साथ ही, इस संबंध में कोई अधिकृत रसीद भी रिकॉर्ड में नहीं पाई गई। जबकि ग्रामीणों से उक्त राशि मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के तहत टांके, खेत तालाब और जल संरक्षण संरचनाएं बनाने के नाम पर ली गई थी।यह पूरा मामला कुछ ग्रामीणों की शिकायत के बाद सामने आया है। जिला प्रशासन को की गई शिकायत पर जिला परिषद सीईओ ने विशेष जांच समिति का गठन किया था। समिति ने दस्तावेजों, बैंक खातों, रसीदों और ग्रामीणों के बयानों के आधार पर विस्तृत जांच की।
फर्जी रसीदें, योजना पर कोई कार्य नहीं
जांच में खुलासा हुआ कि वसूली के लिए उपयोग में ली गई रसीदें पंचायत की अधिकृत रसीद बुक की नहीं थीं। ये रसीदें बाहर से छपवाकर इस्तेमाल की गई थीं, जिनकी वैधता संदिग्ध है। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि योजना के अंतर्गत कोई कार्य शुरू ही नहीं किया गया, न ही धनराशि का उल्लेख किसी सरकारी रिकॉर्ड या योजना दस्तावेज में किया गया।
4.20 लाख लौटाए, 8.16 लाख अब भी नहीं मिले
जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि वसूली गई राशि में से करीब 4.20 लाख रुपए 35 ग्रामीणों को वापस किए गए हैं, लेकिन 68 ग्रामीणों की 8.16 लाख रुपए की राशि अब भी पंचायत के पास है। इससे नाराज ग्रामीण अब भी अपनी राशि की वापसी का इंतजार कर रहे हैं।
तीन दिन में मांगा जवाब
जांच रिपोर्ट मिलने के बाद जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रणजीत सिंह गोदारा ने सरपंच और संबंधित जिम्मेदारों को कारण बताओ नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब मांगा है। यदि तय समय में संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
पंचायत समिति और बर्तन बैंक खाते की भी जांच
रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई गई है कि वसूली गई राशि किसी निजी या समिति के खाते में डायवर्ट की गई हो सकती है। जांचकर्ताओं ने ‘बर्तन बैंक’ खाते का उल्लेख करते हुए इसे भी जांच के दायरे में लिया है। अब पंचायत समिति और अन्य संबंधित खातों की भी जांच की जाएगी।