पहले समझिए पूरा मामला क्या है?
साल 1990 में पुलिस हिरासत के दौरान एक युवक की मौत हो गई थी। इस मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को दोषी ठहराया गया था। वह जुलाई 2019 से आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट पर 3 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा था, “जुर्माने की रकम गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा की जाएगी।” याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति नाथ ने पूछा था, “आप कितनी बार सुप्रीम कोर्ट गए हैं? कम से कम एक दर्जन बार?” इसके अलावा, भट्ट पर संपत्ति विवाद के कारण एक वकील को परेशान करने के लिए झूठा मामला दर्ज कराने का भी आरोप है। यह मामला 1996 का है, जब बनासकांठा पुलिस ने राजस्थान के पालनपुर में एक वकील के होटल के कमरे से ड्रग्स जब्त किया था। उस समय भट्ट बनासकांठा में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्यरत थे और उन्हें सितंबर 2018 में मामले में गिरफ्तार किया गया था।
1990 का कस्टोडियल डेथ केस क्या है?
साल 1990 में गुजरात के जामनगर जिले में उस समय तनाव उत्पन्न हुआ। जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने तत्कालीन भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के विरोध में भारत बंद का आह्वान किया। यह आंदोलन अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के समर्थन में निकाली गई रथ यात्रा से जुड़ा था, जिसे आडवाणी ने सोमनाथ से शुरू किया था और बिहार में उनकी गिरफ्तारी के बाद व्यापक विरोध देखने को मिला। भारत बंद के बाद जामनगर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। उस समय जिले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (TADA) के तहत 133 लोगों को हिरासत में लिया था।
प्रभुदास वैष्णानी की मौत और आरोप
हिरासत में लिए गए लोगों में प्रभुदास वैष्णानी नामक एक व्यक्ति भी शामिल था। वह नौ दिनों तक पुलिस हिरासत में रहा और जमानत पर रिहा होने के कुछ ही समय बाद उसकी किडनी फेल हो जाने से मृत्यु हो गई। वैष्णानी के परिवार ने गंभीर आरोप लगाए कि हिरासत के दौरान उन्हें पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया, जिसमें संजीव भट्ट और उनके अन्य सहयोगी भी शामिल थे। इस घटना को लेकर 1995 में एक मजिस्ट्रेट ने मामले का संज्ञान लिया और एफआईआर दर्ज की गई।
सात पुलिसकर्मियों को भी बनाया गया था आरोपी
इस मामले में सात पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें दो सब-इंस्पेक्टर और तीन कांस्टेबल भी शामिल थे। कई वर्षों की अदालती कार्यवाही के बाद, जामनगर की सत्र अदालत ने 2019 में संजीव भट्ट और एक अन्य पुलिसकर्मी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने सत्र अदालत के फैसले को गुजरात उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। हालांकि, 2024 में हाई कोर्ट ने उनकी अपील खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई सजा और दोषसिद्धि को बरकरार रखा। –आईएएनएस से इनपुट