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लखनऊ

यूपी पंचायत चुनाव 2026: किसकी पंचायत, किसका हक? आरक्षण की नई चक्रव्यूह नीति तैयार

Panchayat Chunav 2026 : उत्तर प्रदेश में 2026 के पंचायत चुनाव में अब सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि आरक्षण की रणनीतिक पुनर्रचना का भी बड़ा इम्तिहान बनने जा रहे हैं। पंचायत चुनाव में आरक्षण तय करने से पहले यह तय करना होगा कि आरक्षण का आधार वर्ष कौन सा होगा।

लखनऊJul 07, 2025 / 01:13 pm

ओम शर्मा

पंचायत चुनाव में क्या होगा आरक्षण का आधार, PC- AI.

Panchayat Chunav 2026 : उत्तर प्रदेश में 2026 के पंचायत चुनाव में अब सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि आरक्षण की रणनीतिक पुनर्रचना का भी बड़ा इम्तिहान बनने जा रहे हैं। गांवों से लेकर जिलों तक, हर मतदाता जानना चाहता है। इस बार किसकी पंचायत, किसके नाम होगी? लेकिन इसका जवाब छुपा है ‘आधार वर्ष’ की उस परिभाषा में, जो अब कैबिनेट की मुहर का इंतज़ार कर रही है।

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सबसे पहले तय होगा ‘आधार वर्ष’

पंचायत चुनाव में आरक्षण तय करने से पहले यह तय करना होगा कि आरक्षण का आधार वर्ष कौन सा होगा। 2015, 2021 या फिर उससे भी पहले का कोई साल। वर्ष 2021 के चुनाव में 2015 को आधार बनाया गया था। मंशा स्पष्ट है एक ही सीट पर एक ही वर्ग का बार-बार वर्चस्व न हो।
सूत्रों के मुताबिक पंचायतीराज विभाग जुलाई के अंत तक कैबिनेट में यह प्रस्ताव भेजेगा, ताकि आरक्षण की प्रक्रिया समय से पूरी हो सके।

कैसे काम करता है आरक्षण रोटेशन?

आरक्षण की प्रक्रिया एक चक्रीय प्रणाली पर काम करती है अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियां, अनुसूचित जनजातियां, अनुसूचित जातियों की स्त्रियां, अनुसूचित जातियां, पिछड़े वर्ग की स्त्रियां, पिछड़ा वर्ग और फिर सामान्य वर्ग। यह चक्र हर पंचायत चुनाव में घूमा दिया जाता है ताकि अवसरों का समावेशी वितरण हो।

आरक्षण तय करने की गणित

आरक्षण तय करने के लिए गांवों को अनुसूचित जाति/जनजाति/ओबीसी की जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर अवरोही क्रम (ज्यादा से कम) में रखा जाएगा। वह ग्राम पंचायतें प्राथमिकता में होंगी जो आधार वर्ष में आरक्षित नहीं रही हों। महिलाओं का कोटा: कुल पदों में 33% पद।
जहां यह आरक्षण प्रणाली सामाजिक संतुलन और न्याय की ओर संकेत करती है, वहीं यह राजनीतिक दलों के लिए भी समीकरण साधने का जरिया बनती जा रही है। जिन सीटों पर आरक्षण बदलेगा, वहां नए चेहरे उभरेंगे और पुराना नेतृत्व पीछे छूट सकता है।
2026 का पंचायत चुनाव न सिर्फ लोकतंत्र का एक बड़ा पर्व होगा, बल्कि यह देखना भी दिलचस्प होगा कि ‘आधार वर्ष’ की यह चाबी गांव की सत्ता की किस तिजोरी को खोलती है। जनता, प्रशासन और राजनेता सभी की निगाहें अब इसी पर टिकी हैं।

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