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ऑपरेशन सिंदूर: जहां ज्यादा जरूरी, वहां सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेज ही नहीं रही सरकार!

Operation Sindoor: मोदी सरकार ने दुनिया भर के देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया है। इससे क्या व्यापक मकसद हासिल होगा, यह सवाल बना हुआ है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दुनिया का साथ पाने का मकसद है तो क्या यह सरकार और राजनयिकों के लेवल पर नहीं हो सकता था?

भारतMay 18, 2025 / 12:19 pm

Vijay Kumar Jha

Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर पर सेना और सरकार को पूरे देश का साथ मिला। सरकार के फैसले और सेना के शौर्य पर पूरा देश एक है। लेकिन, अब जिस तरह मामले को खींचा जा रहा है, वैसे में लोग सरकार से कुछ सवालों के जवाब की उम्मीद करने लगे हैं।

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सवाल नंबर एक: दुनिया भर के देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का मतलब क्या?

सरकार ने दुनिया भर के देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया है। इससे क्या व्यापक मकसद हासिल होगा, यह सवाल बना हुआ है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दुनिया का साथ पाने का मकसद है तो क्या यह सरकार और राजनयिकों के लेवल पर नहीं हो सकता था? वैसे भी ऑपरेशन सिंदूर पर किसी ने भारत का कड़ा विरोध किया भी नहीं है। जिस चीन के बारे में कहा जाता है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा मददगार है, वहां तो सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जा ही नहीं रहा है! फिर इस पूरी कवायद का क्या मतलब है? इस सवाल का विस्तृत और स्पष्ट जवाब सरकार को देश के सामने रखना चाहिए।

सवाल नंबर दो: नरसंहार करने वाले आतंकी कहां हैं?

पहलगाम में जिन आतंकियों ने दो दर्जन से ज्यादा निर्दोष लोगों का कत्ल किया, उनकी तलाश के लिए सरकार क्या कर रही है? सरकार की कोशिश का अंजाम क्या है? यह बड़ा सवाल है, लेकिन इस पर कोई अपडेट नहीं दे रही है।

सवाल नंबर तीन: ज़िम्मेदारी किसकी, ये कब तय होगा?

पहलगाम में पर्यटकों की सुरक्षा में चूक हुई, खुफिया तंत्र की नाकामी रही…इसमें तो किसी को शक नहीं। सरकार माने या न माने, पर यह है तो सच। इस मसले पर ज़िम्मेदारी तय करना सरकार का ही काम है। इस मोर्चे पर सरकार ने क्या किया है? इस सवाल के जवाब का देश को आज भी इंतजार ही है।

सवाल नंबर चार: सीजफायर पर अमेरिका के दावे पर ठोस जवाब क्यों नहीं?

भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया सीजफायर का क्रेडिट अमेरिका बार-बार ले रहा है। भारत इसे गलत बताता रहा है। इस मामले में भारत सरकार ने सार्वजनिक रूप से जनता को जो बताया है, क्या आधिकारिक रूप से वही बात अमेरिका को बताई गई है? अगर नहीं तो यह सरकार पर जनता का भरोसा कम करेगा और अमेरिका का रुख भारत सरकार के दावे को शक के दायरे में लाएगा।

सवाल नंबर पांच: ऐसे मामलों पर दलों की राजनीतिक गतिविधियों को बैन नहीं करना चाहिए?

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ऑपरेशन सिंदूर को भुनाने के लिए भाजपा तिरंगा यात्रा निकाल रही है। उसके नेता कह रहे हैं कि आज सेना भी प्रधानमंत्री मोदी के सामने नतमस्तक है। तृणमूल कांग्रेस भी मामले को भुनाने में लग गई है। अन्य पार्टियां भी अपने-अपने हिसाब से राजनीतिक रूप से मामले को भुनाने की कोशिश में हैं। पुलवामा हमले के बाद हुई कार्रवाई का भी देश ने चुनावी इस्तेमाल होते देखा और अब ऑपरेशन सिंदूर का भी राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। तो क्या सरकार को ऐसे मामलों या किसी भी सैन्य कार्रवाई पर पार्टियों द्वारा गतिविधियां आयोजित करने की पाबंदी नहीं लगा देनी चाहिए?

…और सबसे बड़ा सवाल- क्या जनता को सुरक्षा की गारंटी मिल पाएगी?

यह सवाल इसलिए क्योंकि ‘पुलवामा’ के बाद भी कहा गया था कि आतंकियों को ऐसी सजा देंगे कि वे दोबारा हिमाकत नहीं कर पाएंगे। फिर भी ‘पहलगाम’ हुआ। और इसमें साफ तौर पर सुरक्षा में चूक देखी गई। इसलिए सुरक्षा की गारंटी का सवाल सबसे बड़ा है और सरकार को न केवल इसका जवाब देना चाहिए, बल्कि अपने जवाब पर लोगों का भरोसा भी जीतना चाहिए।

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