इस तथ्य से ये जरूर स्पष्ट होता है कि क्रिप्टो में वित्तीय निवेश वैधानिक दर्जा रखता है, परंतु इसमें किसी भी प्रकार के वित्तीय घोटाले अथवा गबन के संबंध में कानूनी प्रावधानों में सुरक्षा का कोई उल्लेख नहीं है। हालांकि क्रिप्टो में वित्तीय निवेश करने पर होने वाले किसी भी प्रकार के गबन या घोटाले पर शिकायत करने के प्रावधान पुलिस थानों, साइबर क्राइम से संबंधित पुलिस, कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आर्थिक अपराधों के अंतर्गत प्रावधान है। इसके अलावा भारत सरकार के गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर भी इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
क्रिप्टोकरेंसी का प्रचलन वर्ष 2009 में हुआ था और भारत में इसकी पहुंच 2010 से शुरू हुई। लेकिन आरबीआई की ओर से अभी भी इसमें निवेश को कानूनी जामा नहीं पहनाया गया। शुरुआती समय में तो आरबीआई ने क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने से ही मना किया था। क्रिप्टोकरेंसी को ब्लैक मनी के हिसाब से बड़ा सुरक्षित निवेश भी माना जाने लगा है। इसका प्रचलन उन भारतीयों में अधिक बढ़ा है, जो विदेशों में पैसा बिना बैंकिंग व्यवस्था का उपयोग किए जल्द भेजना चाहते हैं।
क्रिप्टोकरेंसी के संबंध में मुख्य समस्या यह है कि भारतीयों में इसके तकनीकी पक्ष की कोई जानकारी नहीं है। इसमें आर्थिक रूप से उतार-चढ़ाव कैसे ऊपर या नीचे जाता है, इसकी भी जानकारी नहीं है। यह देखने को भी मिला है कि इसमें निवेश मुख्यत: धोखे से करवाया जाता है, जिसमें साइबर क्राइम एक मुख्य स्रोत है।
बड़ी विडंबना यह है कि धोखा खाने पर व्यक्ति इसकी सूचना पुलिस या प्रशासन को इसलिए नहीं दे पाता क्योंकि उसके इस निवेश की रकम मुख्यत: ब्लैक मनी का एक भाग होती है। क्रिप्टोकरेंसी के अकाउंट, सामान्य अकाउंट में सम्मिलित नहीं होते हैं, जैसे ईमेल या सोशल मीडिया के अकाउंट्स। इस कारण इन्हें खोलना व चलाना इतना आसान नहीं है। यदि कोई निवेशक किसी पर विश्वास करके उसी के माध्यम से अपना अकाउंट खुलवा कर निवेश कर देता है, तो उसके अकाउंट को साइबर अपराधियों की ओर से हैक करने और उसमें निवेशित रकम का गबन करने की आशंका रहती है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा भी पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास के जैसे ही इस बात को आगे बढ़ा रहे हैं कि क्रिप्टो में लेन-देन करने से पहले व्यक्ति को खुद सावचेत रहना चाहिए। भारत में वर्ष 2013 से 2017 तक आरबीआई ने लगातार क्रिप्टो व डिजिटल मुद्राओं में लेन-देन के संबंध में कई तरह के प्रश्नचिह्न खड़े किए। 2018 में आरबीआई ने इसके लेन-देन को पूर्णतया प्रतिबंधित कर दिया था। इसके बाद कुछ क्रिप्टो एक्सचेंज जो वैधानिक रूप से भारत में संचालन कर रहे थे, वे सुप्रीम कोर्ट में गए, तो कोर्ट ने 2020 में आरबीआई के क्रिप्टो में लेन-देन को प्रतिबंधित करने के निर्णय को पलट दिया था।
कोर्ट ने तब ये कहा था कि जब क्रिप्टो के संबंध में वर्तमान में कानून व्यवस्था में कोई प्रावधान ही नहीं है, तो लेन-देनों को प्रतिबंधित कैसे किया जा सकता है? इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकार को क्रिप्टो से संबंधित वैधानिक प्रावधान बनाने के लिए हिदायत दे रहा है। अप्रैल 2025 में एक रिट को सुनते समय सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के अंतर्गत क्रिप्टो से संबंधित प्रावधान बनाने की बात से मना कर दिया था और यह कहा था कि इस संबंध में भारत की संसद को ही मुख्य तौर पर देखना है।
हाल में शैलेश बाबूलाल भट्ट बनाम गुजरात राज्य, वर्ष 2025 के केस में सुप्रीम कोर्ट ने क्रिप्टो के गबन से संबंधित सभी कानूनी कार्रवाइयों को शून्य बताया था। इन सभी पहलुओं को देखते हुए क्रिप्टो से संबंधित कानून बनाने के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने की भी आवश्यकता जताई जा रही है।