scriptRajasthan: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद क्या बदलेंगे समीकरण? गरमाई जाट राजनीति; BJP के लिए ये है चुनौती | Jagdeep Dhankhar resignation heats up Jat politics in Rajasthan becomes a challenge for BJP | Patrika News
जयपुर

Rajasthan: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद क्या बदलेंगे समीकरण? गरमाई जाट राजनीति; BJP के लिए ये है चुनौती

Rajasthan Politics: जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफे ने राजस्थान की राजनीति में नया भूचाल ला दिया है।

जयपुरJul 23, 2025 / 07:01 pm

Nirmal Pareek

Politics in Rajasthan

(राजस्थान पत्रिका फोटो)

Rajasthan Politics: जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफे ने राजस्थान की राजनीति में नया भूचाल ला दिया है। खासकर जाट समुदाय के प्रतिनिधित्व को लेकर सियासी हलकों में बहस छिड़ गई है। जगदीप धनखड़ राजस्थान के झुंझुनूं जिले से तालुक रखने वाले जाट नेता थे। उनके इस्तीफे ने बीजेपी के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
बता दें, राजस्थान में जाट समुदाय लगभग 12-14 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है और पश्चिमी राजस्थान, शेखावाटी और जयपुर के आसपास की 25 विधानसभा सीटों पर निर्णायक प्रभाव रखता है। धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब बीजेपी के लिए सियासी समीकरण साधने का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है।

कांग्रेस ने भांपी संभावना, हमला तेज

दरअसल, कांग्रेस ने धनखड़ के इस्तीफे को एक बड़े अवसर के रूप में देखा और तुरंत बीजेपी पर हमला बोला। राजस्थान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने बीजेपी पर जाट समुदाय की लगातार उपेक्षा का आरोप लगाया। डोटासरा खुद जाट समुदाय से आने वाले नेता है। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने हमेशा जाट समुदाय को हाशिए पर रखा है। धनखड़ का इस्तीफा इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि पार्टी में किसानों और जाटों के लिए कोई सम्मान नहीं है।
उन्होंने बीजेपी पर यूज एंड थ्रो की नीति अपनाने का भी आरोप लगाया। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि धनखड़ पर केंद्र सरकार और संघ का दबाव था, जिसके चलते उन्होंने इस्तीफा दिया। गहलोत ने कहा कि स्वास्थ्य कारण केवल एक बहाना है और असल वजह कुछ और है।

यहां देखें वीडियो-


बीजेपी में जाट नेतृत्व का अभाव

मालूम हो कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद बीजेपी के पास अब कोई ऐसा जाट नेता नहीं है जो राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर समुदाय का प्रतिनिधित्व कर सके। वर्तमान में भजनलाल सरकार की कैबिनेट में जाट नेताओं की हिस्सेदारी केवल 16 फीसदी है।
कैबिनेट में पीएचईडी मंत्री कन्हैयालाल चौधरी और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा शामिल हैं, जबकि झाबर सिंह खर्रा स्वतंत्र प्रभार और विजय सिंह राज्यमंत्री हैं। हालांकि, इनमें से कोई भी नेता पूरे प्रदेश में जाट समुदाय को एकजुट करने का प्रभाव नहीं रखता।
वहीं, संगठन में भी जाटों की भागीदारी सीमित है। बीजेपी के प्रदेश संगठन में जाट नेताओं का प्रतिनिधित्व करीब 13 फीसदी है, जिसमें उपाध्यक्ष सीआर चौधरी और ज्योति मिर्धा, महामंत्री संतोष अहलावत, और मंत्री विजेंद्र पूनियां शामिल हैं। लोकसभा चुनाव से पहले सीआर चौधरी को किसान आयोग का अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने जाटों को साधने की कोशिश की थी, लेकिन इसे डैमेज कंट्रोल के तौर पर ज्यादा देखा गया।

अब बीजेपी के सामने क्या चुनौती?

दरअसल, राजस्थान में जाट समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है, जो विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान में सीकर, चूरू, झुंझुनूं, श्रीगंगानगर, नागौर और बाड़मेर जैसी सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। हाल के लोकसभा चुनावों में बीजेपी इन जाट बाहुल्य सीटों पर हार गई, जो यह दर्शाता है कि जाट समुदाय का एक बड़ा हिस्सा पार्टी से छिटक गया।
हालांकि, विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जाटों का समर्थन मिला था और झुंझुनूं विधानसभा उपचुनाव में पार्टी की जीत ने इस बात का संकेत दिया कि जाट वोटों को साधने की संभावना अभी बाकी है।
कांग्रेस इस स्थिति का लाभ उठाने की पूरी कोशिश में है। डोटासरा के नेतृत्व में पार्टी जाट समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी उनके हितों की अनदेखी कर रही है। डोटासरा ने कहा कि धनखड़ जैसे प्रभावशाली जाट नेता को बीजेपी ने दरकिनार किया। यह जाट समुदाय और किसानों का अपमान है।

यहां देखें वीडियो-


बीजेपी का क्या होगा अगला कदम?

गौरतलब है कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने बीजेपी की उस कमजोरी को उजागर किया है, जिसे वह लंबे समय से नजरअंदाज करती रही है- जाट नेतृत्व की कमी। पार्टी के सामने अब दो रास्ते हैं- या तो वह जाट समुदाय को संगठन और सरकार में अधिक प्रतिनिधित्व देकर उनके विश्वास को जीते, या फिर कांग्रेस की जाट-केंद्रित रणनीति का सामना करने को तैयार रहे।
क्योंकि वर्तमान में बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तय नहीं है। नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सतीश पूनिया जैसे जाट नेताओं को अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसी तरह, प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की नई टीम में भी जाट नेताओं को प्रमुख पदों पर जगह मिलने की संभावना है।

जाट मंत्रियों की बढ़ सकती है संख्या

इसके अलावा, बीजेपी कैबिनेट विस्तार में जाट मंत्रियों की संख्या बढ़ा सकती है। वर्तमान में चार जाट मंत्रियों के अलावा दो और मंत्रियों को शामिल करने की चर्चा है। साथ ही, प्रमुख मंत्रालयों को जाट नेताओं को सौंपकर भी समुदाय को साधने की कोशिश हो सकती है।
राज्य में विभिन्न बोर्ड और आयोगों में राजनीतिक नियुक्तियों में भी जाटों को प्राथमिकता दी जा सकती है। अभी तक केवल आठ बोर्ड और आयोगों में नियुक्तियां हुई हैं और भविष्य में इनमें जाट नेताओं की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी वर्तमान में केवल भागीरथ चौधरी जाट कोटे से राज्यमंत्री हैं और इसमें भी विस्तार की गुंजाइश है।

Hindi News / Jaipur / Rajasthan: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद क्या बदलेंगे समीकरण? गरमाई जाट राजनीति; BJP के लिए ये है चुनौती

ट्रेंडिंग वीडियो