दंपति के बीच भरण-पोषण संबंधी विवाद
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला एक दंपति के बीच चल रहे भरण-पोषण विवाद से जुड़ा था। जहां पति ने यह दावा किया कि उसकी पत्नी एक पढ़ी-लिखी और सक्षम महिला है। जिसने बीटेक और एमबीए की पढ़ाई की है और विवाह से पहले अच्छी खासी कमाई करती थी। पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने झूठा दावा किया है कि उसके पास पिछले दो सालों से कोई आय का साधन नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि उसकी कमाई जारी है।
फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया
हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए पति की अपील को खारिज कर दिया। इस बेंच में जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेणु भटनागर शामिल थे। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि भले ही पत्नी शैक्षणिक रूप से योग्य हो और पूर्व में कमाई करती रही हो, लेकिन यह मानना उचित है कि बच्चे की देखभाल के चलते उसने अपनी नौकरी छोड़ दी होगी।
बच्चे की देखभाल के कारण नौकरी छोड़ना न्यायसंगत
कोर्ट ने कहा कि जब पति-पत्नी के बीच अलगाव हुआ, तब उनका बच्चा बहुत छोटा था। ऐसे में यह संभव है कि पत्नी को उसकी देखभाल के लिए काम छोड़ना पड़ा हो। समय बीतने के साथ, कार्य अनुभव की कमी, पारिवारिक परिस्थितियां या अन्य सामाजिक कारणों से उसे दोबारा उपयुक्त रोजगार नहीं मिला हो। ऐसी स्थिति में यह कहना गलत होगा कि चूंकि उसमें कमाने की योग्यता है। इसलिए वह खुद को और अपने बच्चे को आर्थिक रूप से संभाल सकती है।
भरण-पोषण की राशि पर आपत्ति अनुचित
दरअसल, इस मामले में फैमिली कोर्ट ने पत्नी के लिए 10,000 रुपये और नाबालिग बेटी के लिए 15,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण तय किया था। पति ने यह कहते हुए इसे चुनौती दी कि वह पहले से ही अपनी मां को 35,000 रुपये महीना भरण पोषण भत्ते के रूप में दे रहा है और उस पर अतिरिक्त भार डालना अनुचित है। इस पर कोर्ट ने कहा कि चूंकि पति स्वेच्छा से अपनी मां को इतनी राशि दे रहा है। इसलिए वह पत्नी और बच्ची के लिए दी गई राशि पर आपत्ति नहीं कर सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पति ने किसी घर की खरीद, निजी ऋण, सोसाइटी लोन या अन्य निवेशों के लिए खर्च किया है, तो यह भरण-पोषण से छूट का आधार नहीं बनता। ऐसे खर्च पति के निजी हित से जुड़े होते हैं और इनका असर पत्नी-बच्चे के हक पर नहीं पड़ना चाहिए।