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अर्थशास्त्र शिक्षा में रहा लक्ष्मीनारायण नाथूरामका का महत्वपूर्ण योगदान

डाॅ. मीनाक्षी गुप्ता

जयपुरJun 11, 2025 / 03:51 pm

Sanjeev Mathur

राजस्थान में अर्थशास्त्र विषय का शायद ही कोई विद्यार्थी, विशेषज्ञ होगा जो लक्ष्मीनारायण नाथूरामका के नाम से अनभिज्ञ हो। उन्होंने 1952 से 1989 तक अध्यापन कार्य किया और राजस्थान विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग से एसोसिएट प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए। पीएचडी की डिग्री नहीं होने के कारण प्रोफेसर नहीं बन पाये लेकिन राजस्थान के प्रमुख अर्थशास्त्रियों में उनका नाम है। उनके द्वारा लिखित पुस्तकें, आलेख एवं व्याख्यान एक शोध तो क्या अनेक शोधों से कम नहीं है, यह कहना अत्युक्ति नहीं होगी। वे राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी में संयुक्त निदेशक रहे। राज्य की विभिन्न आर्थिक समितियों के सदस्य भी रहे। सरलता और सादगी युक्त जीवन निरन्तर आर्थिक ज्ञान की खोज में कार्यरत रहा। विगत छह-सात दशकों से अनवरत् आर्थिक अध्ययन-गहन चिंतन-मनन-लेखन की इच्छा-शक्ति प्रेरणादायी है। 96 वर्ष की आयु में भी नवीनतम तथ्यों व नीतियों का विश्लेषण करना माॅ सरस्वती का आशीर्वाद ही है।प्रमुख अर्थशास्त्री श्री लक्ष्मीनारायण नाथूरामका जीवन पर्यन्त थके नहीं, रूके नहीं और अंतिम पल तक उनकी लेखनी चलती रही। यही उनका सपना था जिसे उन्होंने साकार कर दिखाया। सम-सामयिक आर्थिक चिन्तन पर उनके आलेख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होते रहे। उनका लेखन अर्थशास्त्र के एक विषय तक सीमित नहीं था। विभिन्न विषयों जैसे आर्थिक अवधारणाए, अर्थशास्त्र के विभिन्न सिद्वान्त चाहें व्यष्टि अर्थशास्त्र के हो या समष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र व राजस्व, अर्थशास्त्र में गणित के प्रयोग, भारत की अर्थव्यवस्था हो या राजस्थान की अर्थव्यवस्था सभी पर मानक पुस्तके लिखी है। विद्यार्थियों को सुबोध हिन्दी में उच्चस्तरीय ज्ञान उपलब्ध कराया। लेखक के रूप में निरन्तर नवीनतम जानकारी को जोड़ने का प्रयास किया।

उनकी पुस्तकें अर्थशास्त्र के विशेषकर हिन्दी माध्यम से स्नातक व स्नातकोत्तर विद्यार्थियों के लिए तो अत्यन्त उपयोगी रही है। प्रश्नोत्तर भाग को जोड़कर सफलता की कुंजी बना दिया। राजस्थान प्रशासनिक सेवा, भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसी प्रतियोगी परीक्षा एवं साक्षात्कार स्तरों और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने में भी प्रामाणिक मार्गदर्शिका रही है। अर्थशास्त्र में हिन्दी भाषा में उच्चस्तरीय गुणवत्तापूर्ण पुस्तकों का अभाव रहा है। इसे दूर करने में वे निरन्तर प्रयत्नशील रहे। अर्थशास्त्र की जटिलतम अवधारणाओं को सरलतम बनाने की विलक्षण क्षमता के धनी लक्ष्मीनारायण नाथूरामकाजी ने अर्थशास्त्र को उनके लिए भी समझने योग्य बनाया है जो इस पृष्ठभूमि से नहीं आतअर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य पर अपनी तीक्ष्ण दृष्टि रखना, उसे बेहतर ढंग से समझाना और विभिन्न आर्थिक नीतियों, योजनाओं पर सरकार के नवीनतम दृष्टिकोण को प्रस्तुत करना, विश्लेषण करना उनकी लेखनी की मुख्य विशेषता रही। वे सेवानिवृत्त होकर भी सक्रिय भूमिका निर्वहन करते रहे। प्रलोभनों से दूर रहकर सत्यवादिता और कर्तव्यनिष्ठा पर दृढ़ रहे। विद्यार्थियों में ज्ञान के घटते स्तर को देखकर उनका मन व्यथित हो जाता था। वे उन्हें निरन्तर गहन अध्ययन तथा अद्यतन रहने के लिए प्रेरित करते रहते थे।
अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से तर्को व तथ्यों के साथ प्रामाणिक ढंग से कहने व लिखने वाले, नैष्ठिक, कर्मठ अर्थशास्त्रवेत्ता को हमने 7 अप्रैल 2025 को खो दिया। उनकी दैहिक क्षति अपूरणीय है। उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान की लौ अनवरत जलती रहेगी और हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी। आर्थिक समस्याओं का हल करना सुगम नहीं है फिर भी किस प्रकार आम लोगों का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है, देश में और राजस्थान में आर्थिक विकास की भावी चुनौतियां और संभावनाऐं क्या है इसे समझने और नीति निर्माण में उनका चिन्तन उपयोगी रहेगा। जनमानस में आर्थित जागरूकता लाने, अर्थशास्त्र विषय में रूचि बढ़ाने में सहायक सिद्व होगा। स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण नाथूरामकाजी की लेखनी विद्यार्थियों एवं पाठकों की कई लेखनी बनकर उभरेगी, परन्तु आर्थिक चिन्तन के विभिन्न पक्षों पर गुणवत्तापूर्ण लेखन श्रृंखला कार्य हर कोई नहीं कर सकता। राजस्थान ने अपना एक प्रखर अर्थशास्त्री, शिक्षाविद खो दिया।

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