scriptजब गिरे कागज को उठाने के लिए झुकना भी संघर्ष लगे | Patrika News
ओपिनियन

जब गिरे कागज को उठाने के लिए झुकना भी संघर्ष लगे

रविवार को शाम 5:30 बजे ‘गेट्स ऑफ जलसा’ का समय आता है और मेरे ऑफिस व सिक्योरिटी कॉल करके सूचित करते हैं कि नीचे आने की पूरी तैयारी कर ली गई है। मैं सोच में पड़ जाता हूं और आशंका से कांप उठता हूं कि वहां कोई होगा भी या नहीं… जैसे ही मैं उनका […]

जयपुरAug 21, 2025 / 02:16 pm

Shaily Sharma

रविवार को शाम 5:30 बजे ‘गेट्स ऑफ जलसा’ का समय आता है और मेरे ऑफिस व सिक्योरिटी कॉल करके सूचित करते हैं कि नीचे आने की पूरी तैयारी कर ली गई है। मैं सोच में पड़ जाता हूं और आशंका से कांप उठता हूं कि वहां कोई होगा भी या नहीं… जैसे ही मैं उनका सामना करने के लिए सीढिय़ां चढ़ता हूं तो एक आश्वासन मेरे शरीर को जकड़ लेता है और सभी जयकार से हिम्मत बंधती है और फिर प्यार व प्रशंसा हावी हो जाते हैं।
हालांकि नियमित रूप से आने वाले लोग, सड़क पार छतों पर खड़े लोग, समर्पित ईएफ (एक्सटेंडेड फैमिली) जिनकी कमी कभी-कभी खलती है…
सोचता हूं क्यों और क्या वजह रही कि वे नहीं आए। क्या मैं बहुत सामान्य और अनचाहा हो गया हूं, क्या वे ऊब गए हैं इस 5-10 मिनट की झलक से, जिसके लिए लोग दोपहर से ही अच्छी जगह लेने जमा हो जाते हैं।
क्यों और क्या…
मेरे पास कोई जवाब नहीं .. बस इतना कि बदले में कुछ कर सकूं और उस छोटे समय में शुभचिंतकों के प्रयास को स्वीकार कर सकूं।
आज देर तक जाग रहा हूं क्योंकि कल अवकाश है। कुछ महत्त्वपूर्ण रिकॉर्डिंग करनी हैं दोस्तों के खास मौकों के लिए। अन्यथा तो जल्दी भोजन और सोने की कोशिश होती है ताकि रूटीन बदलकर फर्क महसूस किया जा सके। जल्दी सोना और जल्दी उठना सिर्फ एक कहावत नहीं, यह कारगर होता है।
बस अब दिनचर्या दवाओं और जरूरी कार्यों से घिरी रहती है। प्राणायाम-हल्का योग सही ढंग से करो। जिम में जाकर मूवमेंट करो ताकि चलने-बोलने का संतुलन सही रहे। शरीर धीरे-धीरे संतुलन खोने लगता है और इसे सुधारने के लिए काम करना जरूरी हो जाता है।
कुछ दिनचर्याएं जो पहले थीं, लगता है कि उन्हें फिर से शुरू करना आसान होगा, चूंकि वे कुछ साल पहले की गई थीं।
नहीं… बिल्कुल नहीं…
सिर्फ एक दिन की अनुपस्थिति और दर्द तथा मूवमेंट बहुत लंबी सैर पर चला जाता है…
यह आश्चर्य है कि पहले के सामान्य काम अब करने से पहले दिमाग को सोचना पड़ता है। साधारण काम जैसे पैंट पहनना। डॉक्टर सलाह देते हैं कि कृपया बच्चन साहब, बैठकर पहना करें, खड़े होकर मत पहनिए, आप संतुलन खो सकते हैं और गिर सकते हैं।
भीतर से मैं अविश्वास में मुस्कुरा देता हूं। जब तक यह न समझूं कि वे बिल्कुल सही थे, जो साधारण काम पहले सहज थे, अब वे भी एक निश्चित दिनचर्या से बंध गए हैं।
हैंडल बार्स…
ओह बॉय !!!!
आपको हर जगह उनकी जरूरत पड़ती है ताकि किसी भी शारीरिक क्रिया से पहले शरीर को थाम सकें और स्थिर रख सकें। सबसे साधारण बात- डेस्क से उड़कर गिरे कागज को उठाने के लिए झुकना भी अब बड़ी समस्या बन जाता है।
सच में…
बहादुरी कहती है आगे बढ़ो लेकिन फिर अहसास होता है, हे भगवान, यह तो बड़ी समस्या है। इसे करने की गति अनिश्चितता के साथ धीमी हो चुकी है।
इसे पढ़ऩे वालों को मेरी कही हर बात पर हल्की सी मुस्कुराहट और एक छिपी हुई
हंसी आएगी…
लेकिन…
प्रियजनों, आपमें से किसी को भी यह न झेलना पड़े, यही मेरी कामना है… लेकिन सच कहूं- यह होगा, हम सबके साथ होगा।
काश ऐसा न हो लेकिन समय के साथ
यह होगा।
हम सब उस दिन से नीचे की ओर बढ़ते हैं, जिस दिन हम इस दुनिया में आते हैं। गिरावट जन्म से ही शुरू हो जाती है।
दुखद… लेकिन यही जीवन और जीने की सच्चाई है। जवानी जीवन की चुनौतियों को आसानी से पार कर जाती है।
उम्र, अचानक आपकी गाड़ी के सामने स्पीड ब्रेकर लगा देती है और कहती है, ब्रेक लगाओ ताकि जीवन की गाड़ी चलाते समय तेज़ झटका न लगे।
ओह माय डियर! मैं बहुत अधिक दार्शनिक हो गया, लेकिन दर्शन ही वह गहन विषय है, जो अंतत: हावी हो जाता है।
हो सकता है कि आपमें थोड़ी देर के लिए इससे लड़ने का साहस हो… लेकिन अंतत:, दुख की बात है, हम सब हार जाएंगे। एक ऐसा नुकसान जो खोने योग्य है।
आपकी उपस्थिति और आपका काम पूरा हुआ और सराहा गया। अब अलग हो जाओ और तैयारी करो।

Hindi News / Opinion / जब गिरे कागज को उठाने के लिए झुकना भी संघर्ष लगे

ट्रेंडिंग वीडियो