सम्पादकीय : मिलीभगत के खेल से बढ़ रहे अवैध खनन के मामले
मध्यप्रदेश में चंबल नदी के किनारे की तस्वीरें देख लीजिए, पता लग जाएगा कि किस तरह से खनन रोकने के आदेशों को माफिया छलनी करने में जुटे हैं।


Dozens of vehicles were engaged in mining gravel in Kothari river, police caught 6 vehicles
एक तस्वीर ही काफी होती है कहानी बयां करने को। देश भर में खनन माफिया की करतूत किसी से छिपी नहीं है। राजस्थान के भीलवाड़ा में कोठरी नदी के पास तो माफिया ने मिट्टी का ऐसा दोहन किया कि वहां से गुजर रही हाईटेंशन विद्युत लाइन को ही खतरा हो गया। दुस्साहस की हद यह कि टावर के नीचे से भी मिट्टी खोदी दी गई। मध्यप्रदेश में चंबल नदी के किनारे की तस्वीरें देख लीजिए, पता लग जाएगा कि किस तरह से खनन रोकने के आदेशों को माफिया छलनी करने में जुटे हैं। आदेश तो थे रेत के अवैध उत्खनन को रोकने के इसके उलट रेत के कारोबारियों ने परिवहन के लिए वाहनों की संख्या बढ़ा दी। पिछले दिनों ही छत्तीसगढ़ में तो रेत माफिया ने एक आरक्षक को ही ट्रॉली के नीचे कुचलकर मार दिया था। यहां बिलासपुर में अरपा नदी हो या छत्तीसगढ़ की लाइफलाइन महानदी जहां देखो वहां रेत माफिया नदी की कोख से रेत छानने में लगे हैं।
ये तो महज बानगी है। एक दो नहीं हर राज्य में अवैध खनन की एक समान तस्वीरें सामने आ रही हैं। कहना न होगा कि खनन की रोकथाम को लेकर प्रशासनिक स्तर पर होने वाली ढिलाई इन सबके लिए जिम्मेदार है। जब-तब दिखावे की कार्रवाई होकर रह जाती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसे दौर में जब आसमान पर बादल डेरा डाल चुके हैं तब भी रेत और मिट्टी का अवैध खनन आखिर किसकी अनुमति से होता दिख रहा है। बड़ी नदियों के आस-पास किसी भी शहर का दौरा कर लें वहां रेत के बड़े बड़े पहाड़ नजर आएंगे। जाहिर है ये स्टाक इकट्ठा इसलिए किया जा रहा है कि जब मानसून का समय हो तब रेत को मनमाने दामों पर बेचा जा सके। सवाल ये है आखिर मनमानी के ये मामले रुकते क्यों नहीं हैं। जवाब भी यही है कि ज्यादातर एक्शन सतही नजर आते हैं। कभी सुरक्षा बलों की कमी का बहाना बनाया जाता है तो कभी कोई और। माफिया का सूचना तंत्र इतना मजबूत होता है कि कभी प्रशासनिक अमला कार्रवाई की तैयारी भी करता है तो उन्हें पहले से ही भनक लग जाती है। कागजी छापों में एकाध ऐसे लोगों को पकड़ लिया जाता है जिनका खनन से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता। इनमें ज्यादातर खनन कार्य में लगे श्रमिक होते हैं। अफसरों से मिलीभगत का ऐसा खेल चलता है कि असली किरदार पकड़ से बाहर होने में कामयाब हो जाते हैं। असल चेहरों के गिरेबान तक तो जिम्मेदारों के हाथ पहुंच ही नहीं पाते। ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं जिनमें रेत के अवैध खनन व परिवहन में नेताओं की प्रत्यक्ष व परोक्ष भूमिका सामने आती है।
अवैध खनन मे कभी कोई हादसा हो जाए तब जाकर प्रशासन हरकत में आता है। लेकिन कभी कोई यह विचार करने का प्रयास ही नहीं करता कि खनन को नियम-कायदों से बांधा जाए तो सरकारी राजस्व भी बढऩा तय है। लेकिन जब मिलीभगत का खेल हो तो इसकी चिंता भला कौन करे?अवैध खनन को शह देने वाले चाहे नेता हों या अफसर या फिर कोई और, समुचित सख्ती के बिना इस पर रोक असंभव तो नहीं लेकिन मुश्किल है।
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