सम्पादकीय : तुर्किए-अजरबैजान को भारत से संबंध सुधारने की जरूरत
तुर्किए और अजरबैजान द्वारा पाकिस्तान का खुला समर्थन न केवल भारत की संप्रभुता के लिए चुनौती है, बल्कि यह दोनों देशों के साथ भारत के आर्थिक और कूटनीतिक रिश्तों को गहरे संकट में डाल रहा है।


ऑपरेशन सिंदूर, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई का प्रतीक बन चुका है। हालांकि, इस कार्रवाई ने वैश्विक कूटनीति में एक नया मोड़ ला दिया है, खासकर भारत-तुर्किए और भारत-अजरबैजान संबंधों के संदर्भ में। तुर्किए और अजरबैजान द्वारा पाकिस्तान का खुला समर्थन न केवल भारत की संप्रभुता के लिए चुनौती है, बल्कि यह दोनों देशों के साथ भारत के आर्थिक और कूटनीतिक रिश्तों को गहरे संकट में डाल रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्किए ने न केवल पाकिस्तान का समर्थन किया, बल्कि उसे ड्रोन और अन्य सैन्य सहायता भी प्रदान की। कई रिपोर्ट में ऐसा भी कहा गया है कि तुर्किए के सैन्य सलाहकार और ड्रोन ऑपरेटर पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ हमलों में शामिल थे, जिसमें दो तुर्की ड्रोन ऑपरेटर मारे गए। तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने खुले तौर पर पाकिस्तान के साथ एकजुटता दिखाई और भारत की कार्रवाई की निंदा की। यह रुख भारत के लिए विश्वासघात से कम नहीं, खासकर तब जब भारत ने 2023 के भूकंप के दौरान तुर्किए को तत्काल मानवीय सहायता प्रदान की थी।
भारत ने इस विश्वासघात का जवाब कठोर कदमों से दिया। नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए एक तुर्की कंपनी की एयरपोर्ट सर्विस सिक्योरिटी क्लीयरेंस रद्द कर दी, जो 58,000 उड़ानों और 5.40 लाख टन कार्गो को हैंडल करती थी। इसके साथ ही, भारत में सामाजिक और व्यापारिक बहिष्कार की लहर शुरू हो गई है। पुणे के व्यापारियों ने तुर्किए से सेब का आयात बंद किया, उदयपुर ने संगमरमर पर रोक लगाई, और देश के अन्य हिस्सों में भी तुर्किए और अजरबैजान से व्यापार रोकने की पहल तेज हो गई है। यह जन-आंदोलन भारत की एकजुटता और देशप्रेम का प्रतीक है, जो वैश्विक मंच पर भी संदेश दे रहा है।
अजरबैजान का पाकिस्तान समर्थन तुर्किए के साथ उसके घनिष्ठ राजनयिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों से प्रेरित है। 2020 के अजरबैजान-आर्मेनिया युद्ध में तुर्किए और पाकिस्तान ने अजरबैजान का समर्थन किया था, जिसने इन तीनों देशों के बीच एक रणनीतिक गठबंधन को मजबूत किया। ऑपरेशन सिंदूर में अजरबैजान का भारत विरोधी रुख इस गठबंधन का हिस्सा है। भारत-तुर्किए और भारत-अजरबैजान संबंधों का भविष्य कई कारकों पर पर निर्भर करेगा। पहला, तुर्किए और अजरबैजान की नीतियां। यदि दोनों देश अपने रुख में नरमी लाते हैं और भारत के साथ कूटनीतिक संवाद शुरू करते हैं, तो संबंधों को कुछ हद तक सुधारा जा सकता है। दूसरा, भारत की आर्थिक शक्ति। भारत का विशाल बाजार तुर्किए और अजरबैजान के लिए आकर्षक है। तुर्किए के व्यापारी पहले ही भारत के साथ व्यापार जारी रखने की अपील कर रहे हैं, क्योंकि बहिष्कार से उन्हें भारी नुकसान हो रहा है। तीसरा, वैश्विक कूटनीति। यदि प्रमुख शक्तियां जैसे अमरीका और यूरोपीय संघ भारत का समर्थन करते हैं, तो तुर्किए और अजरबैजान पर दबाव बढ़ेगा।
ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल भारत की सैन्य ताकत को प्रदर्शित किया, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीतिक दृढ़ता को भी उजागर किया। तुर्किए और अजरबैजान का पाकिस्तान समर्थन भारत के लिए एक चेतावनी है कि क्षेत्रीय और वैश्विक गठबंधन तेजी से बदल रहे हैं। भारत को अब अपनी नीतियों को और सख्त करना होगा, चाहे वह व्यापारिक बहिष्कार हो या कूटनीतिक अलगाव। साथ ही, भारत को अपने आंतरिक एकजुटता और आर्थिक शक्ति का उपयोग करके यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी देश उसकी संप्रभुता को चुनौती न दे। यह समय है कि भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करे, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत करे।
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