सडक़ें मांग रही मरम्मत
- शहर के प्रमुख मार्गों में कभी कई जगहों पर सडक़ों पर गड्ढे हो रखे हैं। जबकि भीतरी भागों में तो उनकी हालत और खस्ता है। सडक़ों पर जगह-जगह डामर उखड़ जाने के बाद उनमें लगा कंक्रीट भी बाहर निकल गया है। वहां छोटे-बड़े गड्ढे पैदल चलने वालों से लेकर दुपहिया चालकों की परीक्षा लेते हैं।
- शहर के लगभग हर चौराहे पर लगी पत्थर की रैलिंग टूटी हुई है। उनमें लगे फव्वारों से पानी की बौछारें नहीं आ रही और वहां धूल जमा है।
- कच्ची बस्तियों व अन्य क्षेत्रों में बेशुमार ढंग से झाड़-झंखाड़ उगे हुए हैं। उनकी सफाई करवाए अरसा हो चुका है। इन झाडिय़ों की वजह से गलियों में मच्छर पनपते हैं।
- जलदाय विभाग की लाइनों में लीकेज की भी समस्या व्याप्त है। इससे न केवल अमूल्य जल की बर्बादी होती है बल्कि सडक़ें भी क्षतिग्रस्त होती हैं।
- शहर में स्वच्छंद घूमने वाले पशुओं की धरपकड़ का काम भी वर्तमान में सुस्त हो गया है। वे आने-जाने वाले लोगों के लिए भय का वातावरण बनाए हुए हैं।
- बाहरी कॉलोनियां हो या भीतरी भाग, श्वानों का आतंक जगह-जगह बना हुआ है। ये श्वान आए दिन लोगों को काट कर जख्मी कर रहे हैं। इस समस्या का मानो कोई समाधान ही नहीं है।
- शहर में बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्यों का मलबा व निर्माण सामग्री आदि पास में सडक़ मार्गों पर डाल दी जाती है। इससे आवाजाही करने वालों को खासी दिक्कतें पेश आती हैं। फिर भी ऐसा करने वालों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती।
समस्याओं का हो समाधान
शहर में इन दिनों सफाई व्यवस्था माकूल नहीं है। नियमित रूप से सफाई नहीं होती और न ही पूरी तरह से कचरा उठाया जाता है।
सडक़ों व गलियों में जगह-जगह टूटन आ गई है। लम्बे समय से इनकी मरम्मत नहीं करवाई जा रही है। जिससे आने-जाने वालों को परेशानी होती है।
रात्रि प्रकाश व्यवस्था आए दिन ठप हो जाती है। जिससे वाहन चलाने में परेशानी आती है। दुर्घटनाएं घटित होने का खतरा बढ़ जाता है।