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दुर्लभ बीमारियों से निपटना बड़ी चुनौती, जमीनी प्रयास जरूरी

डाॅ. पंकज जैन, प्रोफेसर, मेडिसिन, मेडिकल कॉलेज, कोटा

जयपुरAug 19, 2025 / 09:32 pm

Sanjeev Mathur

अभी तक ज्ञात 7000 से 10000 दुर्लभ बीमारियों में से कुछ बीमारियों ही इंसानो को प्रभावित करती हैं, इसीलिए इन्हें दुर्लभ बीमारियों के नाम से परिभाषित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार जो बीमारी 1000 में से एक या एक से कम आबादी को प्रभावित करती है, दुर्लभ रोग की श्रेणी में आती है। हालांकि एक आंकड़े के अनुसार अकेले अमरीका में लगभग 25 से 30 मिलियन लोग इन दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित हैं जिसकी औसत वार्षिक चिकित्सा लागत लगभग 400 बिलियन डॉलर होगी। ज्यादातर दुर्लभ बीमारियों के पीछे आनुवंशिक कारण होता है, ये गंभीर व जानलेवा होती है एवं इनका निदान व उपचार भी मुश्किल होता है। इसके अलावा दुर्लभ रोगों से संबंधित अनुसंधान भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि दुर्लभ रोग सीमित मात्रा में लोगों को प्रभावित करते हैं। ऐसे में उनके कारणों, पैटर्न एवं उपचारों के बारे में जानकारी संकीर्ण हो जाती है। वर्तमान में केवल 10 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियों का ही एफडीए द्वारा अनुमोदित उपचार उपलब्ध है। दुर्लभ बीमारियों के उपचार में सबसे बड़ी अड़चन उपचार संबंधी लागत है। दुर्लभ बीमारियों के टीके एवं दवाइयां खरीदने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूटस ऑफ हेल्थ (एनआइएच) की एक स्टडी के अनुसार दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित रोगियों की स्वास्थ्य देखभाल लागत अन्य बीमारियों के मरीजों की तुलना में 3 से 5 गुना अधिक है। अशिक्षा एवं लोगों में जागरूकता का अभाव भी दुर्लभ रोगी के उपचार में बड़ी बाधा है। हमारे देश में समस्या और भी जटिल हैं। हमारी आबादी बहुत अधिक है, स्वास्थ्य सेवा संसाधन सीमित है जबकि दुनिया भर के दुर्लभ रोगों से ग्रसित रोगियों में से एक तिहाई रोगी (लगभग 7 करोड़) भारत में हैं। ऐसे में दुर्लभ रोगों से निपटना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। भारत में दुर्लभ रोगों के संकट से निपटने हेतु इस दिशा में जमीनी स्तर पर सकारात्मक प्रयासों की तत्काल आवश्यकता हैं । हालांकि पिछले कुछ वर्षों में नीतिगत स्तर पर कुछ खास बदलाव किए गए हैं। सरकार द्वारा दुर्लभ रोगी के उपचार संबंधी कई घोषणाएं की गई हैं। कुछ दुर्लभ रोगों को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है। कुछ राज्यों ने दुर्लभ रोगी के लिए स्वास्थ्य बीमा कवरेज का विस्तार शुरू किया है। सरकार द्वारा विश्व में पहले से ही परीक्षण की जा चुकी कुछ ऑरफेन ड्रग्स (दुर्लभ रोगों में प्रयुक्त होने वाली दवाइयां) के नैदानिक परीक्षण की भारत में प्रवेश की मंजूरी दी गई है।
सन 2022 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के दुर्लभ रोग प्रकोष्ठ द्वारा दुर्लभ रोगी के उपचार के लिए अनुदान राशि को 20 लाख से बढाकर 50 लाख रुपए कर दिया गया है, साथ ही अनुदान प्रदान करने के प्रतिबंधात्मक नियम को भी समाप्त कर दिया है। नए नियम के तहत अब बीमारी से पीडि़त कोई भी मरीज चाहे वो किसी भी श्रेणी का हो, सरकार से 50 लाख रुपए की बढ़ी हुई वित्तीय सहायता का हकदार होगा जबकि पहले सिर्फ श्रेणी एक का मरीज ही इसे प्राप्त कर सकता था। हाल ही भारत की पहल पर 24 देशों ने दुर्लभ रोगों के टीके व दवाइयों को सस्ती दर पर उपलब्ध कराने के लिए ग्लोबल नेटवर्क बनाने के लिए हाथ मिलाया है ताकि गरीबों तक गुणवत्तापूर्ण दवाईयां पहुंच सकें। इन सब प्रयासों के बावजूद भी इस दिशा में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। भारतीय दुर्लभ रोग संगठन द्वारा राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति के बेहतर क्रियान्वयन हेतु कई सिफारिशें की गई हैं जिनको लागू करना आज की महत्ती जरूरत है। आमजन एवं स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को सर्वप्रथम दुर्लभ रोगों के बारे में जागरूक करना होगा। ग्रामीण इलाकों में दुर्लभ रोगों के शीघ्र निदान व उपचार में आने वाली कमियों को दूर करने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना होगा।
दुर्लभ रोगों में प्रयुक्त ऑरफेन ड्रग्स के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने एवं आयात निर्भरता को कम करने के लिए कर छूट व सब्सिडी दी जानी चाहिए। साथ ही इन दवाइयों की उपलब्धता भी जन औषधि केंद्रों पर सुलभ की जानी चाहिए। दुर्लभ रोगों के रोकथाम हेतु सरकारी एवं गैर-सरकारी दोनों ही अस्पतालों में नवजात शिशुओ की जांच को अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि बीमारी का निदान प्रारंभिक चरण में ही हो सके। स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में ज्यादातर दुर्लभ रोगों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि इनके उपचार एवं नैदानिक जांचों की पहुंच आम जन तक बढ़ सके। दवा कंपनियों को दुर्लभ रोगियों के लिए सस्ता उपचार विकसित करने के लिए प्रोत्साहन नीति बनाने पर विचार किया जाना चाहिए। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अन्य रोगों की तरह ही दुर्लभ रोगों के उपचार व निदान की सहज सुलभता भी अति आवश्यक है क्योंकि इनसे ग्रसित आबादी भी कोई कम नहीं है। ऐसे में आज के अति विकसित, संवेदनशील व पूर्णतया सक्षम वैज्ञानिक युग में दुर्लभ रोगों से पीडि़त रोगियों को असमय काल का ग्रास बनने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है।

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