उत्तर प्रदेश के ऊर्जा विभाग में पिछले चार दिनों से जारी विवाद और खींचतान के पीछे आखिर क्या है? जून महीने में जहां ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने बिजली कर्मचारियों की तारीफों के पुल बांधते हुए उन्हें उपभोक्ता सेवा का योद्धा बताया, वहीं जुलाई में अचानक उनका रुख बदल गया। मंत्री जी का तेवर सख्त हुआ, धमकी भरे शब्दों में “सुदर्शन चक्र” चलाने की चेतावनी दी गई, और पूरे विभाग में हलचल मच गई।
इस बीच, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस पूरे घटनाक्रम के पीछे की असली वजह का खुलासा किया है- निजीकरण। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि मंत्री जी की नाराज़गी का असली कारण उपभोक्ता सेवा की गुणवत्ता नहीं, बल्कि विभाग के निजीकरण को लेकर उत्पन्न हुई रुकावटें हैं।
निजीकरण बना संग्राम की जड़
दरअसल, 25 मार्च 2025 को ग्रांट थॉर्नटन नामक कंसल्टेंट को आदेश जारी हुआ था कि वह 120 दिन के भीतर ऊर्जा विभाग के निजीकरण का मसौदा तैयार करे और कैबिनेट से अप्रूवल के लिए पेश करे। हैरानी की बात यह है कि जैसे ही ऊर्जा मंत्री जी 22 जुलाई को शक्ति भवन पहुंचे, ठीक अगले दिन यानी 23 जुलाई को यह 120 दिन की समयसीमा पूरी हो रही थी।
लेकिन मसौदा अभी तक अधूरा है। न सिर्फ अधूरा, बल्कि इस मसौदे पर कैग (CAG) और उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने गंभीर आपत्तियां उठाई हैं। नियामक संस्था और कैग की दखल ने पूरे निजीकरण प्रोजेक्ट को संदेह के घेरे में ला दिया। यही बात ऊर्जा मंत्री जी को रास नहीं आई।
उपभोक्ताओं के नाम पर नरेटिव सेट करने की कोशिश?
प्रदेश में बिजली दरों में 45% तक की संभावित बढ़ोतरी और नए कनेक्शन की दरों में 25-45% तक की वृद्धि का प्रस्ताव आया है। प्रदेश उपभोक्ताओं के लिए यह बड़ा झटका है, लेकिन इन अहम मुद्दों पर मंत्री जी की चुप्पी बनी रही। यहां तक कि उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य है जहां आज भी बिजली की आपूर्ति रोस्टर के आधार पर की जाती है — उस पर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अब जब निजीकरण की प्रक्रिया में रुकावटें आई हैं, तो उपभोक्ता सेवा की आड़ में पूरे विभाग को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। उपभोक्ता परिषद का साफ कहना है कि अगर मंत्री जी को उपभोक्ताओं की इतनी ही चिंता थी, तो बीते तीन वर्षों में बिजली दरों में वृद्धि और खराब सेवा व्यवस्था पर उन्होंने क्यों कुछ नहीं कहा?
क्या निजीकरण की राह इतनी आसान है?
उपभोक्ता परिषद का मानना है कि निजीकरण की राह में आने वाली कानूनी और प्रक्रिया संबंधी अड़चनों ने विभाग के भीतर असंतोष और टकराव को जन्म दिया है। निजी कंपनियों की दिलचस्पी तो है, लेकिन नियामक ढांचे और पारदर्शिता की मांग के आगे प्राइवेट मॉडल अब उलझता जा रहा है। यही वजह है कि जुलाई में अचानक मंत्रालय के भीतर सख्ती और बयानबाज़ी तेज़ हुई।
ऊर्जा मंत्री का पक्ष: “कुछ तत्व कर रहे हैं अराजकता
ऊर्जा मंत्री श्री ए.के. शर्मा का रुख इस पूरे विवाद में अब खुलकर सामने आ गया है। @AKSharmaOffice के “X” पोस्ट को उन्होंने रिट्वीट किया है, जिसमें लियाा है ऊर्जा मंत्री श्री ए के शर्मा की सुपारी लेने वालों में विद्युत कर्मचारी के वेश में कुछ अराजक तत्व भी हैं …
ऊर्जा मंत्री श्री ए के शर्मा की सुपारी लेने वालों में विद्युत कर्मचारी के वेश में कुछ अराजक तत्व भी हैं …
कुछ विद्युत कर्मचारी नेता काफ़ी दिनों से परेशान घूम रहे हैं क्योंकि उनके सामने ऊर्जा मंत्री जी झुकते नहीं हैं।
ये वही लोग हैं जिनकी वजह से बिजली विभाग बदनाम हो रहा…
कुछ विद्युत कर्मचारी नेता काफ़ी दिनों से परेशान घूम रहे हैं क्योंकि उनके सामने ऊर्जा मंत्री जी झुकते नहीं हैं। ये वही लोग हैं जिनकी वजह से बिजली विभाग बदनाम हो रहा है।ज्यादातर विद्युत अधिकारियों और कर्मियों के दिन-रात की मेहनत-पुरुषार्थ पर ये लोग पानी फेर रहे हैं।
Hindi News / Lucknow / जून में नमन, जुलाई में दमन: निजीकरण की चिंगारी से यूपी में बिजली पर संग्राम