script‘पाकिस्तानी आगे-आगे और पीछे हम…,’ राजस्थान के वीरों ने बताया कैसे लड़ी थी 1971 की जंग | Retired soldiers of Rajasthan narrated story of 1971 war between India and Pakistan | Patrika News
झुंझुनू

‘पाकिस्तानी आगे-आगे और पीछे हम…,’ राजस्थान के वीरों ने बताया कैसे लड़ी थी 1971 की जंग

India-Pakistan War 1971: 1971 की जंग में पाकिस्तान के साथ आमने-सामने की लड़ाई लड़ी गई। इस दौरान संसाधन कम थे, लेकिन आम नागरिकों ने सैनिकों का भरपूर साथ दिया था। उस समय जनसंचार के साधन कम थे, लेकिन राजस्थान और देश के लोगों में भारी जोश था।

झुंझुनूMay 08, 2025 / 11:27 am

Santosh Trivedi

1971 indo pak war

1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध (फाइल)।

India-Pakistan War 1971: भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा हालात बेहद खराब स्थिति में पहुंच गए हैं। सीमा पर जंग जैसे हालात हैं। भारत की तरफ से ऑपरेशन सिंदूल लॉन्च किए जाने के बाद पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में लगातार गोलीबारी कर रहा है। इस बीच राजस्थान के वीर जवानों ने बताया कि कैसे उन्होंने पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 की जंग लड़ी।
पाकिस्तान के साथ जंग की बात आते ही राजस्थान के रिटायर्ड फौजियों की बाजुएं 8 दशक बीत जाने के बाद भी फड़कने लगती हैं। हाथ तुरंत मूछों पर चला जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के दौरान पत्रिका ने ऐसे कई रिटायर्ट सैनिकों से बात की है।

1971 की जंग में जनता दे रही थी पूरा साथ

1971 के भारत-पाक युद्ध के समय जहां सैनिक सीमा पर दुश्मनों से लोहा ले रहे थे, वहीं देश के आम नागरिक भी अनुशासन और संकल्प के साथ युद्ध प्रयासों में योगदान दे रहे थे। उस दौर में संचार के सीमित साधनों के बावजूद पूरे देश में एकता और देशभक्ति की भावना चरम पर थी। पचलंगी व आसपास के गांवों के लोगों ने उस दौर की स्मृतियों को साझा करते हुए बताया कि कैसे हर नागरिक खुद को इस लड़ाई का सिपाही मान रहा था।

50 किमी घुसकर गाजीपुर फॉरेस्ट पर किया था कब्जा

रिटायर्ड कैप्टन खुशाल सिंह इंदा की यूनिट ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में 50 किमी पाकिस्तान के अंदर घुसकर 16 दिसंबर 1971 को गाजीपुर फॉरेस्ट पर विजय हासिल की थी। उनके सिर पर एयर ब्रस्ट होने के बावजूद भी घायल अवस्था में यूनिट में सबसे आगे टैंक चलाते हुए उन्होंने तिरंगा लहराया था। आज भी जब भारत-पाक युद्ध की बात आती है तो युद्ध के लिए इंदा के बाजू फड़फड़ाने लगते हैं।
1971 में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर एयरपोर्ट पर पहला हमला किया था। 5 दिसंबर को उनकी यूनिट को टास्क दिया कि रामड़ारामडी गांव पाकिस्तान में कब्जा करना है। तब उनकी यूनिट ने रास्ते में बारूदी सुरंगों को हटाते हुए रात्रि को पाकिस्तान के रामड़ारामडी गांव पर कब्जा किया।

पाकिस्तान पर भरोसा यानी धोखा खाना

नगर निवासी 83 वर्षीय हेम सिंह राजपूत ने चीन के साथ 1962, उसके बाद 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ा था। हेमसिंह ने बताया कि वह थर्ड राजरिप में तैनात थे तथा 1965 की लड़ाई में पुंछ, राजौरी, 07 चौकिया पर जाकर पाकिस्तान से युद्ध लड़ा था।
1971 में कमांडिंग ऑफिसर भवानी सिंह के नेतृत्व में बाड़मेर में युद्ध लड़ा था और पाकिस्तान के छाछरो से आगे तक कब्जा कर लिया था। उन्होंने बताया कि बहादुरी के साथ भवानी सिंह के नेतृत्व में युद्ध लड़ा और पाकिस्तान की सेना आगे-आगे भाग रही थी और हम उसके पीछे। ऑपरेशन सिंदूर के बारे में हेम सिंह ने कहा कि पाकिस्तान पर भरोसा करना धोखा खाना है।

घरों में नहीं जलाते थे रात को चूल्हा-चिमनी

पापड़ा की रहने वाली सुरजी देवी ने बताया कि 1971 की लड़ाई में पति हनुमान पायल ने युद्ध का मोर्चा संभाल रखा था। वहीं उस समय गांवों में संचार का रेडियो ही साधन था। वह भी हर किसी के घर में नहीं था। सरकार द्वारा निर्देशित किया गया था कि रात के समय में चूल्हा व चिमनी नहीं जलाएं। पति युद्ध करने के लिए मोर्चे पर थे। वहीं घर में रहकर देश युद्ध जीते इसके लिए पूरा जोश था।

चौपालों पर नहीं रहते थे इकट्ठे व्यक्ति

काटलीपुरा के रहने वाले बद्री प्रसाद सैनी ने बताया कि 1971 की जंग आमने सामने की लड़ाई थी। देश के हर व्यक्ति के जहन में युद्ध जीतने का लक्ष्य था। जहां योद्धा मोर्चा संभाल रहे थे। वहीं आमजन भी पूरे अनुशासन में रहकर उनका साथ दे रहे थे। युद्ध के दौरान चौपालों पर लोग नहीं रुकते थे। दिन ढलते ही घरों में अंधेरा कर बैठे रहते थे। सरकार का हर फरमान माना जाता था।

सरकार के हर आदेश की होती थी पालना


1971 की लड़ाई के दौरान सरकार के हर आदेश की पालना होते थी। गांवों में गांव के कोतवाल के द्वारा हेला देकर घरों में चिमनी नहीं जलाने चूल्हा नहीं जलाने के लिए कहा जाता था। युद्ध के दौरान जिस घर से सैनिक युद्ध में तैनात रहता था। उसके परिजनों का होसला बढ़ाया जाता था।
-नानग नाथ योगी, पचलंगी

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