1971 की जंग में जनता दे रही थी पूरा साथ
1971 के भारत-पाक युद्ध के समय जहां सैनिक सीमा पर दुश्मनों से लोहा ले रहे थे, वहीं देश के आम नागरिक भी अनुशासन और संकल्प के साथ युद्ध प्रयासों में योगदान दे रहे थे। उस दौर में संचार के सीमित साधनों के बावजूद पूरे देश में एकता और देशभक्ति की भावना चरम पर थी। पचलंगी व आसपास के गांवों के लोगों ने उस दौर की स्मृतियों को साझा करते हुए बताया कि कैसे हर नागरिक खुद को इस लड़ाई का सिपाही मान रहा था।50 किमी घुसकर गाजीपुर फॉरेस्ट पर किया था कब्जा
रिटायर्ड कैप्टन खुशाल सिंह इंदा की यूनिट ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में 50 किमी पाकिस्तान के अंदर घुसकर 16 दिसंबर 1971 को गाजीपुर फॉरेस्ट पर विजय हासिल की थी। उनके सिर पर एयर ब्रस्ट होने के बावजूद भी घायल अवस्था में यूनिट में सबसे आगे टैंक चलाते हुए उन्होंने तिरंगा लहराया था। आज भी जब भारत-पाक युद्ध की बात आती है तो युद्ध के लिए इंदा के बाजू फड़फड़ाने लगते हैं।पाकिस्तान पर भरोसा यानी धोखा खाना
नगर निवासी 83 वर्षीय हेम सिंह राजपूत ने चीन के साथ 1962, उसके बाद 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ा था। हेमसिंह ने बताया कि वह थर्ड राजरिप में तैनात थे तथा 1965 की लड़ाई में पुंछ, राजौरी, 07 चौकिया पर जाकर पाकिस्तान से युद्ध लड़ा था।घरों में नहीं जलाते थे रात को चूल्हा-चिमनी
पापड़ा की रहने वाली सुरजी देवी ने बताया कि 1971 की लड़ाई में पति हनुमान पायल ने युद्ध का मोर्चा संभाल रखा था। वहीं उस समय गांवों में संचार का रेडियो ही साधन था। वह भी हर किसी के घर में नहीं था। सरकार द्वारा निर्देशित किया गया था कि रात के समय में चूल्हा व चिमनी नहीं जलाएं। पति युद्ध करने के लिए मोर्चे पर थे। वहीं घर में रहकर देश युद्ध जीते इसके लिए पूरा जोश था।चौपालों पर नहीं रहते थे इकट्ठे व्यक्ति
काटलीपुरा के रहने वाले बद्री प्रसाद सैनी ने बताया कि 1971 की जंग आमने सामने की लड़ाई थी। देश के हर व्यक्ति के जहन में युद्ध जीतने का लक्ष्य था। जहां योद्धा मोर्चा संभाल रहे थे। वहीं आमजन भी पूरे अनुशासन में रहकर उनका साथ दे रहे थे। युद्ध के दौरान चौपालों पर लोग नहीं रुकते थे। दिन ढलते ही घरों में अंधेरा कर बैठे रहते थे। सरकार का हर फरमान माना जाता था।सरकार के हर आदेश की होती थी पालना
1971 की लड़ाई के दौरान सरकार के हर आदेश की पालना होते थी। गांवों में गांव के कोतवाल के द्वारा हेला देकर घरों में चिमनी नहीं जलाने चूल्हा नहीं जलाने के लिए कहा जाता था। युद्ध के दौरान जिस घर से सैनिक युद्ध में तैनात रहता था। उसके परिजनों का होसला बढ़ाया जाता था।
-नानग नाथ योगी, पचलंगी