बालमीक पांडेय@ कटनी. नाग पंचमी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाजों और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। कोई नदी व पोखरों में पलाश के पत्तों की दोना बनाकर दूध पिलाते हैं तो कोई घरों में शेषनाग की आकृति बनाकर पूजन करते हैं। इन सबके बीच बहोरीबदं क्षेत्र के ग्राम कुआं में स्थित है शेषनाग मंदिर जो अनूठी मान्यताओं को संजोये हुए है। 113 वर्ष पुराने मंदिर में लोगों की न सिर्फ आस्था जुड़ी है बल्कि काल कहे जाने वाले भयंकर सर्प जब डस लेते हैं तो लोग उसके खतरनाक जहर से बचने के लिए यहां पहुंचते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहां के पुजारी राममिलन नायक (74) द्वारा मंत्रशक्ति के माध्यम से जहर को खींचकर खत्म कर दिया जाता है। लोगों में मान्यता है कि सर्प काटने वाला रोगी ठीक हो जाता है। ठीक होने के बाद एक बार नागपंचमी और ऋषिपंचमी में पहुंचकर शेषनाग को लोग पूजा देते हैं। बता दें कि यहां पर नागपंचमी में तीन घंटे की कठोर पूजा होती है। नाग देवता को पूजन में हरियाली चढ़ाई जाती है, यानि कि करेला, भिंडी, लौकी, हरी भाजी, तुरई, हरी मिर्च, कुमढा, परवल, चचीड़ा, खीरा आदि का भोग लगाया जाता है। इसके बार फिर नागराज को गाय का दूध अर्पित किया जाता है। यहां पहुंचने वाले लोगों को सर्प के काटने से डर नहीं लगता बल्कि उनको विश्वास रहता है कि यहां पर लगने वाले झाड़ा से बच जाएंगे।
राममिलन नायक बताते हैं कि 114 साल पहले उनके चाचा गया प्रसाद नायक जो कि फारेस्ट गार्ड थे, यहां पर वन विभाग की चौकी हुआ करती थी। गांव की एक महिला को जहरीले सर्प ने काट लिया था, सूचना मिलने पर गयाप्रसाद पहुंचे और मंत्रशक्ति से उसे ठीक कर दिया, इसके बाद लोगों ने उनको मानना शुरू कर दिया तो गया प्रसाद ने कहा था कि यह उनकी शक्ति नहीं बल्कि नागराज की है, इसलिए उनकी पूजा-अर्चना करें। इसके बाद गांव में मंदिर का निर्माण हुआ, मूर्ति स्थापना कराई गई, जिसके बाद अब यहां पर लोग पहुंच रहे हैं।
हर दिन पहुंच रहे दर्जना लोग
शेषनाग मंदिर कुआं में प्रतिदिन सर्पदंश के बाद मौत से बचने के लिए लोग यहां पर पहुंचकर झाड़ा लगवा रहे हैं। पिछले दो दिनों में 35 से अधिक लोग पहुंचे है। रविवार को यहां पर 22 सर्पदंश से पीडि़त व सोमवार को 15 सर्पदंश के पीडि़त परिजनों के साथ पहुंचे। पंडा के द्वारा झाड़ा लगाया गया।
लगता है बड़ा मेला
कुआं शेषनाग मंदिर में नागपंचमी पर बड़ी संख्या में लोग पूजन के लिए तो पहुंचते ही हैं, साथ ही ऋषि पंचमी का दिन खास होता है। यहां पर मेला लगता है। सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचते हैं। जिन्हें सर्प काटा रहता है उनको भाव आता है और बताते हैं कि सर्प क्यों और कैसे काटा। इसके बाद फिर पूजा करते ही शांत हो जाते हैं। हालांकि राममिलन नायक कहते हैं कि कलेक्टर दिलीप यादव के कहने पर अब वे झाडफ़ूंक नहीं करते, लेकिन लोगों की धाम से बड़ी आस्था है, मजबूरी में झाड़ा लगाना पड़ रहा है। उनका कहना है कि मंत्र चिकित्सा में बड़ी शक्ति है।
वैदिक काल से हो रही पूजा
पंडित बिहारी चतुर्वेदी बताते हैं कि नागपंचमी की पूजा वैदिककाल से होती आ रही है। द्यग्वेद के अनुसार नागों व सर्पों की पूजा रक्षा, शांति और संतुष्टि के लिए है। परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने सर्पयज्ञ हुआ तो फिर आस्तिक मुनि ने यह यज्ञ रुकवाकर सर्पों की रक्षा की थी। इसी दिन से क्षमा के लिए पूजा होती आ रही है। नाग देव की कृपा, सर्पों की रक्षा, प्रकृति और जैव विविधता की रक्षा के लिए यह पूजन हो रहा है। नाग पूजा से हमें यह सीख लेनी है कि कभी भी इनकी हत्या न करें, इनको संरक्षित करें, सुरक्षित रहें।
बढ़ती जागरूकता के साथ अब लोग घर व आसपास निकलने वाले सर्पों को मारते नहीं बल्कि बचाते हैं। तत्काल सर्प विशेषज्ञों को सूचना देकर मनुष्य व वन्य जीव की रक्षा कराते हैं। शहर में अमिता श्रीवास, विवेक शर्मा, अर्जुनदास झामनानी, सतीश सोनी आदि बहादुरी के साथ इनका रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ते हैं। ग्रामीण इलाकों में भी वनप्राणी संरक्षण सक्रिय हैं।
ईको सिस्टम के लिए हर जीव जरूरी
गल्र्स कॉलेज में पदस्थ प्राणीशास्त्र विशेषज्ञ डॉ. रोशनी पांडेय का कहना है कि प्रकृति में यदि एक वैक्टीरिया भी है तो महत्वपूर्ण है। इस चेन में किसी भी प्राणी को निकालेंगे श्रंखला बदल जाएगी। मनुष्य अपने फायदे के लिए गलत निर्णय लेते हैं। ईको सिस्टम बनाए रखने के लिए यदि हम किसी जीव को नुकसान पहुंचाते हैं तो समझें उसे नहीं अपने आप को पहुचा रहे हैं। मनुष्य सिर्फ नेरोसेंस पर काम करता है। यानि कि यदि कोई पेड़ है तो उसकी लकड़ी के लिए थोड़ा फायदा सोचता है और बड़ा नुकसान कर लेता है। ब्रॉडसेंस नहीं रखते कि पेड़ बड़ा होगा तो ऑक्सीजन देगा, छाव देगा, बारिश होगी, बाद में लकड़ी मिलेगी। हर जीव का प्रकृति में बहुत महत्व है, यदि प्रकृति को उस जीव की आवश्यकता नहीं है तो वह स्वयं ही नष्ट कर देती है। जबतक किसी जीव को कोई खतरा नहीं होता तबतक वह अटैक नहीं करता, इसलिए हर जीव-जंतु को बचाया जाना नितांत आवश्यक है।
सिर्फ मेडिकल साइंस पर करें विश्वास
सिविल सर्जन डॉ. यशवंत वर्मा का कहना है कि सर्प के काटने पर लोग सिर्फ मेडिकल साइंस पर ही भरोसा करें। लोग व्यक्तिगत आस्था के चलते किसी धार्मिक स्थल में जाकर या फिर गुनिया के सहारे जहर से मुक्त होने का सपना देखते हैं। इस तरह की कोई भी प्रोसेस सफल नहीं होती। लोग आस्था के नाम पर भटकते हैं। समय खराब करते हैं। यदि जब कोबरा काटता है तो जहर एक घंटे में असर करता है और व्यक्ति की मौत हो सकती है, ऐसे में झाडफ़ूंक में यदि आपने से एक घंटे खर्च कर दिए तो बचने की कोई गुंजाइश नहीं रहती। एंटीवैनम दवा ही काम करेगी।
दियागढ़ के घनघोर जंगल के बीच स्थित है प्राचीन नागिन माता मंदिर
ढीमरखेड़ा तहसील क्षेत्र के ग्राम दियागढ़ में जंगल के बीच स्थित है प्राचीन नागिन माता मंदिर। बड़ी संख्या में लोग यहां पूजन करने पहुंचेंगे। झिन्ना पिपरिया गांव से 5 किलोमीटर दूर दियागढ़ गांव तक प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ परियोजना के द्वारा सडक़ का निर्माण कराया गया है, लेकिन दियागढ़ से 1 किलोमीटर मंदिर पहुंच मार्ग अभी भी कच्चा खस्ता हाल है। नागिन माता पत्थर रूपी शीला में चमेली का तेल और देसी घी लगाते हैं तो एहसास होता है। जैसे सर्प का स्पर्श किया जा रहा हो मंदिर के सामने प्राचीन प्राकृतिक जलकुंड और पास में ही प्राकृतिक झरना भी क्षेत्र में काफी मशहूर है। वर्ष 2016 शहडोल लोकसभा उप चुनाव के दौरान ग्रामीणों ने मंदिर विकास के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मांग की थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मंदिर को पर्यटन में शामिल करने की घोषणा की थी, लेकिन अबतक कुछ नहीं हुआ।
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