दरअसल, एनसीआर में शामिल शहरों में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और समितियों में नियुक्तियों से संबंधित पुराने आदेशों को पूरा करने में विफलता का स्वत: संज्ञान लेकर सर्वोच्च अदालत सुनवाई कर रही थी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा “हम दिल्ली सरकार की ओर से की जा रही इस ढिलाई को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। विशेषकर तब जब दिल्ली देश के सबसे प्रदूषित इलाकों में से एक है।” अदालत ने आगे निर्देश दिया कि दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में रिक्त चल रहे 204 पदों की नियुक्ति पूरी करने के बाद एक विस्तृत हलफनामा 15 अक्टूबर 2025 तक प्रस्तुत किया जाए। जिसमें नियुक्तियों की स्थिति स्पष्ट हो।
अदालत को नहीं मिला संतोषजनक जवाब
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि नियत समय तक नियुक्तियां पूरी नहीं हुईं तो दिल्ली सरकार को अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ेगा। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के उस दावे को भी खारिज कर दिया। जिसमें कहा गया था कि साल के अंत तक सभी नियुक्तियां पूरी कर ली जाएंगी। न्यायालय ने कहा कि सरकार बोर्ड के गठन की जिम्मेदार है और उसे यह कहने का अधिकार नहीं कि छह महीने तक नियुक्तियों की प्रक्रिया चलती रहे। इस दौरान दिल्ली सरकार की ओर से मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामे में बताया गया कि 204 में से 83 पदों पर नियुक्ति हो चुकी है। जबकि 36 पदों के लिए प्रक्रिया चल रही है। इसके अलावा 26 पदों के लिए अगले सप्ताह इंटरव्यू निर्धारित किए गए हैं। सरकार का दावा है कि इस साल के अंत तक सभी पद भर दिए जाएंगे, लेकिन अदालत इस दावे पर असंतुष्टि दिखाते हुए कोर्ट ने कहा “साल के अंत तक क्यों? बोर्ड का गठन सरकार ने किया है। सरकार नहीं कह सकती है कि पदों को भरने के लिए छह महीने लगेंगे। हलफनामे में यह भी नहीं लिखा है कि कब प्रक्रिया शुरू होगी या विज्ञापन निकाला जाएगा।”
भविष्य की रिक्तियों पर भी निर्देश
कोर्ट ने दिल्ली सरकार को यह भी निर्देश दिया कि भविष्य में जब भी कोई पद रिक्त होने वाला हो तो कम से कम छह महीने पहले ही उसकी भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी जाए। यह व्यवस्था इसलिए आवश्यक है। ताकि पर्यावरण जैसे संवेदनशील विषय पर कार्यरत बोर्ड की कार्यक्षमता किसी भी स्तर पर प्रभावित न हो। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश दिल्ली सरकार के लिए एक सख्त चेतावनी है कि वह अपनी जिम्मेदारियों से मुंह न मोड़े। समयबद्ध कार्रवाई के बिना सरकार की लापरवाही न केवल संवैधानिक संकट को जन्म दे सकती है। बल्कि जनता के जीवन स्तर को भी प्रभावित कर सकती है। प्रदूषण से जूझती दिल्ली और प्रशासनिक सुस्ती
दिल्ली वर्षों से खतरनाक स्तर के प्रदूषण से जूझ रही है। ऐसे में प्रदूषण नियंत्रण के लिए गठित बोर्ड में पर्याप्त स्टाफ की अनुपस्थिति न केवल एक गंभीर प्रशासनिक चूक है बल्कि जनस्वास्थ्य के प्रति लापरवाही भी मानी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल प्रशासन को जवाबदेह बनाता है बल्कि आने वाले समय में दिल्ली की पर्यावरणीय स्थितियों में सुधार की उम्मीद भी जगाता है। अब देखना होगा कि सरकार इस दिशा में कितनी तत्परता से कदम उठाती है।