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झालावाड़ स्कूल हादसा: एक साथ उठी 6 बच्चों की अर्थी, भाई-बहन का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार; फूट पड़ी लोगों की रुलाई

Jhalawar News: झालावाड़ जिले के मनोहर थाना उपखंड के पीपलोदी गांव में हुए स्कूल हादसे का शिकार 7 बच्चों में से 6 बच्चों की अंत्येष्टि आज पिपलोदी गांव में की गई।

झालावाड़Jul 26, 2025 / 12:46 pm

Anil Prajapat

Last rites of 6 children

पीपलोदी में एक साथ उठी 6 बच्चों की अर्थियां। फोटो: पत्रिका

Jhalawar school accident: झालावाड़ जिले के मनोहर थाना उपखंड के पीपलोदी गांव में हुए स्कूल हादसे का शिकार 7 बच्चों में से 6 बच्चों की अंत्येष्टि आज पिपलोदी गांव में की गई, जबकि एक बच्चे को पास के गांव चांदपुरा भीलान ले जाया गया। पिपलोदी गांव में जैसे ही एक साथ 6 बच्चों की अर्थियां उठी तो चीख पुकार कर मच गई।
एसपी और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में सुबह 5:00 बजे सभी मृतक बच्चों के शव परिजनों को सौंपे गए। जिन्हें मनोहर थाना अस्पताल से अलग-अलग गाड़ियों से घरों तक भिजवाया गया। जैसे ही शव पहुंचे तो पूरे गांव में कोहराम मच गया।

पुलिस की मौजूदगी में निकली अंतिम यात्रा

शवों के गांव पहुंचने से पहले ही अर्थियां बनाना शुरू कर दिया गया था, ऐसे में जल्दी-जल्दी सभी मृतक बच्चों की आर्थियां सजाई गई और भारी पुलिस बल के साथ दुर्घटना स्थल के समीप बने हुए श्मशान तक लाया गया।

भाई-बहन को एक ही चिता पर ले जाया गया

हादसे का शिकार हुए दो सगे भाई-बहन कान्हा और मीना को एक ही अर्थी पर श्मशान तक ले जाया गया। श्मशान में सभी लोगों की अंतिम क्रिया एक साथ की गई तथा पांच चिताओं पर छह बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया। सभी बच्चों की चिताओं को उनके पिताओं द्वारा मुखाग्नि दी गई। बच्चों की चिताओं को जैसे ही अग्नि दी गई तो वहां मौजूद लोगों की रुलाई फूट पड़ी। वहीं, एक बच्चे का गांव चांदपुरा भीलान में अंतिम संस्कार किया गया।

स्कूल हादसे के बाद ग्रामीणों में आक्रोश

ग्रामीणों ने बताया कि गांव के किसी भी घर में कल से ही चूल्हा नहीं जला है तथा पूरे गांव में तनावपूर्ण मातम और सन्नाटा पसरा हुआ है। गांव के लोगों में हादसे के बाद बहुत गुस्सा है। हादसे में दो परिवारों के इकलौते चिराग बुझ गए तो वहीं, एक परिवार की दोनों संतान है। मौत के मुंह में समा गई हैं। जिन बच्चों की मौत हुई है उनमें से अधिकांश की उम्र 7 से 10 साल के बीच है, तथा पारिवारिक स्थितियां बेहद खराब हैं। अधिकांश बच्चों के माता-पिता मेहनत मजदूरी करके अपना परिवार चलते हैं।

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