बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 जून, 2025 को एक आदेश जारी किया था। इसमें यूपी के हजारों स्कूलों को बच्चों की संख्या के आधार पर नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज करने का निर्देश दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था- यह आदेश मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून (RTE Act) का उल्लंघन करता है। छोटे बच्चों के लिए नए स्कूल तक पहुंचना कठिन होगा। यह कदम बच्चों की पढ़ाई में बांधा डालेगा। इससे असमानता भी पैदा होगी। जस्टिस पंकज भाटिया की पीठ में 3 और 4 जुलाई तक बहस हुई। 4 जुलाई को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस पंकज भाटिया ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जानते हैं पूरा मामला क्या है?
बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी किया कि 50 से कम स्टूडेंट वाले परिषदीय स्कूलों (कक्षा-8 तक) का विलय करने की प्रक्रिया शुरू की जाए। इसके बाद स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी बीएसए से 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का ब्योरा मांगा। साथ ही उसके पड़ोस के स्कूल की जानकारी भी मांगी। उन्होंने साफ किया है कि कम छात्र संख्या वाले स्कूल को पड़ोस के किसी स्कूल में विलय किया जाएगा। यह भी देखें कि ऐसे स्कूल के रास्ते में कोई नदी, नाला, हाईवे, रेलवे ट्रैक नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए, ताकि किसी दुर्घटना की आशंका नहीं रहे।
क्यों किया जा रहा विरोध
यूपी में स्कूल मर्जर के खिलाफ याचिका दायर करने वाले लोगों का कहना है कि सरकार यह आदेश बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच भी प्रभावित होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि इससे छोटे बच्चों के स्कूल उनके घर से दूर हो जाएंगे और उन्हें स्कूल आने-जाने में परेशानी होगी। याचिका पर जोर दिया गया था कि इन स्कूलों का मर्जर 6-14 साल के बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। वहीं, सरकार का कहना था कि स्कूलों का मर्जर संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए किया जा रहा है। सरकार ने 18 ऐसे स्कूलों का हवाला दिया था, जहां कोई छात्र नहीं है। कोर्ट ने शुक्रवार (4 जुलाई) को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था और सोमवार को फैसला सुनाया।