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भारत की हिंद महासागर क्षेत्र में संतुलन की पहल

के.एस. तोमर ,
राजनीतिक विश्लेषक एवं सामरिक मामलों के स्तंभकार

जयपुरJul 29, 2025 / 02:56 pm

Shaily Sharma

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई 2025 की मालदीव यात्रा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री रणनीति और पड़ोसी नीति को नया बल देने वाली घटना है। यह दौरा उस समय हुआ जब मालदीव में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत और मालदीव के संबंध तनावपूर्ण दौर से गुजर चुके थे और चीन इस द्वीपीय देश में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा था। यह यात्रा न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक निर्णायक प्रयास है, बल्कि इससे भारत को हिंद महासागर में अपना पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र दोबारा हासिल करने का अवसर मिला है।
द्विपक्षीय रिश्तों में संतुलन : मोदी की यात्रा राष्ट्रपति मोहम्मद मुज्जू के‘इंडिया आउट’ रुख के बाद भारत की तरफ से आया शांतिपूर्ण लेकिन स्पष्ट संदेश है कि भारत पड़ोसी देशों के साथ तनाव नहीं, सहयोग का रास्ता अपनाना चाहता है। भारत द्वारा अपने सैन्य कर्मियों को हटाने के बाद उपजे अविश्वास को अब इस दौरे से काफी हद तक संतुलित किया गया है। दोनों देशों ने सहयोग की नई दिशा तय की है जो तकनीकी, आर्थिक और सुरक्षा क्षेत्रों तक फैली हुई है। यह दौरा यह सुनिश्चित करता है कि मालदीव जैसे छोटे लेकिन रणनीतिक रूप से अहम देश को भारत के भरोसेमंद सहयोगी के रूप में देखा जाए।
भारत की समुद्री रणनीति को बल : मालदीव की भौगोलिक स्थिति- हिंद महासागर के व्यस्त समुद्री मार्गों के पास- भारत के लिए अत्यंत संवेदनशील है। इस यात्रा के माध्यम से भारत ने यह संकेत दिया है कि वह अपने समुद्री क्षेत्र में किसी बाहरी शक्ति को प्रभुत्व नहीं जमाने देगा। मालदीव के साथ हुए समझौतों में समुद्री निगरानी, रक्षा प्रशिक्षण और आपदा प्रबंधन में सहयोग को प्राथमिकता दी गई है, जिससे भारत की समुद्री क्षमता में वृद्धि होगी। भारत की यह भूमिका‘नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ के रूप में फिर से स्थापित हुई है, जिससे अन्य छोटे द्वीपीय देशों को भी सकारात्मक संकेत जाएगा।मालदीव को आर्थिक और सुरक्षा लाभ : भारत ने मालदीव को 200 मिलियन डॉलर की नई ऋण सहायता की घोषणा की है, जिससे सड़क, बंदरगाह और आवास जैसे बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट पूरे होंगे। इससे रोजगार और आर्थिक स्थिरता को बल मिलेगा।
इससे पहले भारत ने 2.4 बिलियन डॉलर की सहायता भी दी थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत की नीति केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं है। मालदीव की सबसे बड़ी जरूरत- जलवायु परिवर्तन से लड़ना- भी भारत की प्राथमिकता में शामिल है। सौर ऊर्जा और हाइब्रिड पावर प्रोजेक्ट्स में भारत का सहयोग दीर्घकालिक प्रभाव डालेगा। सुरक्षा के मोर्चे पर, भले ही भारत ने अपने सैनिक वापस बुला लिए हों, तकनीकी स्टाफ और संयुक्त अभ्यासों से रक्षा सहयोग बना रहेगा। शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ेगा। भारत की छात्रवृत्ति, चिकित्सा सुविधा और सांस्कृतिक प्रभाव मालदीव की जनता के लिए लाभकारी सिद्ध होंगे।
चीन पर रणनीतिक संदेश : यह यात्रा चीन के लिए एक स्पष्ट संदेश है। बीजिंग की बेल्ट एंड रोड योजना के तहत वह मालदीव में बंदरगाह और बुनियादी ढांचे के जरिए रणनीतिक पकड़ बनाने की कोशिश कर रहा था।
भारत की पारदर्शी और लोक-कल्याण आधारित मदद चीन की ऋण-निर्भर नीति से अलग है और इससे मालदीव को स्वतंत्र नीति अपनाने में मदद मिलेगी। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी बाहरी शक्ति को हिंद महासागर में सैन्य उपस्थिति की अनुमति नहीं देगा। यह वही नीति है जिसका उदाहरण 1988 के‘ऑपरेशन कैक्टस’ में देखा गया था। चीन इस चुनौती का जवाब अवश्य देगा- शायद निवेश या रक्षा प्रस्तावों के जरिए- लेकिन भारत की मौजूदगी अब संतुलन बना चुकी है।
भारत के लिए लाभ : मोदी की इस यात्रा से भारत को कई लाभ होंगे। सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह मालदीव में फिर से रणनीतिक गहराई हासिल कर रहा है, जिसे हाल के वर्षों में चीन धीरे-धीरे छीनने की कोशिश कर रहा था। यह भारत की पड़ोसी नीति और‘सागर’ दृष्टिकोण को मजबूती देता है, खासकर तब जब नेपाल और बांग्लादेश में भारत के लिए राजनीतिक समीकरण जटिल हो रहे हैं। मालदीव में यह पुनर्संयोजन एक सकारात्मक मिसाल के रूप में देखा जाएगा।
यह यात्रा प्रधानमंत्री मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी बल देती है। जी20 और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत की स्थिति को एक जिम्मेदार और स्थायी पड़ोसी के रूप में प्रस्तुत किया जा सकेगा। साथ ही, आतंकवाद और कट्टरपंथ जैसे खतरे जो मालदीव में समय-समय पर उभरते रहे हैं, उनसे निपटने में दोनों देशों का सहयोग और भी गहरा होगा।
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा केवल एक औपचारिक राजनयिक दौरा नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीतिक संदेश है। यह दौरा बताता है कि भारत अपने समुद्री क्षेत्र में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाने के लिए तैयार है- न केवल रक्षा के मामले में, बल्कि आर्थिक, पर्यावरणीय और मानवीय दृष्टिकोण से भी। यदि इस यात्रा से प्राप्त गति को बनाए रखा गया, तो यह भारत और मालदीव दोनों के लिए स्थायित्व, साझेदारी और संतुलन का नया युग साबित हो सकता है।

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