प्रारब्ध और कर्मफल के आधार पर रोग होना एक अपरिहार्य स्थिति है। अन्न तथा हमारे विचार अन्त:स्रावों को प्रभावित करते हैं। इनमें विकार होने पर अत:स्राची ग्रंथि से जुड़े अवयव में रोग उभरते हैं। जब तक इसके मूल को समझ कर तदनुरूप सुधार नहीं होगा तब तक लाक्षणिक रूप के आधार पर दवाओं से रोग का उपचार नहीं होगा। ध्वनि हमारे शरीर में स्थित जल को प्रभावित करती है। अत: खान-पान और विचारों के साथ ही वाणी तथा श्रवण भी शुद्ध रहना चाहिए।
ओकी-दो योगा इंटरनेशनल कैम्प में शनिवार को कोठारी तथा ओकी-दो यूनिवर्सिटी के मार्गदर्शक युजी याहिरो ने गर्भावस्था से जुड़ी सावधानियों की भी विस्तार से जानकारी दी। कोठारी ने कहा, गर्भावस्था प्राकृतिक प्रक्रिया है। मां आहार विचार तथा आचरण की सात्विकता से श्रेष्ठ सन्तान को जन्म दे सकती है। नॉर्मल डिलीवरी के लिए यूजी याहिरो ने मां का शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी बताया।
‘वेद आधारित प्राचीन ज्ञान है आयुर्वेद’ कोठारी ने कहा कि विज्ञान के तो बदलने की संभावना रहती है अत: उसे पूर्ण नहीं कह सकते हैं। आयुर्वेद तो वेद आधारित प्राचीन ज्ञान है जो तीनों शरीरों को दृष्टिगत रखकर वैद्य उपचार सुझाता है। आज भी वैद्य नाड़ी परीक्षण करके ही रोग के बारे में सटीक उपचार विधि सुझाते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान बड़ा व्यवसाय बन गया है। शिविर के प्रतिभागियों ने गर्भावस्था के दौरान शिशु से मां के सूक्ष्म संवाद, शरीर तथा मन-बुद्धि के विकास सहित आत्मा को संस्कारित करने संबंधी जिज्ञासाएं की, जिनका कोठारी ने समाधान किया।