समाज और दुनिया भी ठीक होने लगते हैं।
इसलिए हर मां के लिए एक विनम्र संदेश — अपनी ऊर्जा को सहेजिए। यह कोई विलासिता नहीं, यह सबसे बड़ा उपहार है जो आप अपने परिवार को दे सकती हैं।
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