CG News: योनिपीठ पर स्थापित शिवलिंग
गुमड़ापाल शिव मंदिर की विशेषता इसका योनिपीठ पर स्थापित
शिवलिंग है, जो इसे साधना की दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाता है। मंदिर का गर्भगृह तथा अंतराल दो प्रमुख भागों में विभाजित है, जिसमें गर्भगृह में जलाधारी अथवा योनिपीठ पर शिवलिंग स्थापित है।
काकतीय वंश के राजाओं ने कराया निर्माण
ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर 13वीं-14वीं शताब्दी के मध्य काकतीय वंश के राजाओं के काल में निर्मित बताया गया है। मंदिर पूर्वाभिमुख है और इसका स्थापत्य शैली उस समय की कला, संस्कृति और धार्मिक आस्था का जीवंत प्रमाण प्रस्तुत करता है। संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित यह मंदिर क्षेत्रीय स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है।
तांत्रिक सिद्धियों का केंद्र
स्थानीय पुजारी व श्रद्धालु मानते हैं कि यहां की गई शिव साधना से तांत्रिक क्रियाएं अधिक प्रभावी होती हैं और अनेक साधक यहां पर सिद्धियाँ प्राप्त करने पहुंचते हैं। इसके अलावा त्योहारी अवसरों और श्रावण मास में यहां विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं, जिनमें दूर-दराज़ से श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि बस्तर की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का भी गौरवशाली प्रतीक है। जगदलपुर/मध्य बस्तर के कटेकल्याण-जगदलपुर मार्ग पर स्थित गुमड़ापाल गांव के समीप ’’सिंगईगुड़ी’’ नामक स्थान पर बना यह प्राचीन शिव मंदिर आज तांत्रिक सिद्धियों और शिव साधना का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। जगदलपुर शहर से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर बस्तर अंचल के उन चुनिंदा स्थलों में से एक है, जहां तंत्र-मंत्र की साधना के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं।
योनिपीठ पर स्थापित शिवलिंग
CG News: गुमड़ापाल
शिव मंदिर की विशेषता इसका योनिपीठ पर स्थापित शिवलिंग है, जो इसे साधना की दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाता है। मंदिर का गर्भगृह तथा अंतराल दो प्रमुख भागों में विभाजित है, जिसमें गर्भगृह में जलाधारी अथवा योनिपीठ पर शिवलिंग स्थापित है।