नागौर. राज्य सरकार मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा वितरण योजना के तहत मरीजों को दवाएं उपलब्ध करवा रही है, लेकिन नागौर के जिला अस्पताल में दवा वितरण केन्द्रों व फार्मासिस्ट की कमी के कारण मरीजों को दवाइ लेने के लिए लम्बी कतारों में लगना पड़ रहा है।
विभागीय गाइडलाइन के अनुसार 100 से 120 की ओपीडी पर एक दवा वितरण केन्द्र (डीडीसी) की आवश्यकता होती है। जिला मुख्यालय के जेएलएन राजकीय अस्पताल में रोजाना की औसत ओपीडी 1500 के करीब है । इसके हिसाब से यहां 12 डीडीसी होनी चाहिए, जबकि यहां आधी भी नहीं है। मरीजों को पहले पर्ची कटवाने के लिए, फिर डॉक्टर को दिखाने के लिए, यदि डॉक्टर कोई जांच लिख दे तो जांच के लिए और फिर अंत में दवा लेने के लिए लम्बी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है।
गौरतलब है कि जेएलएन जिला अस्पताल में वार्षिक ओपीडी 4,76,771 है यानि 1306 औसत मरीज रोजाना ओपीडी में आते हैं। इसमें से यदि सरकारी छुट्टी को निकाल दिया जाए तो औसत ओपीडी रोज की 1500 से ज्यादा होती हैं। सरकारी नियमानुसार और इंडियन पब्लिक हेल्थ सर्विस गाइडलाइन के हिसाब से 120 मरीजों तक एक दवा वितरण केंद्र की व्यवस्था होनी चाहिए, जहां एक फार्मासिस्ट, एक हेल्पर व एक कंप्यूटर ऑपरेटर का पद कार्य व्यवस्था के लिए जरूरी हैं।
नियमानुसार जेएलएन अस्पताल में 12 डीडीसी होनी चाहिए, जबकि वर्तमान में जेएलएन में 4 और एमसीएच में 2 डीडीसी चल रही हैं। इसमें से जेएलएन में 2 डीडीसी 24 घंटे चल रही है। ओपीडी टाइम में चलने वाली डीडीसी पर 6 फार्मासिस्ट काम कर रहे हैं, जबकि स्टोर में 2 फार्मासिस्ट काम कर रहे हैं। 24 घंटे चलने वाली डीडीसी में 10 फार्मासिस्ट की जरूरत है, यदि 2 रिलीवर को जोड़ दिया जाए तो कुल मिलाकर व्यवस्था के लिए अभी 20 फार्मासिस्ट की जरूरत है, लेकिन यहां मात्र 9 फार्मासिस्ट लगे हुए हैं। यहां नर्सिंग स्टूडेंट दवा वितरण का काम कर रहे हैं, जिन्हें पूरी जानकारी भी नहीं है।
बढ़ाने की बजाए घटा दिए पद, अब बढ़ रही परेशानी जिले के साथ प्रदेशभर में अधिक ओपीडी वाली सीएचसी, उप जिला चिकित्सालय और जिला चिकित्सालय, जहां मरीजों की संख्या हजारों में है, जहां पहले से फार्मासिस्टों की कमी चल रही थी। उम्मीद थी कि नई भर्ती से यहां पद भरे जाएंगे और व्यवस्था सुधरेगी, लेकिन विभाग ने नई भर्ती में मिले ज्यादातर फार्मासिस्टों को पीएचसी पर लगाया है। साथ ही प्रदेशभर में सीएचसी, उप जिला अस्पताल व जिला अस्पतालों में फार्मासिस्टों के 999 पद विलोपित कर दिए हैं। इससे वर्तमान में काम कर रहे फार्मासिस्टों पर काम दबाव बढ़ गया है, जिससे परेशानी हो रही है। साथ ही सभी जिलों में जिला औषधि भंडार में लगे फार्मासिस्ट की पदोन्नति होने की वजह से वहां पर भी अव्यवस्था हो रही है।
पद विलोपित होने से बिगड़ी स्थिति जिले के अस्पतालों की स्थिति देखी जाए तो फार्मासिस्ट के कुल 87 पद हैं, जिनमें से 83 कार्यरत हैं तथा 4 रिक्त हैं। इसी प्रकार ग्रेड प्रथम फार्मासिस्ट के 18 स्वीकृत हैं, जिनमें से 16 कार्यरत व 2 रिक्त हैं। एक पद फार्मासिस्ट अधीक्षक का खींवसर में स्वीकृत है, लेकिन वह रिक्त है। स्वीकृत पद एवं कार्यरत फार्मासिस्ट के आंकड़ों को देखें तो स्थिति काफी अच्छी है, लेकिन राजस्थान फार्मासिस्ट कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार ने 999 पद विलोपित कर दिए, जिसके कारण रिक्त पदों की संख्या नगण्य हो गई, जबकि ओपीडी के हिसाब से स्वीकृत पद पर्याप्त नहीं है, जिसके कारण मरीजों को परेशानी हो रही है।
नागौर को नहीं मिला एक भी हेल्पर दवा वितरण केन्द्रों के सफलता पूर्वक संचालन के लिए फार्मासिस्ट के साथ हेल्पर की नियुक्ति भी होनी चाहिए। हाल ही राज्य सरकार ने प्रदेश में 598 हेल्पर की नियुक्ति दी, लेकिन नागौर जिले में एक भी हेल्पर की नियुक्ति नहीं दी गई। मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना को सुचारू रूप से चलाने में डीडीसी हेल्पर की अहम भूमिका है, पर नागौर जिले में सीएचसी, उप जिला अस्पताल या जिला अस्पताल में हेल्पर की स्वीकृति ही नहीं मिली, जिस कारण भी दवा योजना संचालन में परेशानी हो रही है।
सरकार ने रिपोर्ट मांगी है जेएलएन अस्पताल में फार्मासिस्ट की कमी चल रही है। इसके लिए हाल ही सरकार ओपीडी के अनुसार फार्मासिस्ट की आवश्यकता से संबंधित रिपोर्ट मांगी है, जो हमने भिजवा दी है। उम्मीद है जल्द ही फार्मासिस्ट की कमी पूरी होगी।
– डॉ. आरके अग्रवाल, पीएमओ, जेएलएन अस्पताल, नागौर
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