आज हम बात कर रहें हैं लोक निर्माण विभाग चांपा के द्वारा जांजगीर न्यायिक कर्मचारियों के लिए 19 जी टाइप, 26 एच टाइप एवं 38 आई टाइप मिलाकर कुल 83 शासकीय आवासगृह का निर्माण कार्य किया जा रहा है।
CG News: ठेकेदार को नहीं कानून के जानकारों का डर
इसमें लोगों का आरोप है कि निर्माण कार्य में गुणवत्ता की अनदेखी की जा रही है। उक्त निर्माण कार्य मेसर्स शिवाय बिल्डर एलएलपी द्वारा किया जा रहा है। जिसमें गुणवत्ता से खिलवाड़ करते हुए कार्यों का क्रियान्वयन हो रहा है। जिसमें सबसे बड़ी अनियमितता तो यह है कि लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों के मिलीभगत और सह पाकर ठेकेदार के द्वारा अनुबंधित कार्य में नियमानुसार इंजीनियरों को कार्यस्थल पर कार्यों को करने हेतु नियुक्त किया जाता है परंतु ठेकेदार के द्वारा केवल कागजों में
इंजीनियर रखे गए हैं। मौके पर एक भी इंजीनियर नहीं रहता। इससे गुणवत्ता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
12 इंजीनियर रखने का प्रावधान
उक्त कार्य में निर्माण स्थल में नियमानुसार 12 इंजीनियरों को रखे जाने का प्रावधान है। जिसे खुद कार्यपालन अभियंता के द्वारा बताया गया है। परंतु ठेकेदार के द्वारा केवल एक इंजीनियर रख कर खाना पूर्ति की गई है। ऐसा नहीं है कि पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को इसकी भनक नहीं है। बल्कि इन्हीं अधिकारियों की सह पर ठेकेदार मनमानी में उतारू है।
कार्यस्थल से समरी बोर्ड गायब
कार्यस्थल में कार्यों की जानकारी हेतु नियमानुसार बोर्ड लगा होता है जिसे ठेकेदार के द्वारा हटा लिया गया है जिससे किसी को कोई जानकारी ही ना मिल पाए लोग भ्रमित रहे इन सभी गलत कार्यों में साइड इंजीनियर की भूमिका भी बड़ी ही संदेहास्पद दिख रही है क्योंकि इन्हीं अधिकारियों के ऊपर नियमों का पालन करवाने की जिमेदारी एवं जवाबदेही रहती है। मजदूरों के लिए कोई सुरक्षा उपाय नहीं
न्यायिक कर्मचारियों के लिए बन रहे आवासीय भवनों के निर्माण में कार्यरत गरीब
मजदूरों से तीन मंजिला भवन में कार्य लिया जा रहा है। जिसमें सुरक्षा मानकों की ऐसी धज्जियां उड़ाई जा रही है कि कब किस मजदूर की जान चली जाय कहा नहीं जा सकता।
मजदूरों को बहुमंजिला इमारतों में चढ़ा दिया जा रहा है पर उनको सुरक्षा हेतु न तो सेटी बेल्ट दिया जा रहा है ना ही हेलमेट इत्यादि। बिछड़े गरीब मजदूर अपने पेट भरने के लिए जान को जोखिम में डालने को मजबूर हैं। जहां एक ओर ठेकेदार को इसके लिए करोड़ों भुगतान होते हैं वहीं ठेकेदार मजदूरों की जान को जोखिम में डाल केवल कमाई में लगा हुआ है।
मौके से जिमेदार इंजीनियर गायब
जहां ठेकेदार की मनमानी चरम पर है वही लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों को भी हो रहे कार्यों से कोई सरोकार नहीं है निर्माण स्थल में केवल लेबर और मिस्त्री कार्य करते देखे जा सकते हैं। उन्हीं के भरोसे करोड़ों का काम चल रहा है इससे सहज ही समझा जा सकता है कि निर्माण कार्यों की गुणवत्ता क्या होगी। इस संबंध में
ठेकेदार भोसले का कहना है कि नियम तो हजारों है पर श्रमिक नियमों का पालन नहीं करते। श्रमिकों को हर तरह के सुरक्षा उपाय उपलब्ध कराए गए हैं, लेकिन वे इस्तेमाल नहीं करते।
क्या कहता है नियम
एनआईटी के कंडिका 8.1.2 जिसमें कार्यस्थल पर कार्यों की देखभाल के लिए ठेकेदार दारा अभियंता की नियुक्ति न होने पर दण्ड का प्रावधान है। साथ ही 10 करोड़ से लेकर 50 करोड़ तक के कार्यों में 4 ग्रेजुएट इंजीनियर और 8 डिप्लोमा इंजीनियर रखने का प्रावधान है। लेकिन मौके पर एक भी इंजीनियर नहीं है। करोड़ों का काम केवल भगवान भरोसे चल रहा है।