सम्पादकीय : बचत खातों में ब्याज दरों का कम होना चिंताजनक
आरबीआइ ने वर्ष 2011 में बचत खाते की ब्याज दरों को नियमनमुक्त कर बैंकों को स्वतंत्र रूप से दरें निर्धारित करने की अनुमति दी थी।


भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के बुलेटिन में यह खुलासा चौंकाने वाला और चिंताजनक है कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के कई बैंकों के बचत खातों पर ब्याज दरें ऐतिहासिक रूप से निम्न स्तर पर पहुंच गई है। गत 25 साल में बचत खातों पर ब्याज दरें 4 फीसदी से घटकर 2.5 फीसदी तक रह गई हैं। यह स्थिति आम उपभोक्ता के साथ-साथ पूरी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर विचार करने का विषय है। आरबीआइ ने वर्ष 2011 में बचत खाते की ब्याज दरों को नियमनमुक्त कर बैंकों को स्वतंत्र रूप से दरें निर्धारित करने की अनुमति दी थी। उस समय माना जा रहा था कि इससे बाजार आधारित प्रतिस्पद्र्धा बढ़ेगी और छोटी बचत करने वाले लोगों का बड़ा लाभ होगा। लेकिन, ब्याज दरें कम होने से छोटी बचत करने वालों पर बड़ा संकट पैदा हो गया है। आंकड़ों को मुताबिक बड़े सरकारी और निजी बैंक बचत खातों पर 2.5 फीसदी से 3 फीसदी तक ब्याज दे रहे हैं, वहीं महंगाई दर 4 फीसदी के आसपास है। ऐसे में बचत खाते में रखी गई खाताधारक की जमा रकम का मूल्य समय के साथ घटता चला जाएगा।
इन ब्याज दरों का निम्नस्तर पर पहुंचना इसलिए अधिक चिंताजनक है कि हमारे देश की बड़ी आबादी खासकर बुजुर्ग, पेंशनभोगी, गृहिणियां और वेतनभोगी लोग छोटी-छोटी बचत कर पैसे को बैंक में रखते हैं ताकि उससे कुछ अतिरिक्त आय हो सके और आपातकालीन स्थितियों में इस्तेमाल भी किया सके। अब नए हालात में ब्याज से होने वाली अतिरिक्त आय महज औपचारिक बन गई है। इससे लोगों का बचत खाते में पैसा रखने से मोहभंग हो सकता है। दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक ने फरवरी, 2025 से नीतिगत रेपो दर में कटौती की है। इसी का असर हुआ कि बैकों को भी ब्याज दरों में कटौती करनी पड़ी। अब सबसे बड़ा सवाल है कि कम ब्याज दरों से अर्थव्यवस्था को कैसे प्रोत्साहन मिलेगा? छोटे जमाकर्ता, जो अभी तक अपनी बचत को सुरक्षित रखने के लिए सार्वजनिक बैंकों पर निर्भर है, कम ब्याज के कारण निवेश के अन्य जोखिम भरे विकल्पों की ओर आकर्षित हो सकते हैं। इससे बैंकों के लिए जमा आधार को बनाए रखना काफी मुश्किल होगा। वहीं छोटे निवेशक अन्य छोटी बचत योजनाओं की ओर भी आकर्षित हो सकते हैं, जिससे बैंकों का आधार और कमजोर होगा। ऐसी स्थिति में आरबीआइ और केंद्र सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
बड़ी बात है कि सरकार नीतिगत दरों में कटौती कर आर्थिक विकास को गति देने पर विचार कर रही है तो दूसरी ओर बचत खातों पर ब्याज दरों का ऐतिहासिक रूप से कम होना छोटे जमाकर्ताओं के भरोसे को कमजोर कर सकता है। ऐसे में बैंकों को अपनी नीतियों पर फिर से विचार करने की जरूरत है। हमारे देश में कम ब्याज दरें अल्पकालीन आर्थिक प्रोत्साहन के लिए फायदेमंद हो सकती है लेकिन लंबे समय के लिए वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए बचत और निवेश में संतुलन जरूरी है, ताकि छोटी-छोटी बचत करने वाले लोगों का बैंकों पर भरोसा बना रहे।
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