scriptअब स्कूल नहीं जाना… खौफनाक याद से कांप रहे पिपलोदी के मासूम | Now I don't want to go to school... Piplodi's innocent mother's voice became petrified as she trembled with the horrifying memory | Patrika News
झालावाड़

अब स्कूल नहीं जाना… खौफनाक याद से कांप रहे पिपलोदी के मासूम

मंजर अब भी बच्चों के दिलो-दिमाग से नहीं गया

झालावाड़Jul 28, 2025 / 12:01 pm

harisingh gurjar

मां की आवाजपथरा सी गई

झालावाड़ . पिपलोदी गांव का सरकारी स्कूल, जिसकी छत दो दिन पहले मासूमों पर कहर बनकर टूटी, अब बच्चों की स्मृतियों में खौफ बन गया है। हादसा बीत गया, मगर उसका मंजर अब भी बच्चों के दिलो-दिमाग से नहीं गया। आंखें बंद करते ही मलबा गिरता दिखता है और नींद में भी चीखें गूंज उठती हैं।
झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल में भर्ती घायल बच्चों की हालत अब सिर्फ शारीरिक तकलीफ की नहीं है… यह चोट उनकी आत्मा पर है। सिर पर पट्टियां, हाथों में सलाइन… लेकिन सबसे गहरा जख्म तो मन में है… जो किसी दवा से भरता नहीं दिखता। अस्पताल में भर्ती नौ मासूम अब भी जिंदगी से जूझ रहे हैं। एक गंभीर बच्चे को कोटा रेफर किया गया है। बिस्तर पर लेटे घायल छात्र बादल से जब उस दिन के बारे में पूछा गया, तो उसकी आंखें डबडबा आईं। पहले तो कुछ नहीं बोला। फिर इधर-उधर की बातें करता रहा…जैसे अपने दर्द से भाग रहा हो। लेकिन फिर पूछा गया, तो खुद को रोक न सका।

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बादल के चाचा कमलेश, जो पास ही खड़े थे, बोले-‘हां, अब उस स्कूल नहीं भेजेंगे। गुराड़ी स्कूल चलेंगे। बादल ने गर्दन झुकाकर सहमति दी…मासूम-सी हां, जिसमें एक डर छिपा था… और शायद टूटा हुआ भरोसा भी।
मासूम आंखों में डर उतर आया…
छात्र बीरम को नींद आ रही थी, लेकिन उसके पेट में अंदरूनी चोट है। चाचा श्रीराम कहते हैं ‘ये किसी के साथ नहीं होना चाहिए था’। कक्षा चार की छात्रा सायना की मासूम आंखों में अब स्कूल शब्द सुनते ही डर उतर आता है। कक्षा चार के मिलन की मां कालीबाई की आवाज भर्राई हुई है। वे बोलती हैं, ‘हम बच्चों को छाती से लगाकर यहां लाए हैं। अब जब तक पूरी तरह ठीक नहीं होंगे, गांव नहीं लौटेंगे।’ घायल छात्र मिथुन ने धीरे से कहा, ‘मेरे सिर में लगी है।’ उसके पिता मुकेश, भर्राए गले से बोले, ‘अब तो बस यही चाहता हूं कि ऐसा हादसा किसी और के साथ न हो…स्कूलों को बचपन की जगह बनाएं, मरघट नहीं…’।


मन पर लगी चोट…


छात्रा मोनिका, जो अभी कक्षा एक में पढ़ती है, अस्पताल के बेड पर चुपचाप लेटी है। उसके पिता तेजमल कहते हैं, ‘हां, शरीर पर तो चोट है ही, लेकिन जो डर उसके मन में बैठ गया है, वो ज्?यादा साल रहा है।’ एक मासूम बच्ची, जिसकी उम्र गुड्डों-गुड़ियों के खेल की है, अब अस्पताल की दवाओं और दर्द की भाषा सीख रही है। ‘ये मेरी भांजी है। हादसे में घायल हुई थी। अब बस भगवान से यही प्रार्थना है कि ऐसा किसी और बच्चे के साथ कभी न हो…’ आरती की मामी ने बताया। उनकी आंखों में वही दहशत थी, जो गांव के हर घर में पसरी हुई है।
मुरली तो अभी स्कूल में पहुंचा भी नहीं था
छात्र मुरली मनोहर, जिसकी उम्र छह साल की होने वाली है। अभी दाखिले की औपचारिकताएं भी पूरी नहीं हुई थीं। हादसे में बेहोश हो गया। पिता देवीलाल कहते हैं, ‘दो अगस्त को जन्मदिन है, तभी स्कूल में नाम लिखवाते। अभी तो बस स्कू ल जाना सीख ही रहा था’। पर उससे पहले ही जिंदगी ने उसे अस्पताल की राह दिखा दी। हादसे में उसके सिर, आंख, हाथ-पैर, हर जगह चोटें आई हैं।
कक्षा पांच के छात्र राजू का एक पैर फ्रै क्चर हो गया था। पंजा बुरी तरह फट गया। उसे इमरजेंसी में लाया गया, जहां डॉक्टरों ने तुरंत ऑपरेशन कर इलाज किया। वह अब थोड़ा ठीक है, पर डर अब भी आंखों में समाया है। जब उसकी मां से हादसे के बारे में पूछा गया, तो शब्द गले में ही अटक गए। वो कुछ बोल न सकीं – बस रो पड़ीं।
रोते हुए बोला, ‘मुझे अब स्कूल नहीं जाना…’। बादल के चाचा कमलेश, जो पास ही खड़े थे, बोले-‘हां, अब उस स्कूल नहीं भेजेंगे। गुराड़ी स्कूल चलेंगे। बादल ने गर्दन झुकाकर सहमति दी…मासूम-सी हां, जिसमें एक डर छिपा था… और शायद टूटा हुआ भरोसा भी।

मासूम आंखों में डर उतर आया…: 

छात्र बीरम को नींद आ रही थी, लेकिन उसके पेट में अंदरूनी चोट है। चाचा श्रीराम कहते हैं ‘ये किसी के साथ नहीं होना चाहिए था’। कक्षा चार की छात्रा सायना की मासूम आंखों में अब स्कूल शब्द सुनते ही डर उतर आता है। कक्षा चार के मिलन की मां कालीबाई की आवाज भर्राई हुई है। वे बोलती हैं, ‘हम बच्चों को छाती से लगाकर यहां लाए हैं। अब जब तक पूरी तरह ठीक नहीं होंगे, गांव नहीं लौटेंगे।’ घायल छात्र मिथुन ने धीरे से कहा, ‘मेरे सिर में लगी है।’ उसके पिता मुकेश, भर्राए गले से बोले, ‘अब तो बस यही चाहता हूं कि ऐसा हादसा किसी और के साथ न हो…स्कूलों को बचपन की जगह बनाएं, मरघट नहीं…’।

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